कैप्टन की बगावत और जातीय समीकरण; एक जाखड़ से पंजाब में कैसे 2 निशाने साध सकती है कांग्रेस

बीते काफी समय से कैप्टन अमरिंदर सिंह की कप्तानी को लेकर उहापोह की स्थिति का शनिवार को पटाक्षेप हो गया। काफी समय से पंजाब कांग्रेस में जारी कलह के बीच आखिरकार कांग्रेस नेतृत्व ने बड़ा फैसला लिया और कैप्टन अमरिंदर को पंजाब की कप्तानी छोड़नी पड़ गई। अमरिंदर सिंह के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के बाद पंजाब की सियासत किस करवट बैठेगी, यह आने वाले चुनाव में ही पता चलेगा, मगर हाल के घटनाक्रमों पर नजर डालने से पता चलता है कि कांग्रेस ने सियासी नफा-नुकसान का आकलन करके ही कैप्टन को हटाने का फैसला लिया है। हालांकि, अब यहां सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर कैप्टन के बाद पंजाब की कुर्सी पर कौन काबिज होगा। वैसे तो पंजाब के मुख्यमंत्री पद की रेस में कई नाम सामने आ रहे हैं, मगर सबसे अधिक दावेदारी सुनील जाखड़ की मानी जा रही है।

पंजाब के नए मुख्यमंत्री के तौर पर नवजोत सिंह सिद्धू, पंजाब इकाई के पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़, पूर्व मंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा, तृप्त राजिंदर सिंह बाजवा और राज्यसभा सदस्य प्रताप सिंह बाजवा के नाम चर्चा में हैं। इतना ही नहीं, पूर्व केंद्रीय मंत्री अम्बिका सोनी, ब्रह्म मोहिंद्रा, विजय इंदर सिंगला, पंजाब कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष कुलजीत सिंह नागरा आदि के नामों की भी चर्चा है। मगर इन सभी नामों में सबसे अधिक सुनील जाखड़ का पलड़ा भारी नजर आ रहा है। सुनील जाखड़ न सिर्फ पंजाब कांग्रेस के हाल ही में मुखिया रह चुके हैं, बल्कि वह कांग्रेस का जाट चेहरा भी हैं। कई समीकरण इस बात की गवाही दे रहे हैं कि सुनील जाखड़ ही कांग्रेस की पहली पसंद होंगे और आगामी चुनाव में इसी तीर से भाजपा के मंसूबों को ध्वस्त करने के लिए कांग्रेस ने कैप्टन से कप्तानी छीनी है।

दरअसल, केंद्र सरकार के कृषि कानूनों को लेकर जिस तरह से खासकर पंजाब-हरियाणा में किसान प्रदर्शन कर रहे हैं, भाजपा के खिलाफ जिस तरह से जाटों के बीच नाराजगी है, ऐसे में चुनावी लिहाज से कांग्रेस के पास सुनील जाखड़ से बेहतर शायद ही कोई और विकल्प हो। सुनील जाखड़ न सिर्फ कांग्रेस के दिग्गज नेता हैं, बल्कि हिन्दू जाट हैं और उनकी सिखों में भी अच्छी स्वीकार्यता है। सुनील जाखड़ पंजाब में जाट परिवार से आते हैं और कृषि कानूनों को लेकर जाटों के विरोध को देखते हुए कांग्रेस सुनील जाखड़ को मुख्यमंत्री बना एक तीर से कई निशाने साध सकती है। भले ही पंजाब की राजनीति में सिखों के बरक्स जाटों का उतना दबदबा नहीं रहा हो, मगर सुनील जाखड़ के रूप में अपना दांव चल पश्चिमी उत्तर प्रदेश से लेकर पंजाब और राजस्थान में जाटों की नाराजगी का कांग्रेस फायदा उठा सकती है।

सुनील जाखड़ पंजाब के ऐसे नेता हैं, जिनकी स्वीकार्यता सिख समुदाय में भी है। यह सही है कि ट्रेडिशनल सिखों का वोट कांग्रेस से ज्यादा हमेशा अकालियों को मिला है। मगर कृषि कानूनों के बाद बदले हुए नए समीकरण में कांग्रेस इसका फायदा उठा सकती है, क्योंकि कृषि कानूनों को लेकर अकाली से भी पंजाब के लोगों की नाराजगी की खबरें आती रही हैं। दरअसल पंजाब में कांग्रेस सिखों के अलावा हिन्दू वोटों पर भी आधारित रही है। ऐसे में पार्टी को लगता है कि जाखड़ को लाकर सिखों के एक वर्ग और हिंदुओं को साधा जा सकता है।

सुनील जाखड़ के पक्ष में एक बात और जाती है कि उनकी स्वीकार्यता सिद्धू खेमे से लेकर कैप्टन खेमे में भी है। कैप्टन अमरिंदर सिंह भी उनके ऐसे विरोधी नहीं हैं, जैसा नवजोत सिंह सिद्धू का करते रहे हैं। अगर कांग्रेस जाखड़ को सीएम बनाती है तो कैप्टन खुलकर बगावत भी नहीं कर पाएंगे, क्योंकि उन्होंने खुलकर जाखड़ के विरोध में कुछ नहीं कहा है, मगर सिद्धू को तो पाकिस्तान का दोस्त तक बता दिया है। इसके अलावा किसान आंदोलन के दौर में एक जाट को मुख्यमंत्री बनाकर कांग्रेस कई राज्यों में संदेश देने की कोशिश कर सकती है। क्योंकि अगले साल यूपी में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटों की संख्या भी बेहतर है, ऐसे में यह दांव चलकर कांग्रेस जाटों का वोट अपने पक्ष में लेने की सोच सकती है। अगर जाखर को लेकर अटकल सही साबित होती है, तो 1966 में राज्यों के पुनर्गठन के बाद सुनील जाखड़ पहले हिंदू मुख्यमंत्री बन सकते हैं। उनके पिता बलराम जाखड़ 1980 से 1989 तक दो बार संसद के अध्यक्ष रहे हैं।

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