एअर इंडिया की दिलचस्प कहानी:मिट्टी के मकान में था ऑफिस, मालिक खुद उड़ाते थे हवाई जहाज

आजादी के बाद दुनिया भर में फैला बिजनेस, फिर कैसे बनी बेचने की मजबूरी?

मुंबई में जुहू के पास मिट्टी का एक मकान, उसके सामने रनवे के लिए इस्तेमाल होने वाला मैदान, सिंगल इंजन वाले दो हवाई जहाज, तीन मैकेनिक और दो पायलट। इसे पढ़कर आपके दिमाग में जो तस्वीर बन रही है, वो करीब आठ दशक पुरानी है।

आज की तस्वीर ये है कि घाटे से जूझ रही एअर इंडिया बिकने ही वाली है। टाटा ग्रुप और स्पाइस जेट एअरलाइंस ने इसे खरीदने के लिए बोलियां लगाई हैं। एअर इंडिया किसके पास जाएगी, ये तो वक्त ही बताएगा, लेकिन अभी हम आपको बता रहे हैं- एअर इंडिया के 89 साल का दिलचस्प सफर।

कैसे जेआरडी टाटा के जुनून से शुरू हुई टाटा एअरलाइंस बनी एअर इंडिया, किस स्ट्रैटजी से दुनिया भर में फैला इसका कारोबार और किन गलतियों ने एअर इंडिया को इस हश्र तक पहुंचा दिया?

शुरुआतः कराची से मुंबई की वो ऐतिहासिक उड़ान

15 अक्टूबर 1932 की सुबह 6 बजकर 35 मिनट। कराची के हवाई अड्डे पर खड़े सिंगल इंजन वाले ‘हैवीलैंड पस मोथ’ हवाई जहाज पर जेआरडी टाटा सवार हुए। उन्होंने रनवे पर विमान दौड़ाया और 10 सेकेंड में वो हवा से बातें करने लगा।

‘एअर इंडिया’ की 30वीं बरसी यानी 15 अक्टूबर 1962 को जेआरडी टाटा ने एक बार फिर से कराची से मुंबई की उड़ान भरी थी

थोड़ी देर बाद वो विमान अहमदाबाद में रुका, जहां ईंधन बैलगाड़ी पर लादकर लाया गया था। विमान ने अहमदाबाद से उड़ान भरी तो दोपहर 1 बजकर 50 मिनट पर बंबई के जुहू हवाई अड्डे पर लैंड किया। इस उड़ान में 25 किलो डाक चिट्ठियां थीं। यहीं से भारत में पैसेंजर फ्लाइट की शुरुआत हुई और पहली कंपनी बनी टाटा एअरलाइंस।

1933 में टाटा एअरलाइंस ने 1.60 लाख मील उड़ान भरी। 1939 में द्वितीय विश्व शुरू होने के बाद विमानों के पंख रुक गए और कंपनी पर संकट मंडराने लगा।

उड़ानः आजादी के बाद भारत सरकार ने खरीदा

द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होने के बाद 29 जुलाई 1946 को टाटा एअरलाइंस पब्लिक कंपनी बन गई और इसका नाम बदलकर एअर इंडिया कर दिया गया। 1947 में आजादी मिलने के बाद सरकार ने एअर इंडिया में 49% हिस्सेदारी खरीद ली।

इसके बाद 1953 में भारत सरकार ने एअर कॉर्पोरेशन एक्ट पास किया और देश की सभी एअरलाइंस का राष्ट्रीयकरण कर दिया। अब एअर इंडिया पूरी तरह से सरकारी कंपनी बन चुकी थी।

1960 में अपने बेड़े में बोइंग 707-420 एअरक्राफ्ट शामिल करने वाली पहली एअरलाइन बनी। कुछ ही सालों में एअर इंडिया दुनिया की पहली ऑल-जेट एअरलाइन बन गई। दुनिया के कई हिस्सों में एअर इंडिया की उड़ानें शुरू हो चुकी थीं।

भारतीय परिधान साड़ी में एअर इंडिया का पूरा क्रू ।

लोगो और शुभंकरः कुछ महाराजा वाली फीलिंग

एअर इंडिया का शुरुआती लोगो जेआरडी टाटा ने खुद चुना था। ये धनु का निशान था, जो कोणार्क के एक गोले में धनुष चलाता दिख रहा था। शुरुआत से ही इसकी थीम लाल और सफेद रही है। 2007 में इसका लोगो बदल दिया गया। अब ये एक लाल रंग के उड़ते हुए हंस जैसा है, जिसमें कोणार्क चक्र लगा है।

एअर इंडिया का शुभंकर महाराजा है। इसे 1946 में कंपनी के कॉमर्शियल डायरेक्टर बॉबी कूका और आर्टिस्ट जे वॉल्टर थॉम्पसन ने मिलकर बनाया था। इसके कुलीन लुक में एक देसीपन झलकता है। 2015 में इसका मेकओवर किया गया और इसे ज्यादा युवा दिखाया जाने लगा। धोती पगड़ी के साथ-साथ जींस और सूट भी पहनने लगा।

स्ट्रैटजीः ‘ट्रुली इंडियन’ ब्रांड इमेज पर रखा फोकस

एअर इंडिया ने शुरुआती दिनों से ही ‘ट्रुली इंडियन’ वाली ब्रांड इमेज पर फोकस किया। 1947 में छपे एक न्यूजपेपर ऐड की लाइन थी कि अगर आप आजादी का जश्न मनाने सही समय पर पहुंचना चाहते हैं तो 140 रुपए की एअर इंडिया की टिकट खरीदिए। बाद के सालों में एक्ट्रेस जीनत अमान और एक्टर बिल फॉक्स भी विज्ञापनों में फीचर किए गए, जिससे लोगों का ध्यान खींचा जा सके। एअर होस्टेस को पारंपरिक भारतीय साड़ी में ब्रांड किया गया। एअर इंडिया की ये इमेज बदस्तूर जारी रही। हालांकि हालिया दिनों में इस स्ट्रैटजी से कंपनी को नुकसान भी उठाना पड़ा।

एअर इंडिया का पुराना विज्ञापन, जिसमें एक्ट्रेस जीनत अमान को फीचर किया गया है। लिखा है- भारत छोड़ने के बाद भी भारत आपके साथ रहता है।

डाउनफालः 2007 के मर्जर से बिगड़ गए हालात

2007 में सरकार ने एअर इंडिया और इंडियन एअरलाइंस का मर्जर कर दिया था। मर्जर के पीछे सरकार ने फ्यूल की बढ़ती कीमत, प्राइवेट एअरलाइन कंपनियों की प्रतिस्पर्धा को वजह बताया था। हालांकि साल 2000 से लेकर 2006 तक एअर इंडिया मुनाफा कमा रही थी, लेकिन मर्जर के बाद परेशानी बढ़ गई। कंपनी की कमाई कम होती गई और कर्ज लगातार बढ़ता गया। कंपनी पर 31 मार्च 2019 तक 60 हजार करोड़ से भी ज्यादा का कर्ज था।

एअर इंडिया की सिर्फ महिलाओं की क्रू टीम ने इस साल सैन फ्रांसिस्को से बेंगलुरू की उड़ान को पूरा करके रिकॉर्ड बनाया है।

बोझः एअर इंडिया बेचने की ये तीसरी कोशिश

एअर इंडिया के विनिवेश की पहली कोशिश साल 2000 में वाजपेयी सरकार में हुई थी। इसके बाद 2018 में दूसरी कोशिश की गई, लेकिन सफलता नहीं मिली। आखिरकार सरकार ने 2020 में एअर इंडिया की 100% हिस्सेदारी बेचने का फैसला किया। 15 सितंबर 2021 तक टाटा और स्पाइसजेट ने इसे खरीदने के लिए बोली लगाई। अगर टाटा ये बोली जीतती है, तो एअर इंडिया की घर वापसी हो जाएगी।

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