टाटा की एयरलाइंस को नेहरू ने सरकारी बनाया, घाटे में गई तो मोदी ने टाटा को ही बेचा, जानें एअर इंडिया की पूरी कहानी

एअर इंडिया आखिरकार बिक गई। घाटे से जूझ रही सरकारी कंपनी को 3 साल से बेचने की कोशिश कर रही मोदी सरकार को शुक्रवार सफलता मिल गई। सरकार ने 100% हिस्सेदारी बेचने के लिए टेंडर मांगे थे। कंपनी को खरीदने के लिए टाटा ग्रुप और स्पाइस जेट एयरलाइंस ने बोली लगाई थी। सरकार ने टाटा ग्रुप के टेंडर को मंजूरी दे दी। 1953 में उस वक्त की जवाहर लाल नेहरू सरकार ने एअर इंडिया का अधिग्रहण कर लिया था। 68 साल बाद एक बार फिर एअर इंडिया का मालिकाना हक टाटा समूह के पास आ गया है।

सरकार को एअर इंडिया क्यों बेचनी पड़ी? एअर इंडिया की आर्थिक हालत कैसी है? एयरलाइंस को बेचने की कोशिश कब से हो रही थी? जब दो कंपनियों ने बोली लगाई थी तो टाटा को ही क्यों मिली एअर इंडिया? एअर इंडिया के साथ और क्या-क्या बेच रही है सरकार? आइए जानते हैं…

सरकार को एअर इंडिया क्यों बेचनी पड़ी?
2007 में सरकार ने एअर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस का मर्जर कर दिया था। मर्जर के पीछे सरकार ने फ्यूल की बढ़ती कीमत, प्राइवेट एयरलाइन कंपनियों से मिलते कॉम्पिटिशन को वजह बताया था। हालांकि, साल 2000 से लेकर 2006 तक एअर इंडिया मुनाफा कमा रही थी, लेकिन मर्जर के बाद परेशानी बढ़ गई। कंपनी की आय कम होती गई और कर्ज लगातार बढ़ता गया। कंपनी पर 31 मार्च 2019 तक 60 हजार करोड़ से भी ज्यादा का कर्ज था। वित्त वर्ष 2020-21 के लिए अनुमान लगाया था कि एयरलाइन को 9 हजार करोड़ का घाटा हो सकता है।

UPA सरकार ने बेलआउट पैकेज से कंपनी को उबारने की कोशिश भी की थी, लेकिन नाकाम रही। इसके बाद 2017 में इसके विनिवेश की रूपरेखा बनाई गई।

क्या पहले भी हुई है एअर इंडिया को बेचने की कोशिश?
हां। इससे पहले 2018 में भी सरकार ने एअर इंडिया के विनिवेश की तैयारी की। फैसला लिया कि सरकार एअर इंडिया में अपनी 76 फीसदी हिस्सेदारी बेचेगी। इसके लिए कंपनियों से एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट (EOI) मंगवाए गए, लेकिन सरकार के पास एक भी कंपनी ने EOI सबमिट नहीं किया।

इसके बाद जनवरी 2020 में नए सिरे से प्रक्रिया शुरू की गई। इस बार 76 फीसदी की जगह 100 फीसदी हिस्सेदारी बेचने का फैसला लिया गया। कंपनियों को 17 मार्च 2020 तक एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट सबमिट करने को कहा गया, लेकिन कोरोना की वजह से एविएशन इंडस्ट्री बुरी तरह प्रभावित हुई। इस वजह से कई बार तारीख को आगे बढ़ाया गया और 15 सितंबर 2021 आखिरी तारीख निर्धारित की गई। 15 सितंबर 2021 तक टाटा और स्पाइसजेट ने एअर इंडिया को खरीदने के लिए बोली लगाई।

दो कंपनियों ने बोली लगाई थी तो टाटा को ही क्यों मिली एअर इंडिया?
टाटा ग्रुप ने स्पाइस जेट के चेयरमैन अजय सिंह से ज्यादा की बोली लगाई थी। इस तरह करीब 68 साल बाद एअर इंडिया घर वापसी कर गई है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, कॉमर्स मंत्री पीयूष गोयल और एविएशन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की कमेटी ने इस डील पर मुहर लगाई। सूत्रों के मुताबिक, एअर इंडिया का रिजर्व प्राइस 15 से 20 हजार करोड़ रुपए तय किया गया था।

सरकार एयरलाइंस में क्या-क्या बेच रही है?

सरकार एअर इंडिया की 100 फीसदी हिस्सेदारी बेच रही है। इसमें एअर इंडिया एक्सप्रेस की भी 100 फीसदी हिस्सेदारी शामिल है। साथ ही कार्गो और ग्राउंड हैंडलिंग कंपनी AISATS की 50 फीसदी हिस्सेदारी शामिल है।विमानों के अलावा एयरलाइन की प्रॉपर्टी, कर्मचारियों के लिए बनी हाउसिंग सोसायटी और एयरपोर्ट पर लैंडिंग और पार्किंग स्लॉट भी सौदे का हिस्सा होंगे।नए मालिक को भारतीय एयरपोर्ट्स पर 4,400 डोमेस्टिक और 1,800 इंटरनेशनल लैंडिंग और पार्किंग स्लॉट मिलेंगे। साथ ही विदेशी एयरपोर्ट पर भी करीब 900 स्लॉट मिलेंगे।इस डील के तहत एअर इंडिया का मुंबई में स्थित हेड ऑफिस और दिल्ली का एयरलाइंस हाउस भी शामिल है। मुंबई के ऑफिस की मार्केट वैल्यू 1,500 करोड़ रुपए से ज्यादा है।

कंपनी पर जो कर्ज है उसका क्या होगा?
31 मार्च 2019 तक कंपनी पर 60,074 करोड़ रुपए का कर्ज था। जनवरी 2020 में DIPAM द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक, एयरलाइंस को खरीदने वाले को 23,286 करोड़ रुपए का कर्ज चुकाना होगा। बाकी के कर्ज को सरकार की कंपनी एअर इंडिया एसेट होल्डिंग्स (AIAHL) को ट्रांसफर किया गया है।

10 फरवरी 1929 को जेआरडी टाटा को पायलट का लाइसेंस मिला था। टाटा पहले भारतीय थे जिन्हें प्लेन उड़ाने का लाइसेंस मिला।

इसे एअर इंडिया की घर वापसी क्यों कहा जा रहा है?
1932 में जेआरडी टाटा ने देश में टाटा एयरलाइंस की शुरुआत की थी, लेकिन दूसरे विश्वयुद्ध के बाद दुनियाभर में एविएशन सेक्टर बुरी तरह प्रभावित हुआ था। इस मंदी से निपटने के लिए योजना आयोग ने सुझाव दिया कि सभी एयरलाइन कंपनियों का राष्ट्रीयकरण कर दिया जाए।

मार्च 1953 में संसद ने एयर कॉर्पोरेशंस एक्ट पास किया। इस एक्ट के पास होने के बाद देश में काम कर रही 8 एयरलाइंस का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। इसमें टाटा एयरलाइंस भी शामिल थी। सभी कंपनियों को मिलाकर इंडियन एयरलाइंस और एअर इंडिया बनाई गई। एअर इंडिया को इंटरनेशनल तो इंडियन एयरलाइंस को डोमेस्टिक फ्लाइट्स संभालने का जिम्मा दिया गया। 68 साल बाद एक बार फिर एअर इंडिया का मालिकाना हक टाटा ग्रुप के पास आ गया है।

15 अक्टूबर 1932 को अपनी कराची में अपनी पहली उड़ान की तैयारी करते जेआरडी टाटा। ये उड़ान कराची से बॉम्बे के जुहू तक की थी।

देश के एविएशन सेक्टर में टाटा ग्रुप का क्या योगदान है?
15 अक्टूबर 1932 को देश में पहली बार फ्लाइट उड़ी थी। कराची से बॉम्बे (अब मुंबई) तक की इस उड़ान के पायलट टाटा ग्रुप के मालिक रहे जेआरडी टाटा थे। टाटा एविएशन का यह प्लेन एक कार्गो प्लेन था। हालांकि, 1911 में ही इलाहाबाद में एक ट्रायल फ्लाइट उड़ान भर चुकी थी। जो महज नौ किलोमीटर की उड़ान थी। 1946 में टाटा एयरलाइंस का नाम बदलकर एअर इंडिया कर दिया गया।

8 जून 1948 को पहली बार देश से कोई इंटरनेशनल फ्लाइट ऑपरेट की गई। ये उड़ान बॉम्बे से लंदन के बीच थी। ये उड़ान भी टाटा ग्रुप के एअर इंडिया विमान की ही थी। एअर इंडिया भारत ही नहीं बल्कि एशिया की पहली कंपनी बनी थी, जिसने एशिया और यूरोप के बीच फ्लाइट शुरू की थी। 1953 में सरकार ने एयरलाइंस कंपनियों के राष्ट्रीयकरण के साथ इस कंपनी का भी अधिग्रहण कर लिया।

8 जून 1948 को टाटा समूह के मालाबार प्रिंसेस विमान ने बॉम्बे से लंदन के लिए पहली बार उड़ान भरी थी। 8 हजार किलोमीटर से ज्यादा लंबी इस उड़ान में देश की कई अहम हस्तियों के साथ ही ब्रिटेन में भारत के हाई कमिश्नर कृष्ण मेनन भी सवार थे।

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