श्रीकृष्ण का जीवन प्रबंधन:

जब एक साथ कई काम करना हो तो जिम्मेदारियों को अलग-अलग हिस्सों में बांट लेना चाहिए

श्रीकृष्ण से सीख सकते हैं कैसे निभाएं पारिवारिक रिश्ते और मित्रता

भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से हम सीख सकते हैं कि कैसे अपने सारे काम पूरे करें, कैसे पारिवारिक रिश्ते और मित्रता निभाएं, कैसे अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करें। श्रीकृष्ण का पूरा जीवन यात्राओं, युद्धों और व्यवस्थाओं को ठीक करने में व्यतीत हुआ था। उनकी 16108 पत्नियां थीं, हर पत्नी से 10 बच्चे थे। फिर भी उन्होंने अपनी सभी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया।

श्रीकृष्ण को पारिवारिक जीवन के साथ ही द्वारिका का राज्य और असुरों का आतंक खत्म करना, समाज में सभी व्यवस्थाएं सही करना, जैसे काम करना थे। एक साथ कई काम करने होते थे। ऐसे में उन्होंने अपनी जिम्मेदारियों को अलग-अलग हिस्सों में बांट रखा था।

जब श्रीकृष्ण द्वारिका में रहते तो प्रजा की समस्याएं सुलझाते। फिर पत्नियों और बच्चों के साथ रहते। जब वे किसी युद्ध या यात्रा पर जाते तो परिवार रुक्मिणी संभालती थीं। राज्य का काम बलराम संभालते।

श्रीकृष्ण ने बताया है कि हमें अपनी जिम्मेदारियों को बांट लेना चाहिए। देश और समाज को सबसे पहले रखें। फिर अपना परिवार। ध्यान रखें जब देश और समाज सुरक्षित रहेगा तब ही हमारा परिवार भी सुरक्षित रहेगा। माता-पिता, गुरु, पत्नी और मित्रों के साथ हमें कैसे रहना चाहिए, ये हम श्रीकृष्ण से सीख सकते हैं।

माता-पिता का सम्मान करें

श्रीकृष्ण के पिता वासुदेव और माता देवकी थीं, लेकिन उनका पालन नंदबाबा और यशोदा ने किया था। श्रीकृष्ण ने हमेशा अपने माता-पिता की आज्ञाओं का पालन किया। कंस का वध करके वासुदेव और देवकी को स्वतंत्र करवाया। कृष्ण ने जन्म देने वाले और पालन करने वाले माता-पिता को बराबर सम्मान दिया। माता-पिता का सम्मान करने वाली संतान हमेशा सुखी रहती है।

गुरु की आज्ञा का पालन करें

श्रीकृष्ण ने गुरु सांदीपनि से शिक्षा ग्रहण की थी। शिक्षा पूर्ण होने पर गुरु सांदीपनि और गुरुमाता ने श्रीकृष्ण से अपना खोया हुआ पुत्र दक्षिणा में मांगा था। उनका पुत्र मर चुका था, लेकिन श्रीकृष्ण अपने गुरु की इच्छा पूरी करने के लिए यमराज के पास गए और गुरु के पुत्र को वापस लेकर आए।

जीवन साथी के साथ प्रेम से रहें

श्रीकृष्ण की 16108 रानियां थीं। इनमें से 8 प्रमुख थीं। श्रीकृष्ण के दांपत्य जीवन में हमेशा प्रेम और शांति बनी रहती थी। वे अपनी हर पत्नी के प्रेम से रहते थे और सभी को पर्याप्त समय भी देते थे। सभी पत्नियों की इच्छा का मान रखते थे और सभी का सम्मान करते थे।

बुरे समय में मित्रों की मदद करें

अर्जुन, सुदामा और श्रीदामा श्रीकृष्ण के प्रमुख मित्र थे। जब-जब श्रीकृष्ण के मित्रों पर कोई मुसीबत आई, तब-तब श्रीकृष्ण ने उनकी हरसंभव मदद की। श्रीकृष्ण द्रौपदी को सखी कहते थे और हर कदम श्रीकृष्ण ने द्रौपदी की मदद की।

विपरीत समय में धैर्य और बुद्धिमानी से काम लें

महाभारत युद्ध में श्रीकृष्ण ने अपनी बुद्धिमानी और कूटनीति से पांडवों को हर बार बचाया। पांडव धर्म के साथ थे, इसी वजह से श्रीकृष्ण उन्हें बचाने के लिए बुद्धिमानी का सहारा लेते थे। युद्ध में जब-जब पांडवों पर कोई मुसीबत आई, श्रीकृष्ण ने अपनी नीति से उसका हल निकाला। भीष्म, द्रोणाचार्य आदि अनेक महारथियों के वध का रास्ता श्रीकृष्ण ने ही पांडवों को सुझाया था। श्रीकृष्ण ने हर परिस्थिति में धैर्य बनाए रखा और बुद्धिमानी से समस्याओं को सुलझाया।

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