सीरियस मेन: नवाजुद्दीन और सुधीर मिश्रा की शानदार जुगलबंदी

-ए॰ एम॰ कुणाल

सुधीर मिश्रा द्वारा निर्देशित फिल्म ‘सीरियस मेन’ ओटीटी प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हो चुकी है। वही इस हफ़्ते की दूसरी फ़िल्म अभिनेता ईशान खट्टर और अभिनेत्री अनन्या पांडे की फिल्म “खाली पीली” ओटीटी प्लेटफ़ोरम जी5 के साथ-साथ गुरुग्राम और बेंगलुरु के सिनेमाघरों पर रिलीज हुई है। कोरोना काल में “खाली पीली” पहली फ़िल्म है, जिसे सिनेमाघरों में रिलीज़ किया गया है।ऐसे में सवाल तो बनता है कि सुधीर मिश्रा ने अपनी फ़िल्म सुनहरे पर्दे पर क्यों नहीं रिलीज़ की ?

सुधीर मिश्रा की फ़िल्म पत्रकार मनु जोसफ के नॉवेल ‘सीरियस मैन’ पर आधारित है। इस फ़िल्म में अभिनेता नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी जाति, वर्ग और वर्ण के आधार पर बंटे हुए समाज की पोल खोलते नज़र आते है। अदाकारी के साथ-साथ नवाज़ुद्दीन स्टोरी नरेटर भी हैं। नवाज़ुद्दीन की प्रभावशाली आवाज और तीखा व्यंग्य फ़िल्म की जान है।

‘सीरियस मेन’ में नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी एक ऐसे दलित पिता की भूमिका में है, जो अपने बेटे को वह सबकुछ देना चाहता है, जो उसे नहीं मिल पाया। उनका किरदार एक लाचार बाप का नहीं है, जैसा कि आमतौर पर सिनेमा में एक दलित को दिखाया जाता है। वह एक तेज तर्रार व्यक्ति है। वह अपना हक़ छिन कर लेना जानता है और अपने माँ-बाप की तरह घुट-घुट कर जीना नहीं चाहता है। “कर ले जुगाड़ कर ले, कर ले कोई जुगाड़” के तर्ज़ पर नवाजुद्दीन वह सब करते है, जो एक पिता अपने बच्चे के लिए करना चाहता है, पर कर नहीं पाता।

फ़िल्म की कहानी दलित मणि अय्यन ( नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी) और उसके बेटे आदी (अक्षत दास) की है, जो 2जी के जमाने से ऊपर उठ कर 4जी में जाना चाहते हैं। वह नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च में संस्थान के प्रमुख डॉ. आचार्य (नासेर) के पीए के तौर काम करता है। उसका जीवन अभावों में गुजरा है। वह चाहता है कि उसके बेटा को वह सब मिले, जो उसकी पिछली सौ पीढ़ियों से छीना गया है। वह तय करता है कि उसने इस पक्षपाती समाज से जो कुछ नहीं पाया वह अपने बेटे को दिलवाकर रहेगा। वह अपने बेटे के स्कूल एडमिशन के लिए अपने बॉस डॉ. आचार्य (नासेर) से सिफ़ारिश करवाता है पर वह मदद नहीं करते है, जिसके कारण ऊंची जात के लोगों के प्रति उसकी नफ़रत और बढ़ जाती है। जब ईमानदारी से अय्यन के बेटे का स्कूल में एड्मिशन नहीं मिल पाता है तो वह चालबाज़ी पर उतर जाता है। बाप-बेटे मिलकर दुनिया को बेवकुफ़ बनाते है। यहाँ तक कि अय्यन की पत्नी (इंदिरा तिवारी) को भी उनके गेम प्लान का पता नहीं होता है। पिता के लाख समझाने के बावजूद आदी अपनी स्कूल फ़्रेंड सयाली (कस्तूरी जगदीश जंगम) को सच्चाई बता देता है। इस बीच आदी एक साधारण बच्चा से जूनियर अब्दुल कलाम बन जाता है। लोग उसकी तुलना आइंस्टीन और आंबेडकर से करने लगते है। नेता केशव धावरे (संजय नार्वेकर) को जब आदी उर्फ़ जूनियर अब्दुल कलाम के बारे में पता चलता है तो वह अपनी बेटी अनुजा (श्वेता बासु प्रसाद ) के राजनीतिक करियर के लॉच पैड के तौर पर उसका इस्तेमाल करते है। इस बीच अंतरिक्ष में एलियन और ब्लैक होल के नक़ली रिसर्च के बारे में अय्यन की पता चल जाता है। वह डॉ.आचर्या से बदला लेने के लिए बात लीक कर देता है। जिसके कारण डॉ.आचर्या की नौकरी चली जाती है। उसके कुछ दिनों के बाद डॉ.आचर्या के सामने अय्यन और उसके बेटे का राज खुल जाता है। अंत में वही डॉ.आचर्या उनकी मदद करते है, जिससे अय्यन नफ़रत करता है। डॉ.आचर्या आदि उर्फ़ जूनियर अब्दुल कलाम के लिए एक ‘सुंदर एक्जिट प्लान बनाते है । उस एक्जिट प्लान के लिए आपको पूरी फ़िल्म देखनी होगी।

फ़िल्म व्यंग्यात्मक है लेकिन जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ती है, यह मार्मिक होती चली गयी है। पिता और पुत्र के बीच की कमेस्ट्री काफ़ी भावुक करती है। निर्देशक सुधीर मिश्रा ने अपनी फ़िल्म के माध्यम से शिक्षा व्यवस्था की खामियां, माता पिता की अति महत्वकांक्षाएं, उच्चे पदों पर बैठे लोगों को जातिगत भेदभाव, री डेवलोपमेन्ट के बहाने दलितों को विस्थापित करने का राजनीतिक चाल, जैसे मुद्दों को उठाने का प्रयास किया गया है।

अभिनय की बात करें तो नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने एक बार फिर से प्रभावित किया है। नवाजुद्दीन और अक्षत दास के बीच की बाप-बेटे की कमेस्ट्री हो या अपने बेटे की स्कूल फ़्रेंड सयाली (कस्तूरी जगदीश जंगम) को धमकाने वाला सीन हो, नवाज़ ने कमाल का अभिनय किया है। इस व्यंग्यात्मक फ़िल्म की यूएसपी उनका शानदार डॉयलॉग है।फ़िल्म के एक सीन नवाज़ अपनी पत्नी से कहते है- “मैंने अपनी महत्वाकांक्षा के सर्कस में अपने बेटे को ही जोकर बना दिया है।”

नवाज़ुद्दीन के अलावा उनके बेटे की भूमिका में बाल कलाकार अक्षर दास ने अच्छा काम किया है। अक्षर दास की तुलना फिल्म “तारे जमीं पे“ के अभिनेता दर्शन सफ़ारी से की जा सकती है। इतने मंझे हुए कलाकारों के बीच अक्षर दास अपनी पहचान बनाने में सफल रहे है। नवाजुद्दीन और अक्षत के बीच के कुछ दृश्य दिल को छूते हैं। उनके अलावा सहायक कलाकार के रूप में नासेर, इंदिरा तिवारी, श्वेता बासु प्रसाद, संजय नार्वेकर ने अच्छा साथ दिया है।

नवाजुद्दीन और सुधीर मिश्रा, दोनों को ही इक्स्पेरिमेंट के लिया जाना जाता है। उन दोनों की जुगलबंदी के कारण एक बेहतरीन फ़िल्म बनी है। लीक से हट कर फ़िल्म बनाने के लिए मशहूर सुधीर मिश्रा बिना बॉलीवुड के तड़के डाले हुए एक ज्वलंत विषय पर फ़िल्म बनाने में कामयाब हुए हैँ। लेखक भावेश मंडल और अभिजीत खुमन का स्क्रीन प्ले काफ़ी कसा हुआ है। आमतौर पर एक नॉवेल पर फ़िल्म बनाते हुए स्टोरी काफ़ी स्लो होती है पर सुधीर मिश्रा का निर्देशन और अच्छी पटकथा के कारण दो घंटे की फ़िल्म आपको छोटी नज़र आएगी। फ़िल्म बैकग्राउंड म्यूजिक अच्छा है। डीओपी ऐलेग्ज़ैंडर ने मुंबई की चाल में रहने वालों की ज़िंदगी को काफ़ी क़रीब से दिखाया है।

फ़िल्म में एक ही गाना है-“रात काला छाता जिस पर इतने सारे छेद, तेज़ाब उढ़ेला किसने इस पर जान न पाए भेद..“ पर यक़ीन मानिए आपको गाने के तड़के की ज़रूरत महसूस नहीं होगी।

फ़िल्म – सीरियस मैन
निर्देशक – सुधीर मिश्रा
कलाकार- नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी, इंदिरा तिवारी, अक्षत दास, नासेर, श्वेता बासु प्रसाद, संजय नार्वेकर, कस्तूरी जगदीश जंगम।
ओटीटी- नेटफ्लिक्स

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