शनि-इतवार महाराष्ट्र में कहां रहना पसंद करते हैं नितिन गडकरी?

केंद्रीय मंत्री होने के कारण उनका काफी समय दिल्ली में बीतता है, लेकिन इसके बावजूद उनका लगाव और जुड़ाव नागपुर से लगातार बना रहता है। इसी वजह से भाजपा ने उन्हें नागपुर से तीसरी बार लोकसभा चुनाव का उम्मीदवार बनाया है।

उन्होंने आज आखिरी दिन नागपुर लोकसभा सीट पर नामांकन दाखिल करने से पहले बड़ी रैली करके विरोधियों का जता दिया कि उन्हें हैट्रिक की उम्मीद है। गौरतलब है कि नितिन गडकरी पिछले दो बार से नागपुर से जीतते आएं है, इसलिए वह बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं।  हाल ही में उन्होंने दावा किया था कि वह कम से कम 5 लाख वोट के मर्जिन से जीतेगे। उनका कहना है कि वह न तो नागपुर को कभी भूले हैं और न ही कभी भूलेंगे। उन्होंने यहां तक कह दिया कि अगर वह सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री के रुप में काम कर रहे हैं, तो इसका श्रेय मतदाताओं को जाता है।

नागपुर से खास लगाव

साल 2013 में भाजपा का अध्यक्ष पद का दूसरा कार्यकाल पूरा करने के बाद उन्होंने लोकसभा में उतरने का फैसला किया। भाजपा ने उन्हें नागपुर सीट दी। दिलचस्प बात यह है कि नागपुर आरआरएस का गढ़ है, इसके बावजूद हमेशा कांग्रेस का ही वर्चस्व रहा है। इस सीट पर भाजपा ने सिर्फ तीन बार ही जीत हासिल की है। दो बार तो नितिन गडकरी जीते हैं और एक बार 1996 में भाजपा के बनवारी लाल जीते थे। नितिन गडकरी इस बात को जानते हैं, इसलिए उन्होंने अपने दोनों कार्यकाल में जनमानस से जुड़ने का फैसला किया। दिलचस्प बात ये है कि वह चाहे कहीं भी हो, लेकिन शनिवार और इतवार वह अपने क्षेत्र नागपुर में ही बिताते हैं।

शायद यही वजह है कि नितिन गडकरी अपनी जीत को लेकर आश्वस्त है क्योंकि वहां के लोग उनके साथ अपना जुड़ाव महसूस करते हैं। उन्होंने कई बार कहा है कि वह 20 प्रतिशत राजनीति के लिए काम करते हैं और 80 प्रतिशत समाजसेवा के लिए काम करते हैं।

पार्टी में कद्दावर नेता

भाजपा में वह ऐसे नेता रहे हैं, जिनके लिए पार्टी का संविधान तक बदला गया था। भाजपा अध्यक्ष का एक कार्यकाल पूरा होने के बाद किसी अन्य नेता को अध्यक्ष बनाया जाता है, लेकिन नितिन गडकरी को दोबारा अध्यक्ष बनाने के लिए पार्टी ने अपने कायदे कानून बदल दिए थे।

हालांकि जानकारों का मानना है कि गडकरी की छवि विकास पुरुष की बन गई है, इसलिए पार्टी ने इन्हें संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति में शामिल नहीं किया गया। कई बार ये भी अफवाहें सुनने को मिलती है कि उनका अमित शाह के साथ विचारों का तालमेल नहीं बैठ पाता।

केंद्र या पार्टी में उनकी स्थिति कैसी भी हो, लेकिन नागपुर के लिए उन्होंने कई विकास के काम किए हैं। नागपुर को लेकर उनका कहना है कि 10 साल में हुए काम तो बस रील मात्र है, असली फिल्म शुरु होना बाकी है।

अब 4 जून को पता चल पाएगा कि नागपुर की जनता गडकरी को हैट्रिक दिलाती है या फिर कांग्रेस की वापसी होगी।

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