अफगानिस्तान में तालिबान का सपोर्ट कर रही इस नई ‘तिकड़ी’ से बढ़ेगी भारत की टेंशन? समझें कूटनीति

 

 

अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा हो गया है। अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी कुछ देशों के लिए जहां मौका है, वहीं कुछ देशों के लिए चिंता की बात। 20 साल बाद तालिबान का अफगानिस्तान पर कब्जा होने के बाद दुनिया के बड़े देश कई हिस्सों में बंट गए हैं। एक ओर जहां भारत, अमेरिका, इंग्लैंड और फ्रांस समेत कई देश हैं जो इस मामले पर चिंता व्यक्त कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर चीन, पाकिस्तान और रूस हैं, जो मन ही मन खुश हो रहे हैं। ऐसे में अफगानिस्तान संकट पर पाकिस्तान और चीन के साथ रूस का जाना भारत के लिए किसी टेंशन से कम नहीं है।

दरअसल, चीन और पाकिस्तान पर्दे के पीछे से शुरू से ही तालिबान का समर्थन कर रहे हैं, मगर दुनिया के सामने यह दिखाने की कोशिश करते रहे कि वह अफगानिस्तान में शांति कायम करना चाहते हैं। कई रिपोर्टों में तो यह तक कहा गया कि पाकिस्तान न सिर्फ तालिबान को हथियारों से मदद कर रहा था, बल्कि पाक वायुसेना भी अफगानिस्तान में तालिबान का काम आसान बना रहा था। तालिबान के साथ चीन, पाकिस्तान और रूस की लागातार बैठकों से ही यह स्पष्ट हो गया कि अफगानिस्तान में तालिबान को इस तिकड़ी का साथ मिल रहा है। रूस की दिलचस्पी की वजह अमेरिका बताई जा रही है। रूस चाहता रहा है कि अफगानिस्तान से अमेरिका का दबदबा खत्म हो जाए। लेकिन रूस क्योंकि भारत का पुराना सहयोगी और अच्छा मित्र रहा है, ऐसे में चीन और पाक से उसकी नजदीकी भारत के लिए चिंता की बात होगी।

 

तालिबान को लेकर इस तिकड़ी का क्या स्टैंड रहा है, इसे इस बात से भी समझा जा सकता है कि ताजा घटनाक्रम में अफगानिस्तान में रूस के राजदूत ने दावा किया है कि तालिबान ने पहले की अपेक्षा काबुल को ज्यादा सुरक्षित कर दिया है। इस बात का खुलासा एक रिपोर्ट में हुआ है। वहीं, चीन ने कहा कि वह तालिबान से दोस्ताना रिश्ते कायम करने के लिए तैयार है। विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने कहा कि स्वतंत्र रूप से अपने भाग्य का निर्धारण करने के अफगान के लोगों के अधिकार का चीन सम्मान करता है और अफगानिस्तान के साथ मैत्रीपूर्ण और सहयोगात्मक संबंध विकसित करना जारी रखना चाहता है। उधर, पाकिस्तान लगातार सीधे तौर पर तालिबान का समर्थन करता रहा है। खुद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान कह चुके हैं कि अफगान ने गुलामी की अपनी बेड़ियों को तोड़ दिया है।

इधर, चीन की नजर अफगानिस्तान के दुर्लभ खनिजों पर नजर है। इसके अलावा, पूर्वी लद्दाख में जारी सीमा विवाद के बीच चीन अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल भारत के खिलाफ भी कर सकता है और वह तालिबान की मदद से ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट को भी खत्म करना चाहता है। बता दें कि ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ETIM), जिसे अल-कायदा का सहयोगी बताया जाता है, चीन के अस्थिर शिनजियांग प्रांत का एक उग्रवादी समूह है। यह प्रांत की आजादी के लिए लड़ रहा है, जो करीब एक करोड़ उइगुर मुसलमानों का घर है। वहीं, पाकिस्तान भी अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल भारत के खिलाफ करने की कोशिश करेगा, जैसा कि वह पहले भी करता आया है।

रूस क्योंकि अमेरिका का कट्टर दुश्मन रहा है, इसलिए वह अफगानिस्तान में चीन और पाकिस्तान के सुर में सुर मिलाता नजर आ रहा है। अगर तालिबान के राज में अफगानिस्तान में चीन और पाकिस्तान का दबदबा बढ़ता है तो फिर भारत की अफगानिस्तान में पकड़ कमजोर हो जाएगी और भारत के प्रोजेक्ट्स पर भी अनिश्चितता के बादल मंडराने लगेंगे। हालांकि, तालिबान ने अभी तक दुनिया को यह भरोसा दिलाया है कि उससे किसी देश को खतरा नहीं है और अफगानिस्तान में भारतीय परियोजनाओं को भी सराहा है।

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