RSS – BJP में सीधा टकराव ! मोहन भागवत ने कहा – “75 की उम्र हो तो पीछे हटें”, अमित शाह बोले – “ऐसा कुछ नहीं”

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत के हालिया बयान ने भारतीय राजनीति में एक नई बहस छेड़ दी है। उन्होंने सार्वजनिक मंच से 75 वर्ष की उम्र पार कर चुके लोगों को ‘सम्मानजनक विदाई’ देने की बात कही। यह बयान ऐसे वक्त में आया है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसी साल सितंबर में 75 वर्ष के हो जाएंगे।
वहीं, इस बयान के उलट गृह मंत्री अमित शाह पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि भारतीय जनता पार्टी में कोई ’75 वर्ष रिटायरमेंट नीति’ नहीं है। ऐसे में सवाल उठ रहा है—क्या संघ और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के बीच मतभेद खुलकर सामने आ गए हैं?

भागवत का बयान: “75 की उम्र हो तो पीछे हट जाना चाहिए”

नागपुर में एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में मोहन भागवत ने कहा:

“जब आप 75 के हो जाएं, तो इसका मतलब है कि अब रुक जाइए और दूसरों के लिए रास्ता छोड़िए।”

उन्होंने आरएसएस विचारक मोरोपंत पिंगले का हवाला देते हुए यह भी कहा कि 75 वर्ष की उम्र में शॉल ओढ़ना यानी नेतृत्व से हटकर मार्गदर्शन की भूमिका निभाना चाहिए। इस बयान को राजनीतिक गलियारों में प्रधानमंत्री मोदी की ओर परोक्ष संकेत के रूप में देखा जा रहा है।

“मोदी 75 साल का होने के बाद भी सक्रिय राजनीति करेंगे” – अमित शाह

हालांकि, बीजेपी ने इन सभी अटकलों को खारिज करते हुए इसे केवल एक सामान्य विचार बताया है। बीते साल मई 2024 में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने साफ किया था कि पीएम मोदी 75 साल का होने के बाद भी सक्रिय राजनीति से रिटायर नहीं होने वाले हैं। उन्होंने कहा था,

“मैं यह साफ कर देना चाहता हूं कि भाजपा के संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है और मोदी जी 2029 तक देश की अगुवाई करेंगे और मोदी जी आने वाले चुनावों में भी नेतृत्व करेंगे। इंडी अलायंस के लिए कोई खुशखबरी नहीं है…। वो झूठ फैलाकर चुनाव नहीं जीत सकते।”

यह बयान उस समय आया था जब विपक्ष की ओर से यह सवाल उठाए जा रहे थे कि भाजपा के अंदर 75 वर्ष की उम्र के बाद नेताओं को रिटायर करने की अनौपचारिक परंपरा रही है, तो क्या मोदी पर भी यही नियम लागू होगा।

बीजेपी का संविधान क्या कहता है?

BJP के ‘संविधान और नियमावली’ में 75 वर्ष की उम्र पर कोई स्पष्ट प्रतिबंध नहीं है। फिर भी 2014 के बाद यह धारणा बनी कि 75 पार करने वाले नेताओं को सक्रिय राजनीति से हटा दिया जाएगा। लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, जसवंत सिंह जैसे दिग्गजों को ‘मार्गदर्शक मंडल’ में भेजा गया।

इससे ये सवाल खड़ा होता है कि क्या यह अनौपचारिक परंपरा अब नरेंद्र मोदी पर भी लागू होगी?

राजनीतिक हलचल और विपक्षी प्रतिक्रियाएं

भागवत के बयान के बाद विपक्षी दलों को भाजपा और संघ पर तंज कसने का मौका मिल गया। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने लिखा:

“बेचारे अवार्ड-जीवी प्रधानमंत्री! सरसंघचालक ने याद दिलाया कि 17 सितंबर 2025 को वे 75 के हो जाएंगे।”

शिवसेना (UBT) के संजय राउत ने पूछा:

“मोदी जी ने आडवाणी, जोशी और जसवंत सिंह को 75 पार करने पर साइडलाइन कर दिया था। अब क्या वो खुद पर यही नियम लागू करेंगे?”

प्रियंका चतुर्वेदी ने इसे “RSS और BJP के बीच नेतृत्व को लेकर संभावित बदलाव का संकेत” बताया।

RSS और BJP में मतभेद या रणनीतिक संतुलन?

मोहन भागवत और अमित शाह के बयानों में साफ विरोधाभास है। एक ओर RSS नेतृत्व नैतिक सीमाओं की बात कर रहा है, वहीं BJP इसे सिरे से नकार रही है। यह न केवल संगठनात्मक मतभेद को उजागर करता है, बल्कि 2029 तक सत्ता के संतुलन को लेकर गहराते तनाव की ओर भी संकेत करता है।

आगे क्या?

  • क्या भागवत का बयान सिर्फ सैद्धांतिक विचार था या राजनीतिक संदेश?
  • क्या शाह का बयान संघ के उस विचार से टकराता है जिसे वह दशकों से आगे बढ़ाता आया है?
  • क्या 2025 तक संघ और भाजपा में नेतृत्व परिवर्तन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है?

इन सवालों के जवाब अगले महीनों में सामने आ सकते हैं, लेकिन फिलहाल इतना साफ है कि बीजेपी और संघ के शीर्ष दो चेहरों के बीच वैचारिक टकराव अब सार्वजनिक मंचों पर आ चुका है।

 

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