रामचरितमानस पोथी नहीं, सनातन धर्म की ज्योति है – मुरारी बापू

 

– “मानस अक्षयवट” राम कथा का तीसरा दिन
– भक्तिरस में डूबे श्रोता, भजनों पर खूब झूमें भक्तगण

प्रयागराज। गंगा में स्नान की महिमा है, यमुना के पान की महिमा है और सरस्वती के गान की महिमा है। भक्तों को गंगा में स्नान यमुना के जल को पीकर और सरस्वती का गान करने से पुण्य मिलता है। गंगा परमात्मा की विभूति है, इसमें पूजा सामग्री डालकर गंदा नहीं करना चाहिए। अयोध्या की सरयू में ध्यान की महिमा है, गोदावरी में ज्ञान और रेवा के तट पर दान की महिमा है। यह बात कथा मर्मज्ञ ने सोमवार को राम कथा “मानस अक्षयवट” के तीसरे दिन सोमवार को कथा के दौरान कही। संत कृपा सनातन संस्थान, नाथद्वारा की ओर से आयोजित कथा में मोरारी बापू ने कहा कि तीर्थराज में कुंभ के समय भक्त गंगा और यमुना की पूजा करते है। पूजा सामग्री को जल में प्रवाहित करते हैं, जिससे गंगा, यमुना अस्वच्छ हो रही है। हमें गंगा को गंदा नहीं करना चाहिए। गंगा और यमुना में भाव के पुष्प चढ़ाने चाहिए। गंगा गतिमान मंदिर है, इसे स्वच्छ रखना चाहिए।

मोरारीबापू ने कहा कि जिसका ध्यान करो, उसकी ऊर्जा आपमें आने लगती है। रावण वेश बदलकर सीता जी को पाना चाहता था, दो दिन तक राम का वेश धारण करने के लिए ध्यान किया तो राम नाम से बाकी सब चीजें उसे छोटी प्रतीत होने लगी। वह विभीषण को राजपाट देने, इंद्र को सारी संपदा वापस देने और मंदोदरी को माँ के समान मानने लगे गया था।

चांद, सूरज और पृथ्वी भी नहीं रही, अक्षयवट खड़ा रहा-

मोरारीबापू ने “मानस अक्षयवट” कथा के दौरान अक्षयवट की महिमा का गान करते हुए बताया कि जब सारी दुनिया प्रलय से खत्म हो गई थी। जब चाँद, सूरज और पृथ्वी भी नहीं बची थी, तब भी “अक्षयवट” अक्षय था। इस व्योम में जितनी भी निहारिकायें थी, जो कुछ भी था, खत्म हो गया, तब भी अक्षयवट था और उसके एक पत्ते मैं प्रभु विश्राम कर रहे थे। इस भूमि पर अक्षयवट का दर्शन करते हुए, यमुना की तरंगों को देखते हुए कथा का पाठ हो रहा है। “अक्षयवट” शाश्वत, चिरन्तन और अविनाशी है, जो हमें प्रेरणा देने के लिए खड़ा है। बापू कहते है कि तुलसीदासजी ने रामचरितमानस में अक्षयवट के स्पर्श की महिमा बताई है। इसे देख लेने भर से ही पूण्य मिलता है। अक्षयवट के पूजा का विधान नहीं है।

अक्षयवट को नेत्रों से स्पर्श करो, उसकी भी बड़ी महिमा-

अक्षयवट का हाथों से नहीं, नेत्रों से स्पर्श करों। जिस स्पर्श से अंग-अंग पुलकित हो जाए उसकी महिमा है। बापू कहते हैं हम अक्षयवट को वाणी और श्रवण से स्पर्श कर रहे हैं। स्पर्श को आंखे पुजारी होनी चाहिए, शिकारी नहीं। आंखे आरती वाली होनी चाहिए। अगर आंखे शिकारी वाली होगी तो पतन भी कर सकती है। इन्द्रियों के द्वार बहुत प्रबल होते हैं। प्रत्येक व्यक्ति को मर्यादा और संयम में रहना चाहिए। संयम गुरुकृपा और भक्ति से आता है।

रामचरितमानस पोथी नहीं, सनातन धर्म की ज्योति है-

बापू कहते है कि रामचरितमानस पोथी नहीं, सनातन धर्म की ज्योति है। पोथी पुरानी भी हो सकती है, लेकिन ज्योति पुरानी नहीं हो सकती है। यद्यपि यह स्वयं प्रकाशमान है, इसमें न घी, न बाती और न दिया कि जरूरत है। यह जो चाँद, सूरज उगते है, मानस की ज्योति में अपनी सार्थकता लिए प्रकाश उड़ेल रहे हैं। कलयुग में नाम प्रभाव है, पोथी के बिना कुछ भी नहीं। मानस के बिना भी कुछ नहीं। व्यासपीठ हम सब की मालिक है। बापू मेहर बाबा का जिक्र करते हुए कहते हैं कि जैसे खंभे को खड़ा रखने के लिए उसकी जड़ों में कुछ गाढ़ना पड़ता है, उसी प्रकार यदि प्रेम भक्ति के खंभे को खड़ा रखना है तो दृढ़ता से बहुत विश्वास प्रेम भक्ति की जड़ों में डालना पड़ता है। यह विश्वास है, वही अक्षयवट है।

हमारी शाखाओं पर झूलों , काटने की चेष्टा मत करो

मोरारीबापू कहते है सबके धर्म और देवताओं की अपनी महिमा है। क्यों धर्मांतरण करवाते हो, क्यों दशांतर करवाते हो। सबकी अपनी – अपनी महिमा है । बापू कहते हैं हमारी शाखाओं पर झूलों, उस पर घोंसला बनाओं लेकिन उनको काटने की चेष्टा मत करो। सिर्फ प्रयाग ही नहीं पूरा देश संगम है। यह संगमी संस्कृति है। राम कथा धर्म सभा नहीं, प्रेम सभा है। मोहब्बत करते हो तो आओ, खुला है मोहब्बत का मेहखाना।

सत्संग के होते है कई रूप, माँ से प्रेम भरी बातें भी सत्संग

“मानस अक्षयवट” में मोरारीबापू ने कहा कि सत्संग के कई रूप होते हैं। सत्संग से व्यक्ति में शौर्य और धैर्य आता है। बापू ने कहा कि व्यक्ति को मन के साथ सत्संग करना चाहिए, हमारे संतों ने मन के साथ सत्संग किया है। हमें गुरु के द्वारा मिले हुए मंत्र से सत्संग करना चाहिए अर्थात अच्छे विचार से सत्संग करना चाहिए। हमें मंदिर का सत्संग यानी किसी पवित्र स्थान पर बैठकर चिंतन करना चाहिए। बापू कहते हैं कि मूर्ति का सत्संग करना चाहिए, जिसको मानते हो उसकी मूर्ति का सत्संग करो। माँ से सत्संग करो, यानी माँ से शांति से वार्तालाप करना चाहिए, वह भी सत्संग है। हमें मौन से, मुक्त होकर सत्संग करना चाहिए। जहां कोई प्रतिबन्ध नहीं हो। बापू कहते हैं हमें मानस का सत्संग करना चाहिए। अगर कोई नहीं है तो अंत में हमें मारुति का सत्संग करना चाहिए।

वंचितों की बेटियों की हो शादी, व्यास पीठ के सामने डाले माला

“मानस अक्षयवट” कथा के दौरान बापू ने कहा कि आसपास के जितने भी वंचित है, दलित है, नाविक है उनकी बेटियों की शादी व्यासपीठ के सामने होनी चाहिए। बापू ने कहा कि मेरी ईच्छा है कि कोई भी वंचित, नाविक अपनी बेटी की शादी करवाना चाहता है, उनकी शादी व्यासपीठ के सामने हो। दूल्हा-दुल्हन व्यासपीठ के आगे माला पहनाकर अपने दाम्पत्य जीवन की शुरुआत करे। अगर कोई मुस्लिम भी अपनी बेटी की शादी व्यासपीठ के आगे करवाना चाहता है तो उनका भी स्वागत है।

झूमने और नाचने लगे श्रोता, जब मोरारीबापू ने किए भजन

कथा का तीसरा दिन भी भक्ति और भाव विभोर कर देने वाला रहा। “मानस अक्षयवट” के दौरान बापू ने भजन करने शुरू किए तो पूरा पांडाल झूम उठा। पांडाल में बैठे श्रोता गरबा करने लगे। पांडाल में ऐसा लग रहा था मानो नवरात्रि चल रही हो और भक्त माँ दुर्गा की भक्ति में लीन हो। कथा सुनते हुए कई श्रोता भाव विभोर हो गए और उनके आंखों से आंसू छलक उठे।

व्यासपीठ पर हुई अनूठी शादी, बापू को साक्षी मानकर लिए फेरें

“मानस अक्षयवट” कथा के दौरान व्यासपीठ पर अद्भुत नज़ारा देखने को मिला, जब व्यासपीठ को मंडप और मोरारी बापू को साक्षी मानते हुए कथा के मुख्य आयोजक मदन पालीवाल की पुत्री माधवी पालीवाल और विष्णु कान्त व्यास ने व्यास पीठ के सात फेरें लिए और एक दूसरे को वरमाला पहनाई। व्यासपीठ पर फेरें लेने के इस दुर्लभ नज़ारे के हज़ारों लोग साक्षी बनें और वर-वधु को आशीर्वाद प्रदान किया। वर – वधु ने फेरे लेने लेने बाद बापू की आरती उतारी और उनके आगे नतमस्तक होकर आशीर्वाद लिया। इससे पूर्व वर की बारात व्यासपीठ पर नाचते – गाते बैंड बाजे के साथ पहुंची थी। व्यासपीठ पर इस तरह की सादगी भरी शादी कथा श्रवण करने वालों के लिए कौतूहल और प्रेरणादायी बनीं।

 

“मानस अक्षयवट” कथा अवसर पर कथा के मुख्य आयोजक मदन पालीवाल, रविन्द्र जोशी, रूपेश व्यास,विकास पुरोहित प्रकाश पुरोहित, मंत्रराज पालीवाल, सतुआ बाबा सहित बड़ी संख्या में संत कृपा सनातन संस्थान से स्वयंसेवक व श्रद्धालु मौजूद थे।

कैलाश विजयवर्गीय और टीवी कलाकार विपुल भी पहुंचे

“मानस अक्षयवट” कथा के दौरान भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और टीवी कलाकार विपुल रॉय भी कथा श्रवण करने पहुंचे। दोनों मोरारीबापू के आगे नतमस्तक हुए और आशीर्वाद लिया। कैलाश विजयवर्गीय ने बापू को शॉल भेंट की।

यह रहेगी यातायात व्यवस्था

कथा में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए अक्षय मेला घाट से सुबह 7 से शाम को 4:30 बजे तक निशुल्क नाव सुविधा रहेगी। संत कृपा सनातन संस्थान ने श्रद्धालुओं से अपील की है कि नाव में बैठने से पूर्व लाइफ जैकेट पहने और एक बार में 10 से ज्यादा यात्री नहीं बैठे। इसके अलावा बस सुविधा में सुबह 7 बजे से परेड ग्राउंड और रेलवे स्टेशन गेट नम्बर 1, होटल स्वागतम से सुबह 7 से शाम 5 बजे तक निशुल्क 50 बसे लगाई गई है।

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