आज का इतिहास

79 साल पहले हुई उस भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत, जिसने अंग्रेजों को हिन्दुस्तान को आजादी देने के लिए मजबूर किया

 

 

दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटिश फौजों की दक्षिण-पूर्व एशिया में हार होने लगी थी। जापान लगातार मित्र देशों पर हमले कर रहा था। इसी दौरान मित्र देशों ने ब्रिटेन पर दबाव डालना शुरू किया कि वो भारतीयों का समर्थन प्राप्त करने के लिए कुछ पहल करे।

युद्ध में भारतीयों का सहयोग ब्रिटेन के लिए बहुत जरूरी था। ब्रिटेन ने बिना किसी परामर्श के भारत को युद्ध में झोंक दिया था। इससे कांग्रेस और ब्रिटिश सरकार के बीच गतिरोध पैदा हो गया था। इसी गतिरोध को समाप्त करने के लिए मार्च 1942 में ब्रिटिश संसद के सदस्य सर स्टेफर्ड क्रिप्स को भारत भेजा गया। इसे क्रिप्स मिशन कहा जाता है।

इस मिशन में कई ऐसे प्रस्ताव थे जो भारतीयों को मंजूर नहीं थे, इसी वजह से ये मिशन सफल नहीं हो सका। क्रिप्स मिशन की असफलता के बाद कांग्रेस कमेटी ने 8 अगस्त, 1942 को मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान में एक बैठक बुलाई। इसी बैठक में प्रस्ताव पास किया गया कि भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के लिए ये जरूरी हो गया है कि ब्रिटिश शासन को भारत से उखाड़ फेंका जाए।

गांधी जी ने इसी सभा में करो या मरो का नारा दिया। यानी इस आंदोलन के जरिए हम या तो आजादी प्राप्त करेंगे या फिर अपनी जान दे देंगे। ये नारा हर भारतीय की जुबान पर छा गया। इसी तरह आज ही के दिन 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई।

 

भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान देशभर में लोगों ने रैलियां निकालकर विरोध प्रदर्शन किया।

अगले ही दिन कांग्रेस के लगभग सभी नेता गिरफ्तार कर लिए गए और उन्हें अलग-अलग जेलों में बंद कर दिया गया। ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस पार्टी पर ही प्रतिबंध लगा दिया। गांधी जी को भी पुणे के आगा खान पैलेस में कैद कर दिया गया। पूरे देश में हड़ताल और विरोध प्रदर्शन होने लगे।

मजदूरों ने कारखानों में काम करने से मना कर दिया। सरकार ने आंदोलन को दबाने के लिए बड़े पैमाने पर सख्त कदम उठाए। इस वजह से भारतीयों का गुस्सा बढ़ता गया और कई जगह आंदोलन ने हिंसक रूप ले लिया। लोगों ने सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया, रेल पटरियों को उखाड़ दिया और कई जगहों पर आम लोगों की पुलिस से भी भिड़ंत हुई।

‘भारत छोड़ो आंदोलन’ से भले ही भारत को आजादी न मिली हो, लेकिन इस आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार को भारत की आजादी के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया था। इसलिए इस आंदोलन को “भारत की आजादी का अंतिम महान प्रयास” भी कहा जाता है। अंतत: 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ।

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