अमेरिका ने पहले चीन को चार देशों के QUAD से घेरा, अब ऑस्ट्रेलिया को दे दी परमाणु पनडुब्बी

क्या ये नए शीत युद्ध की शुरुआत है?

एक तरफ चीन है, जो 21वीं सदी में सुपर पावर बनकर उभर रहा है। दूसरी तरफ अमेरिका है, जो अपने दशकों के वर्चस्व को खोना नहीं चाहता। ग्लोबल पॉलिटिक्स में अंदरखाने बहुत उथल-पुथल मची हुई है। कई एक्सपर्ट्स इसे एक नए शीत युद्ध का आगाज मान रहे हैं।

हंगामा है क्यों बरपा?

सबसे पहले अमेरिका के दो बड़े फैसले जान लीजिए, जिनकी वजह से चीन बेचैन है…

1. क्वाड ग्रुपः अमेरिका ने भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर एक क्वाड ग्रुप बनाया है। ये समूह आपस में समुद्र से लेकर सैन्य सहायता तक के लिए तैयार रहता है। इसमें शामिल सभी देशों से चीन के रिश्ते तल्ख हैं। माना जाता है कि इसे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन की दादागीरी के जवाब में ही बनाया गया है।

2. ऑकस डीलः ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका ने मिलकर हाल ही में एक डील साइन की है। डील के मुताबिक अमेरिका और ब्रिटेन मिलकर ऑस्ट्रेलिया के लिए परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियां बनाएंगे। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद इसे सबसे बड़ी डिफेंस डील माना जा रहा है। इससे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की आक्रामकता पर अंकुश लगाया जा सकेगा।

अमेरिका के इन दोनों फैसलों से चीन बेचैन है। उसने खुलेआम नाराजगी जाहिर करते हुए इसे शीत युद्ध की मानसिकता कहा है। ये दो फैसले तो महज ट्रिगरिंग पॉइंट हैं। अमेरिका और चीन के आज इस स्थिति में पहुंचने की जड़ें वास्तव में काफी गहरी हैं।

कहानी के पीछे की कहानी

शुरुआत होती है 40 साल पहले। माओ जेदोंग की मौत के बाद चीन की सत्ता पर डेंग जियोंगपिंग काबिज हुए। उन्होंने कई दशकों से घिसटती इकोनॉमी को डेवलप करना शुरू किया। उनके बाद भी उनकी विरासत जारी रही और चीन 21वीं सदी का ग्लोबल पावर बनकर उभरा। एक के बाद एक चीन की बढ़ती शक्ति ने अमेरिका समेत पूरी दुनिया को हैरान कर दिया। नीचे स्लाइड में देखिए पिछले दो दशकों में चीन और अमेरिका का फोकस कहां पर रहा…

यही वो दौर था, जब अमेरिका और चीन के बीच पावर शिफ्टिंग का खेल चल रहा था। दो दशकों में चीन ने दुनिया को अपने साथ जोड़ा और दूसरी तरफ अमेरिका दशकों की जंग से बदहाल रहा।

एक नए शीत युद्ध की शुरुआत?

क्वॉड और ऑकस का मूल उद्देश्य इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के बढ़ते दबदबे को संतुलित करना है। ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्टडी डायरेक्टर हर्ष वी पंत के मुताबिक ऑकस पैक्ट सिर्फ तीन देशों की डिफेंस डील नहीं है। इसमें बहुत सारे संदेश छुपे हुए हैं। अमेरिका अपने इंडो-पैसिफिक पार्टनर्स को मजबूत बनाना चाहता है। ये एक शुरुआत है। आने वाले दिनों में इस तरह के अन्य कई घटनाक्रम देखने को मिल सकते हैं।

हर्ष वी पंत का मानना है कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की असल समस्या चीन का वर्चस्ववादी रवैया नहीं है, बल्कि इस क्षेत्र के अन्य देशों का कुछ न करने का रवैया है। क्वॉड इसी समस्या का हल है। यह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की गतिविधियों को थामने के लिए सबसे अहम क्षेत्रीय गठजोड़ है।

विदेशी मामलों के जानकार मनोज जोशी के मुताबिक एक बात तो तय है कि ज्यादा देशों के पास न्यूक्लियर और कन्वेंशनल हथियार आने से इंडो-पैसिफिक हाई-रिस्क जोन बन रहा है। अमेरिका, चीन, भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान, कोई भी देश पीछे नहीं हटना चाहता। इसलिए इनके बीच किसी भी तरह की जंग विनाशकारी होगी, जो दुनिया के भविष्य को बदल सकती है।

अब इस पूरे मुद्दे से उठने वाले कुछ जरूरी सवालों के जवाब…

QUAD से कितना अलग है AUKUS?

क्वॉड देशों में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत हैं। ये देश मिलकर बहुपक्षीय बातचीत करते हैं। इसमें हाई टेक्नोलॉजी या कोई बड़ी डील नहीं होती है। क्वॉड से अलग हटकर ऑस्ट्रेलिया के साथ ऑकस समझौता एक नए मिलिट्री अलायंस की शुरुआत है। इस तरह का मिलिट्री अलायंस करने में भारत में एक तरह की हिचकिचाहट है क्योंकि वो अमेरिका के साथ-साथ रूस और ईरान से भी संबंध रखना चाहता है।

क्वॉड ग्रुप की वर्चुअल बैठक। इसमें अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत के शीर्ष नेता शामिल हैं।

अमेरिका ने ऑस्ट्रेलिया को क्यों चुना?

ऑस्ट्रेलिया और चीन आपस में समुद्री सीमाएं साझा करते हैं। बीते सालों में चीन के बढ़ते वर्चस्व से ऑस्ट्रेलिया चिंतित है। पिछले तीन सालों में दोनों देशों के बीच कई मौकों पर मतभेद हुए। 2018 में ऑस्ट्रेलिया ने चीनी कंपनी हुवेई के 5जी नेटवर्क पर बैन लगा दिया था। 2020 में ऑस्ट्रेलिया ने कोरोना के लिए चीन को जिम्मेदार ठहराते हुए स्वतंत्र जांच की मांग की थी। 2021 में ऑस्ट्रेलिया ने चीन के साथ बेल्ड एंड रोड इनिशिएटिव के दो समझौते भी रद्द कर दिए थे।

ऑकस डील से फ्रांस क्यों है नाराज?

फ्रांस की सरकार का कहना है कि ऑस्ट्रेलिया ने उसके साथ अरबों डॉलर की डील खत्म करके उसे धोखा दिया है। ऑस्ट्रेलिया ने अमेरिका और ब्रिटेन के साथ परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियों के लिए नई डील की है। इस ऑकस डील को लेकर फ्रांस बेहद नाराज है और इसे पीठ में छुरा घोंपना तक करार दे दिया है। फ्रांस ने अपने राजदूतों को भी अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से वापस बुला लिया है, जो आधुनिक इतिहास में शायद पहली बार किया गया है। ये डील टूटने से फ्रांस को 65 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है।

चीन को क्यों हो रही है बेचैनी?

इंडो-पैसिफिक इलाके में दो सागर हैं। यहां से 42% ग्लोबल एक्सपोर्ट होता है। यहां चीन के बढ़ते दखल से अमेरिका चिंतित है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि ऑस्ट्रेलिया के पास परमाणु पनडुब्बियों का होना, इस क्षेत्र में अमेरिकी प्रभाव के लिए जरूरी है। चीन ने अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के बीच हुए रक्षा समझौते की निंदा करते हुए कहा कि ये ‘शीत युद्ध की मानसिकता’ को दर्शाता है। चीनी मीडिया ग्लोबल टाइम्स के एक लेख में कहा गया है- इस समझौते के साथ ही ऑस्ट्रेलिया ने खुद को चीन का विरोधी बना लिया है।

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