38 दिन बाद याद आए शहीद ! शुभम द्विवेदी के परिवार से मिले PM Modi.. सोशल मीडिया पर भयंकर आलोचना

कानपुर, 30 मई 2025 — प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शुक्रवार को कानपुर यात्रा के दौरान पहलगाम आतंकी हमले में शहीद हुए व्यापारी शुभम द्विवेदी के परिजनों से मुलाकात चर्चा का विषय बन गई। यह मुलाकात हमले के 38 दिन बाद हुई, जिसने कई लोगों को भावुक कर दिया तो कईयों को सोचने पर मजबूर।
शहीद शुभम द्विवेदी के परिवार से हुई भावनात्मक मुलाकात
प्रधानमंत्री मोदी ने चकेरी एयरपोर्ट पर शुभम द्विवेदी की पत्नी आशन्या, पिता संजय द्विवेदी और माता सीमा द्विवेदी से भेंट कर उन्हें सांत्वना दी। शुभम की 31 वर्ष की उम्र में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमले में मृत्यु हो गई थी। वह एक व्यवसायी थे और ऑपरेशन सिंदूर के दौरान शहीद हुए थे।
प्रधानमंत्री ने मुलाकात के दौरान परिवार को भरोसा दिलाया कि “ऑपरेशन सिंदूर अभी खत्म नहीं हुआ है। हम हर एक हमलावर को न्याय के कटघरे में लाएंगे।”
राजनीतिक कार्यक्रम के दौरान संवेदना जताने पर उठे सवाल
यह मुलाकात उस समय हुई जब प्रधानमंत्री मोदी कानपुर में ₹20,900 करोड़ की विभिन्न विकास परियोजनाओं का उद्घाटन करने आए थे। इसी दौरे के दौरान उन्होंने शुभम के परिवार से भी मुलाकात की। सोशल मीडिया पर इस मुलाकात की टाइमिंग को लेकर तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं।
एक यूज़र ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, “38 दिन बाद, एक राजनीतिक दौरे के बीच में जाकर ‘संवेदना जताना’ — क्या यही है नया भारत?”
पीएमओ से हुई थी पूर्व सूचना, परिवार ने जताया आभार
शहीद शुभम द्विवेदी की पत्नी आशन्या ने बताया कि उन्हें प्रधानमंत्री कार्यालय से मुलाकात के लिए पहले ही सूचित कर दिया गया था। उन्होंने कहा, “हम प्रधानमंत्री से मिलकर उनके समर्थन के लिए आभार व्यक्त करना चाहते थे।”
सांसद रमेश अवस्थी ने की थी पहल
लोकसभा सांसद रमेश अवस्थी ने एक सप्ताह पूर्व प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र लिखकर शुभम द्विवेदी के परिवार से भेंट कराने का आग्रह किया था। उनका कहना था कि परिवार ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के लिए प्रधानमंत्री का आभार प्रकट करना चाहता है। इसी पहल के बाद यह मुलाकात संभव हो सकी।
सोशल मीडिया पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं
प्रधानमंत्री मोदी की इस मुलाकात को लेकर सोशल मीडिया दो हिस्सों में बंट गया है। कुछ यूज़र्स ने इसे ‘राजनीतिक दिखावा’ कहा, जबकि कईयों ने इसे ‘देर से सही, लेकिन जरूरी’ कदम बताया। यह स्पष्ट है कि भावनाएं और संवेदनाएं अब सिर्फ घटनाओं तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि उनकी टाइमिंग भी जन भावनाओं को प्रभावित करने लगी है।
संवेदनाएं अब राजनीतिक कार्यक्रमों की ‘अनुबंधित स्क्रिप्ट’?
इस मुलाकात ने एक गहरा सवाल खड़ा किया है: क्या संवेदना जताना अब एक पूर्व-निर्धारित राजनीतिक गतिविधि बन गया है? शहीद के परिवार से मुलाकात सराहनीय है, लेकिन उसकी टाइमिंग और संदर्भों ने इसे राजनीतिक विमर्श का मुद्दा बना दिया है।