चुनाव में तो पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ते नहीं, तो कौन करता है कीमत तय-बाजार या सरकार? आइए जानते हैं

केंद्र सरकार ने 3 नवंबर को पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी कम करने की घोषणा की थी। अगले ही दिन देशभर में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कमी आई और कई राज्यों ने भी पेट्रोल-डीजल पर टैक्स कम किया। केंद्र सरकार के इस फैसले के 1 दिन पहले ही 14 राज्यों में हुए उपचुनाव के नतीजे आए थे।

वैट और टैक्स में कटौती के बाद से ही इस पर राजनीति भी शुरू हो गई। विपक्षी पार्टियों ने कहा कि ये उपचुनाव नतीजों का असर है। केंद्र सरकार पर इससे पहले भी ये आरोप लगते रहे हैं, लेकिन सरकार हमेशा इन आरोपों को नकारती रही है। सरकार का कहना है कि पेट्रोल-डीजल की कीमत निर्धारित करने में उसका कोई रोल नहीं है। ऑइल मार्केटिंग कंपनियां ही पेट्रोल-डीजल की कीमतें निर्धारित करती हैं।

सरकार और विपक्ष के अपने-अपने दावे को समझने के लिए हमने पिछले कुछ चुनावों को एनालाइज कर ये पता करने की कोशिश की है कि चुनाव से पहले, चुनाव के दौरान और चुनावी नतीजों के बाद पेट्रोल-डीजल की कीमतों में क्या ट्रेंड रहा है।

समझते हैं कब-कहां चुनाव हुए और उस दौरान पेट्रोल-डीजल की कीमत किस तरह बदली

नवंबर 2021

हाल ही में 14 राज्यों की 3 लोकसभा और 29 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए। 2 नवंबर को नतीजे आए जिसमें हिमाचल प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस की जीत हुई। बंगाल में TMC को जीत मिली। 3 नवंबर की शाम ही केंद्र सरकार ने पेट्रोल पर 5 रुपए और डीजल पर 10 रुपए प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी में कटौती की। पिछले 3 साल में ये पहली बार हुआ है जब केंद्र सरकार ने फ्यूल पर एक्साइज ड्यूटी कम की है। केंद्र सरकार के बाद अलग-अलग राज्यों ने भी टैक्स में कमी की। इसके बाद देशभर में पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों पर लगाम लगी।

मई 2021

इसी साल मार्च से अप्रैल तक असम, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, पुडुचेरी और केरल में विधानसभा चुनाव हुए। इससे पहले 27 फरवरी से ही पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी पर ब्रेक लग गया। 27 फरवरी को पेट्रोल की कीमत 91.17 रुपए प्रति लीटर थी, जो 23 मार्च तक इतनी ही बनी रही। 23 मार्च के बाद पेट्रोल की कीमत कम हुई और रिजल्ट वाले दिन (2 मई) को 90.40 रुपए पर आ गई। रिजल्ट के 2 दिन बाद ही पेट्रोल की कीमत दोबारा बढ़ने लगी और 4 जून तक बढ़कर 94.76 रुपए हो गई।

दिसंबर 2017

दिसंबर 2017 में गुजरात में विधानसभा चुनाव हुए। 9 दिसंबर को वोटिंग हुई और एक महीने पहले (9 नवंबर) से ही पेट्रोल की कीमतों पर ब्रेक लग गया था। 9 नवंबर को पेट्रोल की कीमत 69.85 रुपए थी, जो 9 दिसंबर तक कम होकर 69.18 पर आ गई थी। 14 दिसंबर को वोटिंग खत्म हुई और अगले ही दिन पेट्रोल की कीमत में 3 पैसे की बढ़ोतरी हुई। काउंटिंग के 1 महीने बाद पेट्रोल की कीमत 2 रुपए से ज्यादा बढ़ गई।

मई 2018

मई 2018 में कर्नाटक में विधानसभा चुनाव हुए। तब वोटिंग से पहले लगातार 20 दिन तक पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कोई बदलाव नहीं हुआ था। 24 अप्रैल को पेट्रोल की कीमत 74.63 रुपए प्रति लीटर थी जो 13 मई तक इतनी ही रही। इसी तरह डीजल की कीमत लगातार 20 दिन तक एक जैसी बनी हुई थी। 12 मई को वोटिंग खत्म होने के बाद अगले 15 दिन में ही पेट्रोल की कीमत 4 रुपए से ज्यादा बढ़ गई।

अक्टूबर-नवंबर 2020

अक्टूबर-नवंबर 2020 में बिहार में चुनाव हुए थे। बिहार चुनाव के ऐलान से पहले और नतीजों के बाद कुल 58 दिन तक दाम नहीं बढ़े। 10 नवंबर को चुनावी नतीजे आने के एक महीने बाद 10 दिसंबर तक पेट्रोल 83.71 रुपए लीटर और डीजल 73.87 रुपए लीटर हो चुका था। यानी, चुनाव के दो महीने पहले एक पैसे का इजाफा नहीं और उसके बाद एक महीने के भीतर दो रुपए से ज्यादा की बढ़ोतरी।

पेट्रोल-डीजल की कीमत कैसे निर्धारित होती है?

जून 2010 तक सरकार पेट्रोल की कीमत निर्धारित करती थी और हर 15 दिन में इसे बदला जाता था। 26 जून 2010 के बाद सरकार ने पेट्रोल की कीमतों का निर्धारण ऑइल कंपनियों के ऊपर छोड़ दिया। इसी तरह अक्टूबर 2014 तक डीजल की कीमत भी सरकार निर्धारित करती थी, लेकिन 19 अक्टूबर 2014 से सरकार ने ये काम भी ऑइल कंपनियों को सौंप दिया।

ऑइल कंपनियां अंतरराष्ट्रीय मार्केट में कच्चे तेल की कीमत, एक्सचेंज रेट, टैक्स, पेट्रोल-डीजल के ट्रांसपोर्टेशन का खर्च और बाकी कई चीजों को ध्यान में रखते हुए रोजाना पेट्रोल-डीजल की कीमत निर्धारित करती हैं।

हालांकि, सरकार भले ही पेट्रोल-डीजल की कीमत निर्धारित करने में अपनी भूमिका से इनकार करती हो, लेकिन डेटा बता रहा है कि चुनावी मौसम में जनता को पेट्रोल-डीजल की बढ़ी कीमतों से राहत मिली है।

पेट्रोल और डीजल की कीमत दिल्ली में प्रति लीटर के हिसाब से कैलकुलेट की गई है। कीमत का डेटा पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल (PPAC) से लिया गया है।

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