पाकिस्तान जिस तरह खालिस्तानी समूहों को पनाह दे रहा है,

उससे लगता है करतारपुर कॉरिडोर कहीं खालिस्तान कॉरिडोर न बन जाए

तारीख 9 नवंबर 2019, जब गुरु नानकदेव जी की 550वीं जयंती से 3 दिन पहले करतारपुर कॉरिडोर का उद्घाटन हुआ, तो सिखों में खुशी की लहर दौड़ गई कि अब वे पाकिस्तान स्थित करतारपुर साहिब जाकर माथा टेक सकेंगे। बंटवारे के दौरान भारत और पाकिस्तान के बीच बंटे सिखों के 2 प्रमुख धर्मस्थलों- भारत में रावी नदी के तट पर बसे डेरा बाबा साहिब और पाकिस्तान के शकरगढ़ में स्थित श्री करतारपुर साहिब को इस कॉरिडोर ने फिर से जोड़ दिया, लेकिन भारत की सुरक्षा स्थिति पर नजर रखने वाले एक्सपर्ट्स को चिंता है कि ये कॉरिडोर कहीं ‘खालिस्तान कॉरिडोर’ में तब्दील न हो जाए। उनकी चिंता बहुद हद तक जायज भी है।

पंजाब में 1992 में हुए विवादित चुनावों के बाद खालिस्तान का हिंसापूर्ण आंदोलन लगभग खत्म हो गया था, लेकिन पिछले एक दशक से इस हिंसक आंदोलन और इसके सबसे प्रमुख आतंकवादी नेता जरनैल सिंह भिंडरावाले के राजनीतिक अस्तित्व को फिर से जिंदा करने के प्रयास किए जा रहे हैं। भारत में भले ही खालिस्तान के लिए मुखर समर्थन ना हो, लेकिन कनाडा, ब्रिटेन और दूसरे पश्चिमी देशों में रह रहे सिख डायस्पोरा और बाकी जाट सिख समुदायों में इस हिंसक और क्रूर आंदोलन का समर्थन जारी है।

भिंडरावाले की तस्वीर वाली टी-शर्ट, खालिस्तानी साहित्य और अन्य सामान सिख धर्म के सबसे पवित्र स्थल श्री हरमिंदर साहिब एवं भारत के विभिन्न गुरुद्वारे के आसपास के बाजारों में बेचे जा रहे हैं। भारत के कई गुरुद्वारों में सिखों के ऐतिहासिक शहीदों के साथ भिंडरावाले की तस्वीरों को भी शामिल किया गया है। भारत के लिए सबसे चिंता की बात ये है कि हाल के सालों में कई खालिस्तानी हमले हुए हैं, जिन्हें सुरक्षाबलों ने रोका है।

मैंने और मेरे सहयोगियों ने जो रिसर्च किया है उसमें सामने आया है कि हाल के वर्षों में भारत में दर्जनों खालिस्तानी हमले हुए हैं। ये घटनाएं एक जनवरी 2009 और 25 जनवरी 2019 के बीच हुई हैं।भारत-पाकिस्तान के सुरक्षा हालातों पर नजर रखने वाले एक्सपर्ट और स्कॉलर सबसे ज्यादा चिंतित पाकिस्तानी अधिकारियों के सार्वजनिक बयानों को लेकर हैं। जिनमें उन्होंने कहा है कि ‘करतारपुर कॉरिडोर’ पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के दिमाग की उपज है।

पाकिस्तान में 1991 के बाद से कई बार केंद्रीय मंत्री रहे राजनेता शेख राशिद ने चुटकी लेते हुए एक बयान में कहा, ‘भारत करतारपुर कॉरिडोर को हमेशा जनरल बाजवा के दिए गए गहरे घाव के रूप में याद रखेगा। जनरल बाजवा ने करतारपुर कॉरिडोर खोलकर भारत पर जोरदार प्रहार किया है।’

भारत के लिए चिंता की एक और बड़ी बात ये है कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI ने प्रवासी सिखों यानी सिख डायस्पोरा के बीच खालिस्तान के लिए समर्थन जुटाया है। ISI हमेशा से ही भारत विरोधी कश्मीरी अलगाववादी समूहों का साथ देती रही है। अनेक सबूतों के अनुसार इस्लामी आतंकवादी समूह लश्कर-ए-तैयबा और पाकिस्तान में रहने वाले खालिस्तानी कार्यकर्ताओं के बीच सहयोग और साठगांठ जारी है।

पाकिस्तान लंबे समय से खालिस्तानी समूहों को मजबूत कर रहा है और पनाह भी दे रहा है। इन खालिस्तानी समूहों के साथ मिलकर पाकिस्तान के साजिश रचने का उद्देश्य भी साफ है। पाकिस्तान पर लश्कर और दूसरे इस्लामी आतंकवादी समूहों का इस्तेमाल करने की वजह से अंतरराष्ट्रीय दबाव भी बनाया जाता रहा है। अब बदले हुए सुरक्षा हालात में पाकिस्तान के लिए खालिस्तानी समूह बेहद अहम हो गए हैं। हो सकता है पाकिस्तान जिन समूहों का लंबे समय से विकास कर रहा है, उनका इस्तेमाल अब शुरू कर दे।

(क्रिस्टीन फेयर सुरक्षा मामलों की विशेषज्ञ हैं और अमेरिका की जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी में सिक्योरिटी स्टडीज डिपार्टमेंट की हेड हैं)

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