ग्रैंड मुफ़्ती की इस 1 इस्लामिक सीख से टली ‘निमिषा प्रिया’ की फांसी, क्या गजब का तर्क दिया ? आप भी जानिए..

भारतीय नर्स निमिषा प्रिया, जो यमन में एक हत्या के मामले में मृत्युदंड की सज़ा भुगत रही थीं, उनकी फांसी पर फिलहाल रोक लगा दी गई है। यह फैसला यमन के धार्मिक नेताओं, भारत सरकार, और केरल के ग्रैंड मुफ्ती ए. पी. अबूबकर मुसलियार के प्रयासों के बाद आया। यह मामला अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धर्म, मानवता और न्याय के संतुलन की मिसाल बन चुका है।
इस्लामी कानून की व्याख्या से टली फांसी
यमन में इस्लामी न्याय प्रणाली के तहत ‘क़िसास’ यानी बदले में सज़ा और ‘दिया’ यानी ब्लड मनी जैसे विकल्पों को पीड़ित परिवार की सहमति से लागू किया जा सकता है। मुसलियार ने यमन के धार्मिक नेताओं से बातचीत में इन मूल्यों का हवाला दिया। उन्होंने समझाया कि इस्लाम क्षमा और इंसाफ दोनों को महत्व देता है, और यही तर्क यमन के इस्लामी स्कॉलर्स को प्रभावित करने में सफल रहा।
भारत सरकार की राजनयिक सक्रियता
केरल के मुख्यमंत्री पिनारयी विजयन और विपक्ष के नेता वी. डी. सत्यशान समेत कई नेताओं ने इस मुद्दे को सार्वजनिक मंचों पर उठाया। भारत सरकार ने यमन प्रशासन से संपर्क साधकर कानूनी विकल्पों की तलाश की और ब्लड मनी देने की पेशकश भी की गई। विदेश मंत्रालय ने यमन में भारतीय राजनयिक संपर्कों के ज़रिए लगातार फॉलोअप किया।
अभी खत्म नहीं हुआ संघर्ष
यमन के नागरिक तलाल अब्दो महदी की हत्या के आरोप में निमिषा को सज़ा मिली थी। पीड़ित परिवार अब भी ‘क़िसास’ के तहत मौत की सज़ा की मांग पर अड़ा है। उन्होंने कहा, “हम ईश्वर के कानून को लागू करने पर अडिग हैं।” इसका मतलब यह है कि यदि परिवार ब्लड मनी स्वीकार नहीं करता, तो निमिषा को फिर से फांसी की सज़ा दी जा सकती है।
निमिषा की कहानी: धोखे से शादी, उत्पीड़न, आत्मरक्षा में हत्या
निमिषा एक केरल की नर्स हैं, जो बेहतर रोजगार की तलाश में यमन गई थीं। बताया गया कि उन्होंने एक यमनी नागरिक से शादी की, लेकिन वहां उनके साथ शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न हुआ। अंततः 2017 में तलाल अब्दो महदी की मौत हो गई। निमिषा ने दावा किया कि यह घटना आत्मरक्षा में हुई, लेकिन यमन की अदालत ने उन्हें मौत की सज़ा सुना दी थी।
ब्लड मनी की प्रक्रिया: क्या इससे बच सकती हैं निमिषा की जान?
इस्लामी शरिया कानून के तहत ब्लड मनी का मतलब होता है कि दोषी पीड़ित परिवार को एक तय मुआवज़ा देकर माफ़ी की गुहार लगा सकता है। भारत सरकार और कई स्वयंसेवी संस्थाएं इस राशि को जुटाने की कोशिश कर रही हैं। यह प्रक्रिया अब सबसे अहम कड़ी बन गई है, क्योंकि इसी के ज़रिए निमिषा की स्थायी राहत सुनिश्चित की जा सकती है।
क्या अबू बकर मुसलियार और बीजेपी नेताओं के बीच रिश्ते सुधरेंगे?
इस मामले ने एक नया सामाजिक विमर्श भी छेड़ दिया है — क्या धार्मिक नेतृत्व और राजनीतिक नेतृत्व का समन्वय ज़रूरी नहीं है जब बात भारतीय नागरिक की जान बचाने की हो? खासकर तब, जब एक प्रमुख मुस्लिम धार्मिक नेता के हस्तक्षेप से किसी भारतीय की जान बचाई जा रही हो, तो क्या बीजेपी जैसे हिंदू समर्थित दलों को भी ऐसे नेताओं से संवाद और सहयोग बढ़ाना चाहिए?
अभी अधूरी है जंग, लेकिन उम्मीदें जिंदा हैं
निमिषा की मौत की सज़ा फिलहाल टल गई है, लेकिन उनकी अज़ादी और सुरक्षा के लिए लड़ाई अभी जारी है। भारत सरकार, इस्लामी विद्वानों, और सामाजिक संस्थाओं को एकजुट होकर ब्लड मनी के जरिए समाधान निकालना होगा। यह मामला केवल एक भारतीय नागरिक की जिंदगी का नहीं, बल्कि भारत की वैश्विक छवि, मानवाधिकार और न्याय की जीत का प्रतीक बन चुका है।