यूपी कैबिनेट का जातीय समीकरण:दलित वोटों में सेंध लगाने और पिछड़ों को पाले में लाने की कवायद

इसलिए 3 दलित चेहरे और 3 OBC, जितिन इकलौते ब्राह्मण

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से 5 महीने पहले हो रहे मंत्रिमंडल विस्तार का इकलौता लक्ष्य जातिगत संतुलन है। ये मंत्री अपने इलाके में ठीक से पैर जमा पाएं, इससे पहले ही राज्य में चुनाव आचार संहिता लग जाएगी। योगी सरकार ने आनन-फानन में जिस तरह से मंत्रिमंडल विस्तार का फैसला लिया है, उसके पीछे कहीं न कहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन के जरिए जाटों की नाराजगी भी अहम वजह है।

प्रतापगढ़ में शनिवार को भाजपा के सांसद संगमलाल गुप्ता के साथ एक कार्यक्रम में मारपीट की गई। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि पार्टी ने इस गुस्से को भी गंभीरता से लिया है। इसलिए रविवार को श्राद्ध पक्ष के बीच शपथ के लिए राजभवन के दरवाजे खोल दिए गए। मंत्रिमंडल में जिस तरह के चेहरे सामने आ रहे हैं और जो तस्वीर उभरकर आ रही है उसमें RSS यानी संघ की छाया साफ दिखाई पड़ रही है।

जितिन इकलौते ब्राह्मण, 3 ओबीसी, 3 दलित
मंत्रिमंडल के लिए जिन चेहरों की चर्चा है, उसमें जितिन प्रसाद इकलौते ब्राह्मण हैं। पिछड़े वर्ग से छत्रपाल गंगवार, संगीता बिंद और धर्मवीर प्रजापति के नाम सामने आ रहे हैं। ऐसे ही अनुसूचित जाति से 3 मंत्री बनाए जा सकते हैं। भाजपा की पहली प्राथमिकता जातीय समीकरणों को साधने की है।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि 2017 में पार्टी की ऐतिहासिक जीत के पीछे UP का जातीय समीकरण था। पिछले विधानसभा चुनाव में BJP को UP में सभी जातियों का साथ मिला था। पार्टी ने सहयोगी दलों के साथ मिलकर 325 सीटें जीती थीं। कहा जाता है कि BJP की इस बड़ी जीत में गैर यादव OBC का बड़ा हाथ था। UP में OBC करीब 40% हैं। यह यूपी की सियासत में खासा महत्व रखते हैं।

21% दलितों पर ज्यादा फोकस
यूपी में दलित वर्ग कुल आबादी का करीब 21% है। इस लिहाज से ये भी सियासत में काफी मायने रखते हैं। पिछले चुनाव में दलितों ने भाजपा का साथ दिया था। इस बार भी भाजपा इन्हें नाराज नहीं करना चाहती। यही वजह है कि चुनाव से ऐन पहले इन्हें प्रतिनिधित्व देने की तैयारी है।

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