कैंसर डिटेक्ट करने का रिवॉल्यूशनरी ब्लड टेस्ट,

50 तरह के कैंसर को अर्ली स्टेज में पहचान सकता है; ब्रिटेन में 1.40 लाख वॉलंटियर्स पर ट्रायल शुरू

ब्रिटेन में कैंसर डिटेक्ट करने के लिए बनाए गए ब्लड टेस्ट का ट्रायल शुरू हो गया है। 1 लाख 40 हजार लोगों पर किया जा रहा ये ट्रायल दुनिया का सबसे बड़ा ट्रायल बताया जा रहा है। इस टेस्ट को कैलिफोर्निया की ग्रेल कंपनी ने तैयार किया है। ग्रेल का कहना है कि ये टेस्ट 50 से भी ज्यादा अलग-अलग तरह के कैंसर को डिटेक्ट कर सकता है। फिलहाल इस टेस्ट का इस्तेमाल अमेरिका में किया जा रहा है।

दुनियाभर में हर साल करीब 1 करोड़ लोगों की मौत कैंसर से होती है, उसमें एक बड़ी वजह कैंसर का देरी से डिटेक्ट होना है। अगर कंपनी का दावा सही है और ब्रिटेन में हो रहे ट्रायल सफल रहते हैं तो कैंसर से जंग में ये बड़ा हथियार साबित हो सकता है।

समझते हैं, ये टेस्ट क्या है? कैसे काम करता है? इसके फायदे क्या हैं? भारत में कब तक आ सकता है? और इसे क्यों गेमचेंजर माना जा रहा है?

सबसे पहले समझिए टेस्ट क्या है?
अभी कैंसर को डिटेक्ट करने के लिए अलग-अलग तरह के टेस्ट किए जाते हैं। इनमें सीटी स्कैन, MRI, अल्ट्रासाउंड, लैब टेस्ट और कई तरीके के अलग-अलग टेस्ट शामिल हैं। ग्रेल कंपनी ने कैंसर को डिटेक्ट करने के लिए ब्लड टेस्ट तैयार किया है। इस टेस्ट में केवल ब्लड को एनालाइज कर 50 से भी ज्यादा तरह के कैंसर का पता लगाया जा सकता है। इनमें वो कैंसर भी शामिल हैं, जिन्हें अभी तक डिटेक्ट करने का कोई तरीका नहीं है या जिन्हें अर्ली स्टेज में डिटेक्ट करना मुश्किल होता है।

यह टेस्ट काम कैसे करता है?
दरअसल, हमारे शरीर में मौजूद हर सेल ब्लड में DNA को रिलीज करती है, लेकिन कैंसर सेल का DNA स्वस्थ सेल के DNA से अलग होता है। ये टेस्ट ब्लड में मौजूद DNA को एनालाइज करता है। अगर ब्लड में कैंसर सेल के DNA मौजूद रहते हैं तो टेस्ट पॉजिटिव आ जाता है।

आसान भाषा में समझें तो इस टेस्ट में जेनेटिक कोड में हुए उन बदलावों को पता लगाया जाता है, जो कैंसर के ट्यूमर की वजह से होते हैं।

टेस्ट के फायदे क्या हैं?

कंपनी का दावा है कि एक साथ 50 से ज्यादा तरह के कैंसर को डिटेक्ट कर सकता है।कैंसर शरीर के किस हिस्से में है वो भी पता चल जाता है, इससे इलाज में आसानी होती है।कैंसर को अर्ली स्टेज में ही डिटेक्ट कर सकता है।टेस्ट की प्रोसेस बेहद आसान है। बस ब्लड लेकर ही टेस्ट किया जाता है।

इस टेस्ट को गेमचेंजर क्यों कहा जा रहा है?

दरअसल, अभी कैंसर को डिटेक्ट करने के लिए जो टेस्ट किए जाते हैं, वो अर्ली स्टेज कैंसर को आसानी से डिटेक्ट नहीं कर पाते। इस वजह से कैंसर देरी से डिटेक्ट होता है और मरीज की हालत बिगड़ती जाती है। कैंसर से ही हो रही मौतों में एक बड़ी वजह बीमारी का देरी से डिटेक्ट होना भी है। ये टेस्ट कैंसर को अर्ली स्टेज में ही डिटेक्ट कर सकता है।इसका फायदा यह होगा कि मरीजों को कैंसर की अर्ली स्टेज में ही इलाज मिलेगा। चौथी स्टेज के बजाय पहली स्टेज में ही कैंसर का पता चल जाने से मरीज के बचने के चांसेस 5 से 10 गुना ज्यादा होते हैं।अलग-अलग कैंसर को डिटेक्ट करने के लिए टेस्ट भी अलग-अलग होते हैं, लेकिन कंपनी का दावा है कि ये एक टेस्ट ही 50 से ज्यादा तरह के कैंसर का पता लगा सकता है। इनमें कई कैंसर ऐसे हैं, जिनके लिए कोई स्क्रीनिंग टेस्ट मौजूद नहीं है।

भारत के लिए यह टेस्ट कितना जरूरी?
Our World in Data के मुताबिक, हर साल कैंसर की वजह से दुनियाभर में 95 लाख लोगों की मौत होती है। भारत में हो रही कुल मौतों में कैंसर तीसरी सबसे बड़ी वजह है। हर साल 9 लाख भारतीयों की कैंसर की वजह से मौत हो रही है। ऐसे में भारत में ये टेस्ट अहम साबित हो सकता है।

भारत में कब तक आ सकता है यह टेस्ट?
टेस्ट के अभी ट्रायल शुरू हुए हैं। कंपनी का कहना है कि ये ट्रायल 2 साल तक चलेंगे। उम्मीद है कि ट्रायल के नतीजों के बाद ही टेस्ट भारत में उपलब्ध हो सकता है। हालांकि, अमेरिका में ये टेस्ट अभी उपलब्ध है।

अमेरिका में इसका इस्तेमाल कितना सफल है?
अमेरिका में इस टेस्ट का इस्तेमाल हो रहा है। अगर टेस्ट की रिपोर्ट पॉजिटिव आती है, तो कंफर्मेशन के लिए दूसरा टेस्ट किया जाता है। कंपनी का कहना है कि इस टेस्ट को बाकी दूसरे टेस्ट के साथ एडिशनली किया जा सकता है, लेकिन ये कैंसर के किसी स्क्रीनिंग टेस्ट का रिप्लेसमेंट नहीं है। यानी अगर टेस्ट पॉजिटिव आता है, इसका मतलब ब्लड में कैंसर सेल का DNA मौजूद हो सकता है। इसके कंफर्मेशन के लिए आगे के टेस्ट किए जाते हैं।

जब अमेरिका में पहले ही इस्तेमाल हो रहा है तो फिर ब्रिटेन में ट्रायल क्यों हो रहे हैं?
कंपनी इस टेस्ट का इस्तेमाल फिलहाल कर रही है, लेकिन अलग-अलग लोगों पर टेस्ट कितने सटीक नतीजे दे सकता है ये पता करने के लिए 1.40 लाख लोगों पर रेंडमाइज्ड कंट्रोल ट्रायल किए जा रहे हैं। कंपनी ने 50 से 77 साल के लोगों को ट्रायल में पार्टिसिपेट करने को कहा है। इंग्लैंड में 8 जगहों पर अलग-अलग बैकग्राउंड के लोगों के ब्लड सैंपल लिए जा रहे हैं। जो लोग अभी सैंपल देंगे उन्हें अगले 2 साल तक हर साल सैंपल देना होगा। इन सैंपल्स को लेकर एक ब्रॉड स्टडी की जाएगी।

कितनी है टेस्ट किट की कीमत?
इस टेस्ट का इस्तेमाल फिलहाल अमेरिका में हो रहा है। टेस्ट किट बनाने वाली कंपनी ग्रेल ने अपनी वेबसाइट पर टेस्ट की कीमत 949 डॉलर दे रखी है। भारतीय रुपयों में करीब 70 हजार।

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