मायोपिया रोकने वाला स्मार्ट चश्मा:चीनी वैज्ञानिकों ने मायोपिया के बढ़ते असर को धीमा करने वाला स्मार्ट चश्मा बनाया,

दूर की चीजें देखना हुआ आसान; दो साल में 67% घटा बीमारी का असर

वैज्ञानिकों ने ऐसा स्मार्ट चश्मा विकसित किया है जो आंखों की बीमारी मायोपिया के असर को कम करता है। मायोपिया होने पर मरीज को दूर की चीजें साफ नहीं दिखाई देतीं। जैसे- 2 मीटर दूरी पर रखी चीज मरीज को धुंधली दिखती है।

यह चश्मा कितना असर करता है, इस पर रिसर्च भी की गई है। चीन की वेंझाउ मेडिकल यूनिवर्सिटी ने 167 बच्चों को यह चश्मा पहनाकर अध्ययन किया। बच्चों को दिन में 12 घंटे तक यह चश्मा पहनने को कहा गया। 2 साल तक ऐसा करने के बाद मायोपिया का असर 67 फीसदी तक कम हो गया।

मायोपिया होने पर आंखें में क्या बदलाव होता है, चश्मा कैसे काम करता है और देश में ऐसे मरीजों की क्या स्थिति है, जानिए इन सवालों के जवाब

मायोपिया होने पर होता क्या है?
आसान भाषा में समझें तो आंखों का आईबॉल उम्र के साथ चारों तरफ गोलाई में बढ़ता है। मायोपिया के मरीजों का आईबॉल उम्र के साथ चौड़ा होने लगता है। इससे विजन तैयार करने वाले रेटिना पर बुरा असर पड़ता है। नतीजा, पास की चीजें तो साफ दिखाई देती हैं, लेकिन दूर की चीजें स्पष्ट नहीं दिखतीं।

मायोपिया होता क्यों है, वैज्ञानिक अब तक इसका पता नहीं लगा पाए हैं। उनका मानना है, मायोपिया की वजह जीन हो सकता है।

कुछ वैज्ञानिकों का कहना है, घर के बाहर समय न बिताना इसकी एक वजह हो सकती है। एक अन्य थ्योरी कहती है, आंखों पर तेज रोशनी पड़ने पर रेटिना से डोपामाइन हार्मोन रिलीज होने लगता है और आंखों पर बुरा असर पड़ता है।

चश्में में बने ये रिंग्स ही मायोपिया के असर को कम करने का काम करते हैं।

ऐसे काम करता है चश्मा
चश्मे के ग्लास में खास तरह की रिंग्स बनाई गई हैं। ये रिंग्स रेटिना पर प्रकाश डालती हैं ताकि सब कुछ साफ दिख सके। इस चश्मे का इस्तेमाल करने से आईबॉल का आकार बिगड़ने की दर धीमी हो जाती है। आईबॉल के आकार का बिगड़ना तय करता है कि मरीज में मायोपिया कितनी तेजी से बढ़ रहा है।

बढ़ रहे मायोपिया के मरीज

शोधकर्ता कहते हैं, स्पेशल कॉन्टैक्ट लेंस से भी इसे कंट्रोल करे सकते हैं, लेकिन ये सभी बच्चों को सूट नहीं करते। इसलिए, स्मार्ट चश्मा बेहतर विकल्प है। यह दिखने में आम चश्मे जैसा दिखता है, लेकिन इसके ग्लासेस में मौजूद 11 तरह के रिंग मायोपिया को कंट्रोल करने का काम करते हैं।

एक्सपर्ट के मुताबिक, पिछले कुछ सालों में स्थिति और बिगड़ी है यानी मायोपिया के मरीज बढ़े हैं क्योंकि लोग फोन स्क्रीन पर लम्बा समय बिता रहे हैं। यूजर्स स्मार्टफोन्स पर ही लम्बे समय तक किताबे पढ़ने का काम कर रहे हैं।

एम्स की एक रिपोर्ट कहती है, एशिया के करीब 13 प्रतिशत बच्चे मायोपिया यानी निकट दृष्टि दोष से पीड़ित हैं। वहीं अमेरिका के करीब 30 प्रतिशत लोग इसका दंश झेल रहे हैं।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2010 में मायोपिया के मरीजों का आंकड़ा 28 फीसदी था, जो 2050 तक बढ़कर 50 फीसदी तक पहुंच सकता है।

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