कमंडल की धूप में मंडल की छाया थे मुलायम मुलायम सबके साथ भी रहे और खिलाफ भी।

छह दशक की सियासी गाथा हैं मुलायम सिंह

उत्तर प्रदेश:पिछले एक दशक में भाजपा के तूफान से यूपी में बड़े-बड़े विपक्षी दल तिनके की तरह उड़ गए। स्थापित विपक्षी दल की तरह यदि कोई टिक सका तो वो इकलौती समाजवादी पार्टी है। हिंदुत्व की आंधी ने सपा के वटवृक्ष को भी झिंझोड़ा,कमजोर किया , टहनियां टूटीं, पत्तियां हवा हो गई। लेकिन समाजवादी की जड़े इतनी मजबूत थीं कि इसके अस्तित्व पर कोई ख़ास प्रभाव नहीं पड़ा। वजह ये है कि इस पार्टी का बीज बोने वाले ने मंडल की खाद से और कमंडल की धूप से समाजवादी पौधा तैयार किया था।

यहां विरोध का विष भी कीटनाशक की तरह काम आया।समाजवादी पार्टी के जन्मदाता का यही कमाल था कि उनकी सियासत बाढ़ के पानी के खतरों को उपयोगी बनाकर सिंचाई के काम में इस्तेमाल कर लेती थी।सियासत के सर्वगुण सम्पन्न मुलायम सिंह यादव में ऐसी ही खूबियां थीं। हर सियासतदां नेता ही होते हैं लेकिन मुलायम सिंह को नेता जी इसलिए ही कहा गया कि एक परफेक्ट नेता कि तरह विपरीत परिस्थितियों के भंवर में अपना नैया पार करने में वो दक्ष थे। वो सियासी साथियों का साथ देते भी थे, साथ लेते भी थे और पल भर में साथ तोड़ भी देते थे।

देश के बंटवारे के बाद दूसरा मौका था जब नब्बे के दशक की शुरुआत में उग्र और क्रोधित हिन्दुत्व उबाल पर था। और इसका केंद्र यूपी था। ऐसी परिस्थितियों में मुलायम सिंह ने इसी यूपी में धर्मनिरपेक्षता की विचारधारा के साथ ना सिर्फ दोबारा मुख्यमंत्री बन कर दिखाया बल्कि एक ऐसी पार्टी खड़ी कर दी जो दो दशक से यूपी में अपना वजूद क़ायम करे हुए है। 1990 से 1993, ये चार साल देश की राजनीति के लिए हमेशा उल्लेखनीय रहेंगे। 1992 मेंहिन्दुत्व की बाढ़ में समाजवाद के कोमल पौधे जैसी समाजवादी पार्टी को जन्म देकर मुलायम सिंह यादव ने एम -वाई और फिर आगे दलित-मुस्लिम कैमिस्ट्री के कवच से अपनी पार्टी को ना सिर्फ बचाए रखा बल्कि इस पौधे को हिन्दुत्व की बाढ़ के पानी से सीचा। और इसे धर्मनिरपेक्षता की खाद और हिन्दुत्व की धूप से वटवृक्ष बना दिया।

इसकी जड़ों को सोशल इंजीनियरिंग की ताकत से इतना मजबूत कर दिया कि नेता जी के सपा रूपी वृक्ष की जड़ों को मौजूदा दशक की तमाम आंधियां और तूफान हिला नहीं सके।आज भारत का सबसे ताकतवर राजनीति दल भारतीय जनता पार्टी है। इस पार्टी का सबसे मजबूत किला उत्तर प्रदेश है। मुख्यमंत्री योगी के उत्तर प्रदेश को भाजपा का केंद्र या आत्मा भी कहा जाने लगा है। यहां कांग्रेस का तुरुप का पत्ता कहे जाने वाली प्रियंका गांधी वाड्रा की मेहनत भी कांग्रेस को नहीं उबार पाई। हालिया चुनावों में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का भी असर यहां नहीं दिखा। जाति की राजनीति का हर हथकंडा फेल दिखा। स्वर्गीय कांशीराम के दलित आंदोलन की कोख से पैदा हुई बहुजन समाज पार्टी जिसकी जड़ें यूपी की सियासी जमीन में पेवस्त हैं, योगी की लोकप्रियता और हिन्दुत्व के एजेंडे के आगे बसपा भी खातमे की तरह आ गई। पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा एक सीट पर सिमट गई। लेकिन ऐसी योगी लहर में भी समाजवादी पार्टी डटी हुई है, टिकी हुई है और भाजपा का मुकाबला कर रही है।

जिसका कारण सपा की मजबूत बुनियाद है। इस पार्टी की आधारशिला रखने वाला कोई और नहीं बल्कि ऐसा धुरंधर नेता था जिसने देश की सियासत की हर घाट का पानी पिया था।देश पर एकक्षत्र राज करने वाली कांग्रेस को नाकों चने चबवा देने वाले, इंदिरा गांधी के आपातकाल से लड़ने वाले जननायक जयप्रकाश नारायण, समाजवाद के पुरोधा डाक्टर राममनोहर लोहिया और देश के किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह के शिष्य मुलायम सिंह यादव प्रत्येक विचारधारा के हर बड़े नेता के साथ राजनीति का अनुभव रखते थे।

अटल बिहारी वाजपेई, लालकृष्ण आडवाणी से लेकर विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर, जार्ज फर्नांडिस, लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, शरद यादव, रामविलास यादव, हरकिशन सुरजीत हों या चंद्रबाबू नायडू.. देश के हर दिग्गज राजनेता के साथ मुलायम ने राजनीति की पारी खेली।
मुलायम सिंह के राजनीतिक सफर की शुरुआत मे ही वो 1967 में राम मनोहर लोहिया की सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर विधायक चुने गए। इसके बाद 1974 में चौधरी चरण सिंह की पार्टी राष्ट्रीय क्रांति दल के टिकट पर चुनाव लड़े।1974 में इमरजेंसी से पहले चौधरी चरण सिंह ने अपनी पार्टी का विलय संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के साथ किया।भारतीय क्रांति दल का नाम लोकदल हो गया मुलायम ने इस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाली। आपातकाल के उपरांत 1977 में देश में जयप्रकाश नारायण की जनता पार्टी कांग्रेस सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थी। चौधरी चरण सिंह के लोकदल का विलय इसी पार्टी मे हुआ। 1977 में विधानसभा चुनाव मे जीत के बाद यूपी में जनता पार्टी की सरकार बनी। जिसमें मुलायम सिंह मंत्री बनाए गए।
1980 में जनता पार्टी टूट गई। और इसके घटक बिखर गए।जनता पार्टी की टूट से कई पार्टियां बनीं। चौधरी चरण सिंह ने जनता पार्टी से अलग होकर जनता पार्टी सेक्युलर बना ली। मुलायम भी चरण सिंह के साथ चले गए।1980 के चुनाव के बाद चरण सिंह की जनता पार्टी सेक्युलर का नाम लोकदल कर दिया गया।1987 में चौधरी चरण सिंह की मृत्यु के बाद अजीत सिंह और मुलायम में विवाद हुआ। इसके बाद लोकदल के दो टुकड़े हुए। अजीत सिंह का लोकदल (अ) और मुलायम सिंह का लोकदल (ब)1989 में वीपी सिंह बोफोर्स मामले पर कांग्रेस से बगावत कर बैठे। विपक्षी एकता की कोशिश फिर शुरू हुई। एक बार फिर जनता दल का गठन हुआ।

और मुलायम सिंह ने अपने लोकदल ब का विलय जनता दल में कर लिया। और वो 1989 में पहली बार मुख्यमंत्री बनने में सफल हुए। 1990 में केंद्र में वीपी सिंह की सरकार गिर गई तो मुलायम चंद्रशेखर की जनता दल (समाजवादी) में शामिल हो गए। 1991 में कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया तो मुलायम सिंह की सरकार गिर गई।1991 में यूपी में मध्यावधि चुनाव हुए जिसमें मुलायम जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े। इतने उथल-पुथल, संघर्षों और सफलताओं के बाद 1992 मे मुलायम सिंह ने अपने मूल राजनीतिक दल की स्थापना की। जिसका नाम रखा- समाजवादी पार्टी। और इसका चुनाव चिन्ह आम आदमी की सवारी “साइकिल” तय किया। डाक्टर राम मनोहर लोहिया के समतामूलक विचारों को आगे बढ़ाने और किसानों, मजदूरों, मेहनतकशों, पिछड़ों, वंचितों और अल्पसंख्यकों के हक की लड़ाई को इस पार्टी के गठन का मुख्य मकसद बताया।

आजादी के बाद दो ऐसे मौके रहे जब कांग्रेस के खिलाफ एकजुट विपक्ष ने सत्ता हासिल की।‌ दोनों बार समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव कांग्रेस की सत्ता के खिलाफ मोर्चे की ताकत बने। और कांग्रेस से उनके दोस्ताना रिश्ते भी रहे। वो यूपी में कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे। जबकि कांग्रेस विरोधी खेमे ने भी उन्हें मंत्री बनाया। कांग्रेस के समर्थन से पहली बार मुख्यमंत्री बने और केंद्र में मनमोहन सरकार को समर्थन भी समाजवादी पार्टी ने दिया। परमाणु करार के मामले पर जब मनमोहन सिंह सरकार खतरे में थी तब मुलायम के हनुमान कहे जाने वाले अमर सिंह ने कांग्रेस की केंद्र सरकार को बचाने की हर संभव मदद की। मुलायम सिंह की ही राजनीतिक कैमिस्ट्री ने कांग्रेस के सबसे मजबूत किले यूपी को हाशिए पर डाल दिया। और पिछले तीन दशक से आजतक कांग्रेस यहां सत्ता के वनवास मे है।
1977 में इंदिरा सरकार के आपातकाल के खिलाफ जनता पार्टी से लेकर 1988 में राजीव गांधी सरकार के खिलाफ जनता दल के गठन में कितने दलों का विलय हुआ, कितनी पार्टियां टूटी और कितनी बनी, कितनों के नाम बदले, कौन नेता किसके साथ आया, किसका साथ छोड़ा.. राजनीति के ऐसे पेचीदा इतिहास को समझने में एक बार दिमाग चकरा ज़रूर जाएगा।

जिस इतिहास को समझने में आप उलझ सकते है उस करीब चार दशक के राजनीतिक इतिहास की हर हलचल में मुलायम सिंह की भूमिका उल्लेखनीय रही। वो कांग्रेस के खिलाफ दोनों मोर्चों में बराबर के शरीक रहे। और कांग्रेस के साथ दोस्ताना रिश्ता निभाने में भी पीछे नहीं रहे। उन्होंने सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री ना बनने में अवरोध पैदा किया तो कांग्रेस की मनमोहन सरकार को गिरने से भी बचाया।

1989 में धरती पुत्र मुलायम सिंह पहली बार मुख्यमंत्री बने। 1991 में कांग्रेस ने अपना समर्थन वापस लेकर सरकार गिराने का इरादा किया ही था कि मुलायम सुबह ही राज्यपाल को इस्तीफा देकर कार्यवाहक मुख्यमंत्री बन गए ओर कांग्रेस राष्ट्रपति शासन में मध्यावधि चुनाव की योजना में मात खा गई। ये वो समय था जब वीपी सिंह की जनता दल को तोड़कर चंद्रशेखर कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने थे।‌ वीपी सिंह जिन्होंने मुलायम सिंह को मुख्यमंत्री बनने का सपना पूरा किया, जब वो कमजोर पड़े तो मुलायम वीपी विरोधी चंद्रशेखर के साथ आ गए। ये वो समय था जब मंडल और कमंडल की राजनीति के दोनों ध्रुव मुलायम के कद को बढ़ा रहे थे। वीपी सिंह के मंडल से वो यूपी में पिछड़ों का विश्वास जीत रहे थे और कमंडल यानी राम मंदिर आंदोलन कट्टर हिन्दुत्व के उबाल से संपूर्ण मुस्लिम समाज मुलायममय हो रहा था। जब चंद्रशेखर ने समाजवादी जनता पार्टी (राष्ट्रीय) का गठन 1990-91 में किए तो मुलायम सिंह यादव पूर्व प्रधानमंत्री बीपी सिंह की पार्टी जनता दल से रिश्ता तोड़कर चंद्रशेखर की पार्टी में शामिल हो गए। इसके बाद चंद्रशेखर का साथ छोड़कर उन्होंने 1992 में समाजवादी पार्टी बना ली।
वीपी सिंह के बाद चंद्रशेखर की भी केंद्र में सरकार गिर गई और फिर कांग्रेस ने नरसिंह राव को प्रधानमंत्री बनाया।

इधर अयोध्या में मुलायम सरकार में रामभक्तों पर गोली चलने के बाद यूपी सहित देशभर में भाजपा उभर रही थी। खासकर यूपी में हिन्दू समाज में मुलायम सिंह यादव और उनकी नवगठित समाजवादी पार्टी को लेकर गुस्सा था। ऐसे में विधानसभा चुनाव में जबरदस्त मजबूत हो चुकी भाजपा को सपा द्वारा चुनौती देना आश्चर्य था। जिसकी वजह मुलायम की सामाजिक शिल्पकारी थी। दलित समाज का विश्वास जीतने वाली बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन कर समाजवादी पार्टी ने एम वाई और दलित समाज को एकजुट कर ताकतवर भाजपा को हराकर सरकार बना ली। और मुलायम सिंह दूसरी बार मुख्यमंत्री बन गए।
इसके बाद गेस्ट हाउस कांड से सरकार तो गई ही सपा और बसपा दोस्ती दुश्मनी में बदल गई। कांग्रेस हो या बसपा इन दलों से धरती पत्र के रिश्ते मीठे भी रहे और खूब खट्टे भी। चौधरी चरण सिंह के लोकदल के बंटवारे से लेकर वीपी सिंह और चंद्रशेखर का साथ पाने और छोड़ने में वो माहिर रहे। वो दशकों तक ठहरे नहीं और बहते पानी की तरह आगे बढ़ते रहे। तीन बार मुख्यमंत्री और रक्षा मंत्री बनने की सफलता के बाद वो प्रधानमंत्री नहीं बन सके। कुछ लोग कहते हैं कि वो अंततः खुद भी अपनों का ही शिकार हुए। कहा जाता है कि मुलायम सिंह यादव के प्रधानमंत्री बनने के चांस बन रहे थे तब लालू प्रसाद यादव ने भांजी मार दी थी। इसी तरह मुलायम जब बुजुर्ग हो जाने के बाद भी राजनीति में खुद को तरोताजा मानते थे तब उनके पुत्र और तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने पिता के स्थान पर पार्टी अध्यक्ष बन गए।

सियासी चालें, खूबियां ,दांव और रणनीतियों के हुनर का चक्र समय के साथ घूमता है और स्थानांतरित होता है। कई बार सियासत की सांप-सीढ़ी वाले खेल के खिलाड़ी के दांव ही उसपर आज़मा लिए जाते हैं।

– नवेद शिकोह

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