यूपी चुनाव में संकटों से घिरा मुलायम सिंह यादव का विशाल कुनबा, क्या उबर पाएगा

भारतीय राजनीति के सबसे बड़े कुनबे पर ध्यान जाना भी लाजिमी

लखनऊ. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 जब सिर पर है, तो यूपी में सक्रिय तमाम पार्टियों पर निगाह जाती है. ऐसे में भारतीय राजनीति के सबसे बड़े कुनबे पर ध्यान जाना भी लाजिमी है. बता दें कि मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी देश का सबसे बड़ा राजनीतिक कुनबा है. 1992 में समाजवादी पार्टी की नींव रखी थी मुलायम सिंह यादव ने. उसके बाद से अबतक उत्तर प्रदेश की राजनीतिक जमीन पर मुलायम सिंह का कुनबा लगातार फैलता रहा. मुलायम सिंह के बेटे अखिलेश यादव, प्रोफेसर रामगोपाल यादव और भाई शिवपाल सिंह यादव समाजवादी कुनबे के महत्वपूर्ण चेहरे के रूप में उभरे.

पहली बार यूपी की कमान

मुलायम सिंह यादव तीन बार यूपी के मुख्यमंत्री रहे. पहली बार यूपी की कमान उन्होंने 5 दिसम्बर 1989 को संभाली जो उनके पास 24 जनवरी 1991 तक रही. फिर दूसरी बार तब जब उन्होंने समाजवादी पार्टी का गठन कर लिया था, इस बार 5 दिसंबर 1993 से 3 जून 1996 तक वे मुख्यमंत्री रहे. फिर 2003 में हुए विधानसभा चुनाव में मुलायम की अगुवाई वाली समाजवादी पार्टी सत्ता में आई और इस बार भी 29 अगस्त 2003 को मुलायम सिंह यादव ने मुख्यमंत्री का पद संभाला. वे 11 मई 2007 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यत्री रहे. मुलायम सिंह यादव केंद्र सरकार में रक्षा मंत्री भी रह चुके हैं. उत्तर प्रदेश में यादव समाज के सबसे बड़े नेता के रूप में मुलायम सिंह की पहचान है.

मुलायम परिवार के 21 सदस्य राजनीति में एक्टिव

यूपी की अगुवाई करते हुए उन्होंने अपने परिवार के लोगों को सक्रिय राजनीति में उतारना शुरू किया. कहते हैं कि मुलायम परिवार के 21 सदस्य राजनीति में एक्टिव रहे. मुलायम सिंह यादव के भाई प्रो. रामगोपाल यादव और शिवपाल यादव राजनीति में खूब चर्चित रहे. यूपी में समाजवादी पार्टी को एकजुट बनाए रखने में शिवपाल यादव की भूमिका हमेशा महत्वपूर्ण रही. शिवपाल यादव यूपी की 13वीं विधानसभा में जसवंतनगर से चुनाव लड़े और ऐतिहासिक मतों से जीते. इसी वर्ष उन्हें समाजवादी पार्टी का प्रदेश महासचिव बनाया गया. महासचिव बनने के बाद उन्होंने संगठन की मजबूती के लिए पूरे यूपी का दौरा किया. इस बीच उनकी लोकप्रियता और स्वीकार्यता बढ़ती गई. सपा के प्रदेश अध्यक्ष रामशरण दास की अस्वस्थता की वजह से 2007 के मेरठ अधिवेशन में शिवपाल को पार्टी का कार्यवाहक अध्यक्ष बना दिया गया और बाद में रामशरण दास के निधन के बाद शिवपाल सिंह यादव 2009 में सपा के पूर्णकालिक प्रदेश अध्यक्ष बने.

रामगोपाल यादव और शिवपाल यादव

राजानीतिक घटना क्रम बताते हैं कि रामगोपाल यादव और शिवपाल यादव के बीच तनातनी रही. इस क्रम में रामगोपाल यादव को छह साल के लिए पार्टी से निलंबित भी किया गया, लेकिन यह निलंबन कुछ दिनों बाद वापस लिया गया. सपा की ओर से रामगोपाल यादव राज्यसभा में सपा के सांसद बने रहे. बल्कि निलंबन वापसी के बाद रामगोपाल यादव सपा के महासचिव बनाए गए. बताया जाता है कि निलंबन से पहले रामगोपाल यादव ने कई बार बीजेपी के नेताओं से मुलाकात की थी. इस मुलाकात को लेकर छोटे भाई शिवपाल यादव ने सार्वजनिक रूप से कहा था ‘रामगोपाल सीबीआई से बचने के लिए बीजेपी से मिल गए हैं.’ उन्होंने कहा था ‘रामगोपाल 3 बार बीजेपी के बड़े नेता से मि‍ल चुके हैं. उनके बेटे अक्षय और बहू घोटाले में फंसे हैं. इसलि‍ए सीबीआई जांच से बचने के लि‍ए ऐसा कर रहे हैं. इस बात को अखि‍लेश नहीं समझ पा रहे.’ तब शिवपाल का आरोप था कि रामगोपाल कभी कि‍सी के दुख-दर्द को नहीं समझ सके. वे नेताजी, अखि‍लेश और सपा को कमजोर कर रहे हैं. मैंने जब पार्टी में उनके खि‍लाफ आवाज उठाई तो वे दुश्‍मनी नि‍काल रहे हैं.

मुलायम के राजनीतिक कुनबे में बिखराव

इन घटनाक्रमों के बीच सपा की राजनीति में मुलायम सिंह यादव ने अपने परिवार की बहुओं को भी सक्रिय किया. अखिलेश यादव भी पुरजोर तरीके से राजनीति में अपनी जड़ जमा चुके थे. मुलायम का पूरा कुनबा एकजुट होकर एक-दूसरे का साथ देता रहा. मुलायम सिंह ने पूरे कुनबे को जोड़कर रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. लेकिन अब के नजारे बदले हुए हैं. 2021 के कुछ घटनाक्रम देखें तो मुलायम के राजनीतिक कुनबे में बिखराव की कहानी साफ तौर पर दिख जाती है. मुलायम की सैफई की होली बहुत चर्चित रही है. यहां के आयोजन में मुलायम का पूरा कुनबा जुटता रहा है. लेकिन इस साल सेहत ठीक न होने की वजह से मुलायम सिंह यादव ने सैफई में होली से दूरी बनाए रखी थी. मुलायम की गैर मौजूदगी में सैफई की होली दो खेमों में बंटी दिखी. एक खेमे में शिवपाल सिंह यादव थे तो दूसरी ओर सपा प्रमुख अखिलेश यादव, भाई रामगोपाल यादव और परिवार के तमाम छोटे-बड़े राजनीतिक, गैर राजनीतिक सदस्य थे. सैफई में मुलायम की कोठी पर सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखि‍लेश यादव अपने समर्थक परिवारिक सदस्यों और नेताओं के साथ होली का मंच सजाए हुए थे. तो यहां से कुछ ही दूरी पर, प्रगतिशील समाजवादी पार्टी-लोहिया का गठन कर चुके शि‍वपाल सिंह यादव पिता सुधर सिंह के नाम पर स्थापित किए एसएस मेमोरियल स्कूल में होली का जश्न मना रहे थे.

खींचतान का यह नजारा और साफ तब दिखा, जब मुलायम की भतीजी संध्या यादव को बीजेपी ने मैनपुरी से जिला पंचायत सदस्य का प्रत्याशी घोषि‍त कर दिया. संध्या मुलायम सिंह यादव के सबसे छोटे भाई अभय राम यादव की बेटी और बदायूं से पूर्व सांसद धर्मेंद्र यादव की बड़ी बहन हैं. यह पहला मौका था जब मुलायम परिवार का कोई सदस्य बीजेपी के टिकट पर चुनाव में उम्मीदवार बना. मुलायम कुनबे की राजनीतिक सक्रियता देखनी हो तो ध्यान दिया जा सकता है कि संध्या ने 2015 में सपा के टिकट पर मैनपुरी जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जीता था. संध्या के पति अनुजेश प्रताप यादव मैनपुरी जिले से सटी भारौल रियासत से संबंध रखते हैं. अनुजेश की मां उर्मिला यादव मैनपुरी की घि‍रौर सीट से सपा की पूर्व विधायक हैं.

अखिलेश के हाथ में सपा की कमान

याद दिला दें कि 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले मुलायम कुनबे में वर्चस्व की जंग छिड़ गई थी. इसी के बाद अखिलेश ने सपा पर अपना एकछत्र राज कायम कर लिया था. इस घटना के बाद अखिलेश और शिवपाल के बीच खाई और गहरी हो गई थी. जो शिवपाल लगातार मुलायम सिंह के साथ बने रहे, वही अखिलेश के हाथ में सपा की कमान जाते ही बागी हो गए. 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद शिवपाल ने सपा से अलग होकर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) का गठन कर लिया. शिवपाल के अलग पार्टी बनाने के बाद सपा ने नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद चौधरी से दल परिवर्तन के आधार पर शिवपाल यादव की विधानसभा से सदस्यता समाप्त करने की याचिका दायर करवाई. मुलायम के सीधे हस्तक्षेप के बाद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव याचिका वापस लेने को राजी हुए.

अब निगाहें 2022 पर हैं

मुलायम कुनबे की ऐसी ही जंग ने बीजेपी को मौका दिया है. याद दिला दें कि यूपी की इटावा, मैनपुरी, फि‍रोजाबाद और कन्नौज लोकसभा सीटों पर मुलायम परिवार का काफी प्रभाव रहा है. इन 4 लोकसभा क्षेत्रों में कुल 20 विधानसभा सीटें हैं. 2012 में सपा ने इन 20 में से 17 सीटें जीती थीं. भाजपा को तब महज 1 सीट और बसपा को 2 सीटों से संतोष करना पड़ा था. पर जब 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले अखि‍लेश और शि‍वपाल बंट गए, तो सपा 20 विधानसभा सीटों में से केवल 6 ही जीत सकी. जबकि भाजपा ने 14 सीटों पर कब्जा जमाया. अब निगाहें 2022 पर हैं. मुलायम सिंह यादव के उत्तराधिकारी बने अखिलेश यादव 3 सांसद रह चुके हैं. 2012 में मुख्यमंत्री बनने के बाद के चुनावों में वे पार्टी की वापसी नहीं करा पाए. अब 2022 में सत्ता वापसी और परिवार को जोड़े रखने की चुनौती का सामना कर रहे हैं अखिलेश यादव. देखना है कि मुलायम सिंह का यह राजनीतिक कुनबा 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में क्या रंग जमा पाता है.

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