मोदी-बाइडेन की पहली मुलाकात आज, जानें किन मुद्दों पर होगी बात? चीन से निपटने के लिए बने क्वॉड में क्या-क्या होगा?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस वक्त अमेरिका के दौरे पर हैं। शुक्रवार को मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से मिलेंगे। ये मोदी और बाइडेन की आमने-सामने पहली मुलाकात होगी। इसके साथ ही मोदी क्वॉड देशों की इन पर्सन मीटिंग में भी हिस्सा लेंगे।

मोदी-बाइडेन की मीटिंग का एजेंडा क्या होगा? क्वॉड क्या है? इसमें कौन से देश शामिल हैं? इस बार की समिट का एजेंडा क्या होगा? क्वॉड देशों को चीन से क्या दिक्कत है? आइए जानते हैं…

मोदी-बाइडेन की मीटिंग का एजेंडा क्या होगा?

बाइडेन राष्ट्रपति बनने के बाद पहली बार प्रधानमंत्री मोदी से मिलेंगे। दोनों कम से कम तीन बार वर्चुअल मीटिंग कर चुके हैं। मार्च में क्वॉड समिट के दौरान, अप्रैल में हुई क्लाइमेट चेंज समिट और जून में हुई G-7 की समिट में दोनों नेताओं ने वर्चुअली हिस्सा लिया था। नवंबर 2020 में जब बाइडेन राष्ट्रपति चुने गए थे, तब भी दोनों नेताओं के बीच फोन पर बातचीत हुई थी। इसके बाद फरवरी और अप्रैल में भी दोनों नेताओं ने फोन पर बात की थी।

व्हाइट हाउस में हो रही मोदी-बाइडेन की पहली मुलाकात के दौरान डिफेंस, आपसी रिश्ते, भारतीयों के वीजा मुद्दे और ट्रेड पर चर्चा होने की संभावना है। कूटनीति और रक्षा दोनों के लिहाज से यह सबसे अहम मीटिंग होगी।

इस मीटिंग के दौरान आतंकवाद के साथ अफगानिस्तान के मुद्दे पर भी बात होगी। ये जानकारी मोदी के अमेरिका दौरे पर जाने से पहले विदेश सचिव हर्षवर्धन सिंगला ने मंगलवार को दी। इस दौरान भारत अफगानिस्तान को लेकर अपनी चिंताओं से भी बाइडेन प्रशासन को अवगत कराएगा। बाइडेन से मुलाकात के बाद मोदी क्वॉड समिट में हिस्सा लेंगे।

क्वॉड देशों की बैठक में कौन-कौन शामिल होगा?

शुक्रवार को ही मोदी क्वॉड की पहली इन पर्सन मीटिंग में भी हिस्सा लेंगे। इस समिट में प्रधानमंत्री मोदी के साथ ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन, जापान के प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा के अलावा प्रेसिडेंट जो बाइडेन भी मौजूद रहेंगे। चारों देशों के विदेश मंत्री और NSA भी मीटिंग में हिस्सा लेंगे।

इस मीटिंग में चारों नेता मार्च में हुई वर्चुअल समिट के नतीजों पर बात करेंगे। इसके साथ ही हिंद-प्रशांत क्षेत्र के भविष्य के लिए साझा रणनीति पर भी बात करेंगे।

इस बार की समिट का एजेंडा क्या होगा?

इस समिट के पहले 12 मार्च को क्वॉड की वर्चुअल बैठक हुई थी। उस बैठक में तय हुए एजेंडे पर इस बार की बैठक में बात होगी। इसके अलावा कोविड-19, जलवायु परिवर्तन, नई तकनीकें, साइबरस्पेस और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र को मुक्त रखने जैसे मुद्दों पर सहयोग बढ़ाने पर फोकस किया जाएगा।

12 मार्च को हुई पिछली वर्चुअल मीटिंग में चारों देशों ने कोरोना वैक्सीन बनाने के लिए अपने संसाधनों को साझा करने पर सहमति जताई थी। इसका मतलब यह है कि चारों देशों के पास वैक्सीन बनाने की जो क्षमताएं हैं, उन्हें और बढ़ाया जाएगा। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा था कि US इंडो पैसिफिक में सभी सहयोगियों के साथ काम करने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा था कि अमेरिका क्लाइमेट चेंज की चुनौतियों से निपटने के लिए आपसी सहयोग बढ़ाने के लिए एक नया मैकेनिज्म लाने जा रहा है।

क्वॉड क्या है?

क्वॉड यानी क्वॉड्रिलैटरल सिक्योरिटी डॉयलॉग चार देशों का समूह है। इसमें अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान शामिल हैं। इन चारों देशों के बीच समुद्री सहयोग 2004 में आई सुनामी के बाद शुरू हुआ।क्वॉड का आइडिया 2007 में जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने दिया था। हालांकि चीन के दबाव में ऑस्ट्रेलिया ग्रुप से बाहर रहा। दिसंबर 2012 में शिंजो आबे ने फिर से एशिया के डेमोक्रेटिक सिक्योरिटी डायमंड का कॉन्सेप्ट रखा, जिसमें चारों देशों को शामिल कर हिंद महासागर और पश्चिमी प्रशांत महासागर के देशों से लगे समुद्र में फ्री ट्रेड को बढ़ावा देना था। आखिरकार नवंबर 2017 में चारों देशों का क्वॉड ग्रुप बना। इसका उद्देश्य इंडो-पैसिफिक के समुद्री रास्तों पर किसी भी देश, खासकर चीन के प्रभुत्व को खत्म करना है।आज ये चारों लोकतांत्रिक देश सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और स्वास्थ्य के मुद्दों पर एक व्यापक एजेंडे के तहत काम करते हैं।

क्वॉड देशों को चीन से क्या दिक्कत है?

अमेरिका की पॉलिसी पूर्वी एशिया में चीन को काबू करने की है। इसी वजह से वह इस ग्रुप को इंडो-पैसिफिक रीजन में फिर से प्रभुत्व हासिल करने के अवसर के तौर पर देखता है। यूएस ने तो अपनी नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रैटजी में रूस के साथ-साथ चीन को भी स्ट्रैटजिक राइवल कहा है।ऑस्ट्रेलिया को अपनी जमीन, इन्फ्रास्ट्रक्चर, पॉलिटिक्स में चीन की बढ़ती रुचि और यूनिवर्सिटीज में उसके बढ़ते प्रभाव को लेकर चिंता है। चीन पर निर्भरता इतनी ज्यादा है कि उसने चीन के साथ कॉम्प्रिहेंसिव स्ट्रैटजिक पार्टनरशिप जारी रखी है।जापान पिछले एक दशक में चीन से सबसे ज्यादा परेशान रहा है, जो अपना अधिकार क्षेत्र बढ़ाने के लिए सेना का इस्तेमाल करने से भी नहीं झिझक रहा। महत्वपूर्ण यह है कि जापान की इकोनॉमी एक तरह से चीन के साथ होने वाले ट्रेड वॉल्यूम पर निर्भर है। इस वजह से जापान चीन के साथ अपनी आर्थिक जरूरतों और क्षेत्रीय चिंताओं में संतुलन साध रहा है।भारत के लिए चीन की बढ़ती सैन्य और आर्थिक ताकत स्ट्रैटजिक चुनौती है। चीन ने दक्षिण चीन सागर में द्वीपों पर कब्जा कर लिया है और वहां मिलिट्री असेट्स विकसित किए हैं। चीन हिंद महासागर में ट्रेड रूट्स पर अपना प्रभुत्व बढ़ाने की कोशिश भी कर रहा है, जो भारत के लिए चिंता बढ़ाने वाला है।

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