महाराष्ट्र में 2 हाईवे का विस्तार:PM मोदी बोले- कौन भूल सकता है पंढरपुर यात्रा का दृश्य,

लाखों श्रद्धालु खिंचे चले आते हैं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए पंढरपुर में दो 4 लेन नेशनल हाईवे के विस्तार की आधारशिला रखी। मोदी ने आगे कहा कि महाराष्ट्र में श्री संत ज्ञानेश्वर महाराज पालखी मार्ग का निर्माण 5 चरणों में होगा और संत तुकाराम महाराज पालखी मार्ग का निर्माण तीन चरणों में पूरा किया जाएगा। इन सभी चरणों में 350 किमी. से ज्यादा लंबाई के हाईवे बनेंगे और इस पर 11000 करोड़ रु. से ज्यादा खर्च आएगा।

इन राष्ट्रीय राजमार्गों के दोनों तरफ ‘पालखी’ के लिए पैदल मार्ग भी बनाया जाएगा। ताकि पैदल जाने वाले भक्तों को परेशानी न हो। इन दोनों मार्गों की लागत 6690 करोड़ रु. और 4400 करोड़ रु. होगी। कार्यक्रम में केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे भी शामिल हुए।

चारों दिशाओं के महापुरुष गिनाए
1. पूर्व में चैतन्य महाप्रभु, और शंकर देव जैसे संतों के विचारों ने देश को समृद्ध किया।
2. पश्चिम में नरसी मेहता, मीराबाई, धीरो भगत, भोजा भगत, प्रीतम हुए।
3. उत्तर में रामानंद, कबीरदास, गोस्वामी तुलसीदास, सूरदास, गुरु नानकदेव, संत रैदास हुए।
4. दक्षिण में मध्वाचार्य, निम्बार्काचार्य, वल्लभचार्य, रामानुजाचार्य हुए।

यह दुनिया की सबसे प्राचीन यात्रा
मोदी ने कहा कि आज यहां पालखी मार्ग का शिलान्यास हुआ है। इसका निर्माण 5 चरणों में होगा। आज भी ये यात्रा दुनिया की सबसे प्राचीन और सबसे बड़ी जन-यात्राओं के रूप में देखी जाती है। ‘आषाढ एकादशी’ पर पंढरपुर यात्रा का विहंगम दृश्य कौन भूल सकता है। हजारों-लाखों श्रद्धालु, बस खिंचे चले आते हैं।

कितने किलोमीटर रोड का निर्माण होगा

संत ज्ञानेश्वर महाराज पालखी मार्ग के दिवेघाट से मोहोल तक के 221 किलोमीटरसंत तुकाराम महाराज पालखी मार्ग के पतस से टोंदले-बोंदले तक 130 किलोमीटर

परेशानियां आईं, लेकिन आस्था कम नहीं हुई
अतीत में हमारे भारत पर कितने ही हमले हुए, सैकड़ों साल की गुलामी में देश जकड़ गया। प्राकृतिक आपदाएं आईं, चुनौतियां आईं, कठिनाइयां आईं, लेकिन भगवान विट्ठल देव में हमारी आस्था, हमारी दिंडी वैसे ही अनवरत चलती रही।
ये यात्राएं अलग-अलग पालखी मार्गों से चलती हैं, लेकिन सबका गंतव्य एक ही होता है। इससे हमें सीख मिलती है कि मार्ग अलग-अलग हो सकते हैं, पद्धतियां और विचार अलग अलग हो सकते हैं, लेकिन हमारा लक्ष्य एक है।

पंढरपुर तबसे है, जब संसार की सृष्टि नहीं हुई थी
मोदी ने कहा कि भगवान विट्ठल का दरबार हर किसी के लिए समान रूप से खुला है। ये भारत की उस शाश्वत शिक्षा का प्रतीक है, जो हमारी आस्था को बांधती नहीं, बल्कि मुक्त करती है। जब मैं सबका साथ-सबका विकास-सबका विश्वास कहता हूं, तो उसके पीछे भी यही भावना है।

पंढरपुर की सेवा मेरे लिए साक्षात् श्री नारायण हरि की सेवा है। ये वो भूमि है, जहां भक्तों के लिए भगवान आज भी प्रत्यक्ष विराजते हैं। ये वो भूमि है, जिसके बारे में संत नामदेवजी महाराज ने कहा है कि पंढरपुर तबसे है, जब संसार की भी सृष्टि नहीं हुई थी।

पंढरपुर को कहा जाता है दक्षिण का काशी
महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में भीमा नदी के तट पर पंढरपुर स्थित है। पंढरपुर को दक्षिण का काशी भी कहा जाता है। पद्मपुराण में वर्णन है कि इस जगह पर भगवान श्री कृष्ण ने ‘पांडुरंग’ रूप में अपने भक्त पुंडलिक को दर्शन दिए और उनके आग्रह पर एक ईंट पर खड़ी मुद्रा में स्थापित हो गए थे। हजारों सालों से यहां भगवान पांडुरंग की पूजा चली आ रही है, पांडुरंग को भगवान विट्ठल के नाम से भी जाना जाता है।

यहां एक साल में 4 बड़े मेले लगते हैं
पंढरपुर में एक वर्ष में चार बड़े मेले लगते हैं। इन मेलों के लिए वारकरी(भक्त) लाखों की संख्या में यहां इकट्ठे होते हैं। चैत्र, आषाढ़, कार्तिक, माघ, इन चार महीनों में शुक्ल एकादशी के दिन पंढरपुर की चार यात्राएं होती हैं। आषाढ़ माह की यात्रा को ‘महायात्रा’ या ‘वारी यात्रा’ कहते हैं। इसमें महाराष्ट्र ही नहीं देश के कोने-कोने से लाखों श्रद्धालु पंढरपुर आते हैं। संतों की प्रतिमाएं, पादुकाएं पालकियों में सजाकर वारकरी यहां आते हैं। इस यात्रा के दर्शन के लिए पूरे 250 कि.मी. रास्ते पर दोनों ओर लोगों की भारी भीड़ जमा रहती है। एक साथ लाखों लोगों के शामिल होने और भक्तों के कई सौ किलोमीटर पैदल चलने के कारण इसे सबसे बड़ी धार्मिक यात्रा कहा जाता है।

विदेशों से भी पंढरपुर आते हैं श्रद्धालु
संत ज्ञानेश्वर महाराज की पालकी यात्रा जैसी करीब 100 यात्राएं अलग-अलग संतों के जन्म स्थान या समाधि स्थल से प्रारंभ होती हैं। इस यात्रा का आकर्षण सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विदेशियों में भी है। हर साल रिसर्च के लिए यहां जर्मनी, इटली और जापान से स्टूडेंट्स आते हैं। प्रतिदिन पालकी यात्रा 20 से 30 किलोमीटर का रास्ता तय करके सूर्यास्त के साथ विश्राम के लिए रुक जाती है।

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