मुस्लिम वोटबैंक को लेकर मायावती ने बदली अपनी चाल, जानिए क्या कहा

लखनऊ. मुस्लिम वोटबैंक (Muslim Vote Bank) को लेकर बसपा सुप्रीमो मायावती (BSP Supremo Mayawati) ने अपनी चाल बदल दी है. 2019 के लोकसभा चुनाव में मुसलमानों से वोट मांगने वाली मायावती को अब इस बार का चुनाव साम्प्रदायिक क्यों लगने लगा है? उन्होंने भाजपा (BJP) और सपा (SP) पर सीधा आरोप लगाया है कि दोनों पार्टियां चुनाव को हिन्दू-मुस्लिम करना चाहती हैं. जिस मायावती ने सीधी जुबान से मुसलमानों से कभी वोट मांगा था, अब इस शब्द से वो इतनी सावधान क्यों दिखने लगी है? आखिर उन्होंने अपनी रणनीति क्यों बदल दी है.

इसे समझने से पहले थोड़ा पीछे चलते हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान सहारनपुर की रैली में मायावती ने सीधे मंच से कहा था कि बीजेपी को कांग्रेस नहीं हरा सकती है, बल्कि महागठबंधन ही हरा सकता है. ऐसे में मुसलमानों को किसी और को नहीं बल्कि महागठबंधन को वोट देना चाहिए. मायावती के इस बयान के बाद लोकसभा चुनाव में जबरदस्त ध्रुवीकरण देखने को मिला था. इसी वक्त सीएम योगी आदित्यनाथ ने बजरंज बली और आज़म खान ने बजरंग अली का नारा दिया था. चुनाव आयोग ने ऐसे ध्रुवीकरण को लेकर काफी नाराजगी भी जाहिर की थी. तब सपा और बसपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था लेकिन, अब अचानक मायावती ने चाल बदल दी है. मुसलमानों से वोट मांगने वाली नेता को इस बार का चुनाव साम्प्रदायिक लगने लगा है. मायावती ने बीजेपी और सपा पर चुनाव को साम्प्रदायिक करने के आरोप लगाये हैं. उन्होंने कहा है कि चुनाव को हिन्दू-मुस्लिम करने के लिए ही जिन्ना और अयोध्या जैसे मुद्दों को आगे बढ़ाया जा रहा है. उन्होंने ये भी कहा कि बीजेपी और सपा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं.

चुनाव में ध्रुवीकरण का नुकसान बसपा को
अब सवाल उठता है कि मायावती ने रणनीति क्यों बदल दी है. क्या मायावती ने विधानसभा के चुनाव में मुस्लिम वोटों की आस खो दी है? क्या उनको लगने लगा है कि मुस्लिम वोटबैंक का बिखराव नहीं होने जा रहा है? इसके दो पहलू समझे जा सकते हैं. पहला तो ये कि चुनाव में ध्रुवीकरण का नुकसान तो बसपा को उठाना ही पड़ेगा. बीजेपी और आरएसएस की ये लंबी कोशिश रही है कि किसी भी तरह से दलितों को हिन्दू के खांचे में लाया जाये. वो इस मामले में काफी हद तक सफल भी हुए हैं. ऐसे में चुनाव में ध्रुवीकरण तेज हुआ तो मायावती के वोटबैंक में और भी तगड़ी सेंध लग जायेगी. कुछ दिनों पहले आजाद समाज पार्टी (भीम आर्मी ) चीफ चन्द्रशेखर ने इस ओर इशारा भी किया था. उन्होंने लखनऊ में कहा था कि दलितों को हिन्दू बनने से रोकना जरूरी है. साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की आंधी में वोटर पहले हिन्दू हो जाता है. उसकी नजर में धर्म सबसे बड़ा हो जाता है और उसके बाद ही वह जाति के बारे में सोचता है. ऐसे में किसी भी पार्टी के परम्परागत वोटरों में भी बड़ी टूट हो जाया करती है. मायावती को इससे जरूर ही घबराहट हो रही होगी.

ध्रुवीकरण की वजह से चुनाव बीजेपी बनाम सपा हो जाएगा
दूसरा पहलू भी मायावती के लिए कम चिन्ताजनक नहीं है. लखनऊ के शिया कॉलेज में समाजशास्त्र विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. प्रदीप शर्मा ने कहा कि चुनाव में जितने ज्यादा साम्प्रदायिक मुद्दे हावी होते जायेंगे उतना ही चुनाव बीजेपी और सपा में सिमटता जायेगा. दूसरी पार्टियों की हिस्सेदारी कम होती जायेगी. ऐसा दिखने भी लगा है. आये दिन बीजेपी और सपा में ऐसे ही मुद्दों पर जुबानी जंग हो रही है. अयोध्या, अयोध्या कारसेवकों पर गोलीबारी, जिन्ना, पलायन और घर वापसी की चर्चा ने जोर पकड़ लिया है. ऐसे मुद्दे जितने ज्यादा उठते जायेंगे, उतना ही ज्यादा चुनाव दो दलों के बीच सिमटता जायेगा. ध्रुवीकरण की आंधी में हिन्दू मतदाता बीजेपी की ओर और मुस्लिम मतदाता सपा की ओर गोलबन्द होते जायेंगे. मायावती ये बखूबी समझ रही हैं. इसीलिए उन्होंने अपना स्टैण्ड अचानक से बदल लिया है.

चुनाव साम्प्रदायिक होने से बसपा को नुकसान
वो जानती हैं कि जैसे जैसे चुनाव साम्प्रदायिक होता जायेगा वैसे वैसे उनकी पार्टी की जीत की संभावना भी कम होती जायेगी. साथ ही वे इस बयान के जरिये अपने मुस्लिम वोटबैंक को बचाने की कोशिशों में भी जुटी है जो पश्चिमी यूपी में उनके साथ रहा है. बसपा की लाख कोशिशों के बावजूद मुस्लिम वोटबैंक का मायावती से ज्यादा अखिलेश यादव पर ऐतबार दिखा है.

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