मेनका गांधी को तो टिकट मिला पर वरुण का पत्ता क्यों किया साफ?

उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनावों को लेकर राजनीतिक माहौल काफी गर्माया हुआ है। इस समय भाजपा, सपा, कांग्रेस और बसपा की सीटों के बंटवारे को लेकर सरगर्मियां तेज़ हैं। ऐसे में भाजपा की पांचवी लिस्ट जारी कर दी है और इस लिस्ट में सबकी नज़रें मेनका गांधी और वरुण गांधी की सीट को लेकर थी। भाजपा ने सुल्तानपुर से मेनका गांधी को तो टिकट दे दी लेकिन पीलीभीत से वरुण गांधी का टिकट काट दिया। इसकी वजह भी साफ है, वरुण गांधी का भाजपा नेताओं से कई बार टकराव देखने को मिला है।

वरुण गांधी का पार्टी के नेताओं से टकराव

वरुण गांधी जब अपनी मां मेनका गांधी के साथ 2004 में भाजपा में शामिल हुए थे, तो उन्हें फायर बिग्रेड कहा जा रहा था। इसी चलते साल 2009 में उन्हें भाजपा की तरफ से पीलीभीत लोकसभा से टिकट दिया, लेकिन इस दौरान मुस्लमानों के खिलाफ भड़काऊ भाषण देने के कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा था, हालांकि वह चुनाव जीत गए थे।

इसके बाद 2013 में राजनाथ सिंह ने उन्हें भाजपा का राष्ट्रीय महासचिव भी बनाया था। 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान उन्होंने प्नधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी के नाम का विरोध करते हुए मोदी पर सवाल उठाए। वहीं से भाजपा में उनके ग्राफ गिरने का सिलसिला शुरू हुआ, तो वरुण गांधी ने भी समय-समय पर भाजपा को टारगेट करके उसमें घी डालने का लगातार किया।

केंद्र में मोदी-शाह के खिलाफ बोलना तो कभी मुख्यमंत्री योगी को टारगेट करने से वरुण ने कोई परहेज़ नहीं किया। 2022 में विधानसभा चुनावों से पहले किसान आंदोलन की पैरवी करने पर भाजपा के नेतृत्व में नाराज़गी साफ देखी जा सकती थी। इसके अलावा सेक्स क्लिप आने के बाद वरुण गांधी की छवि धूमिल होती चली गई।

इसका असर मां मेनका गांधी की राजनीति पर भी पड़ा। मोदी ने जब दूसरी बार सरकार बनाई तो उसमें सांसद मेनका गांधी को केबिनेट में कोई जगह नहीं मिली।

इस बार भाजपा लोकसभा चुनावों में वरुण गांधी का पत्ता साफ करके क्या संदेश देना चाहती है?

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