10,800 दस्तावेजी सबूत, 400 फिजिकल एविडेंस, 323 गवाह, 1300 पन्नों के तर्क और साध्वी प्रज्ञा ‘ब-इज़्ज़त बरी’

महाराष्ट्र के मालेगांव में 2008 में हुए भीषण बम धमाके के मामले में आखिरकार 17 साल बाद फैसला आ गया है। NIA की स्पेशल कोर्ट ने इस केस के सभी सातों आरोपियों को बरी कर दिया है, जिनमें भाजपा सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और कर्नल प्रसाद पुरोहित जैसे नाम शामिल हैं। कोर्ट ने कहा कि जांच एजेंसियां कोई भी आरोप साबित नहीं कर पाईं, इसलिए आरोपियों को संदेह का लाभ दिया जाता है। इस फैसले ने न केवल लंबे समय से चल रहे केस पर विराम लगाया है, बल्कि देश की जांच एजेंसियों और न्याय प्रक्रिया पर भी कई सवाल खड़े कर दिए हैं।

मालेगांव ब्लास्ट 2008: क्या हुआ था?

महाराष्ट्र के मालेगांव में 29 सितंबर 2008 को एक बड़ा बम धमाका हुआ था। यह धमाका एक मोटरसाइकिल में रखे गए विस्फोटक से हुआ था, जिसमें 6 लोगों की मौत हो गई और करीब 100 लोग घायल हुए थे। घटना ने पूरे देश को हिला दिया था और इसे उस समय कथित “हिंदू आतंकवाद” की शुरुआत के रूप में देखा गया।

कौन थे आरोपी?

इस केस में 7 प्रमुख लोगों को आरोपी बनाया गया, जिनमें प्रमुख नाम थे:

  • साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर (भाजपा सांसद)
  • लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित
  • रमेश उपाध्याय
  • अजय राहिरकर
  • सुधाकर चतुर्वेदी
  • समीर कुलकर्णी
  • सुधाकर धर द्विवेदी

इन सभी को अब कोर्ट ने सभी आरोपों से मुक्त कर दिया है।

17 साल की कानूनी प्रक्रिया: जांच और ट्रायल का पूरा सफर

🔸 2011 में NIA ने संभाली जांच, 2018 में शुरू हुआ ट्रायल

  • शुरुआत में केस की जांच महाराष्ट्र एटीएस कर रही थी।
  • 2011 में केस राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंपा गया, जिसने दोबारा से जांच शुरू की।
  • 2018 में सातों आरोपियों के खिलाफ आरोप तय हुए और ट्रायल की प्रक्रिया शुरू हुई।

🔸 सबूतों का अंबार, लेकिन नतीजा बरी

  • इस मामले में 10,800 से अधिक दस्तावेजी सबूत,
  • 400 से ज्यादा फिजिकल एविडेंस, और
  • 323 सरकारी गवाहों की गवाही कोर्ट में पेश की गई।
  • इनमें से 40 से अधिक गवाह अपने बयान से पलट गए।
  • बचाव पक्ष की ओर से 8 गवाहों की जिरह भी की गई।

अंतिम बहस और 1300 पन्नों के तर्क

अप्रैल 2025 में अभियोजन और बचाव पक्ष की अंतिम बहस पूरी हुई।
अभियोजन ने 1300 पन्नों में अपने तर्क अदालत के सामने रखे, जिसके बाद 19 अप्रैल को फैसला सुरक्षित रख लिया गया था। इसे पहले 8 मई 2025 को सुनाया जाना था, लेकिन कोर्ट ने तारीख बढ़ाकर 31 जुलाई 2025 कर दी।

कोर्ट का फैसला: “संदेह का लाभ दिया जाता है”

आज 31 जुलाई 2025 को NIA स्पेशल कोर्ट ने सभी सातों आरोपियों को बरी कर दिया। अदालत ने स्पष्ट कहा कि जांच एजेंसियां आरोप साबित नहीं कर पाईं, इसलिए सभी आरोपियों को संदेह का लाभ दिया गया है।

जज एके लाहोटी की अहम टिप्पणियाँ:
  • धमाका हुआ था, लेकिन यह साबित नहीं हुआ कि बम मोटरसाइकिल में रखा गया था।
  • यह भी साबित नहीं हुआ कि मोटरसाइकिल साध्वी प्रज्ञा के नाम थी।
  • यह भी स्पष्ट नहीं हुआ कि बम कर्नल पुरोहित ने बनाया था।

केस की जांच में हुई देरी और बदलाव

  • तीन जांच एजेंसियां केस में शामिल रहीं – महाराष्ट्र ATS, CBI और फिर NIA।
  • इस केस की सुनवाई के दौरान चार जज बदले गए।
  • यह सब मिलाकर इस केस को एक लंबा और जटिल कानूनी मामला बना दिया।

17 साल बाद सभी आरोपी मुक्त

करीब 17 साल बाद आया यह ऐतिहासिक फैसला उन सभी के लिए राहत लेकर आया है, जो वर्षों तक आतंकवाद के आरोपों का सामना करते रहे। इस मामले ने यह भी दिखाया कि जांच और अभियोजन में लापरवाही या सबूतों की कमी के चलते, इतना गंभीर मामला भी न्यायिक रूप से ठहर नहीं पाया।

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