गडकरी ने 170 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ाई थी कार

मद्रास हाईकोर्ट का आदेश- 80 किमी से ज्यादा न हो स्पीड

16 सितंबर को केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी मध्यप्रदेश के रतलाम जिले में थे। दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे की टेस्टिंग के लिए उन्होंने अपनी किया कार्निवाल गाड़ी को 170 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ाया। वीडियो वायरल भी हुआ। सवाल उठे कि जब केंद्र सरकार के नियम 120 किमी/घंटे से अधिक की रफ्तार की अनुमति नहीं देते तो गडकरी ने यह कोशिश क्यों की?

खैर, मामला टेस्टिंग का था। इस वजह से उछला नहीं। पिछले हफ्ते मद्रास हाईकोर्ट ने एक फैसले की वजह से हाईवे पर स्पीड लिमिट पर बहस को नया स्वरूप दे दिया। हाईकोर्ट ने केंद्रीय मंत्रालय के 120 किमी/घंटे की रफ्तार की अनुमति देने वाले नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया है। यानी अब हाईवे पर 80 किमी/घंटे से अधिक की रफ्तार नहीं पकड़ सकेंगे। फिर चाहे आप अपनी कार स्टेट हाईवे पर दौड़ा रहे हो या नेशनल हाईवे या एक्सप्रेसवे पर।

मद्रास हाईकोर्ट का फैसला क्या है?

यह मामला 2013 के एक रोड एक्सीडेंट से जुड़ा है। दरअसल, एक महिला टू-व्हीलर चला रही थी, तब एक बस ने उसे टक्कर मार दी थी। इस सड़क हादसे के बाद महिला 90% विकलांगता का शिकार हो गई है।इससे जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान मद्रास हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार के उस नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया, जो एक्सप्रेसवे पर 120 किमी/घंटा रफ्तार से कार दौड़ाने की इजाजत देता है। हाईकोर्ट ने सरकार की उस दलील को खारिज कर दिया कि स्पीड लिमिट को सब्जेक्ट एक्सपर्ट्स की कमेटी की सिफारिशों पर बढ़ाया गया था।अगर सरकारी नियमों की बात करें तो 2014 में सरकार ने 80 किमी/घंटे की स्पीड लिमिट तय की थी। बाद में इसे धीरे-धीरे बढ़ाकर 100 किमी/घंटा किया गया था। 2018 में स्पीड लिमिट को लेकर नया नोटिफिकेशन आया और इसमें एक्सप्रेसवे पर कुछ वाहनों को 120 किमी/घंटा की रफ्तार पकड़ने की इजाजत दी गई।

मद्रास हाईकोर्ट को स्पीड से क्या दिक्कत है?

हाईकोर्ट का कहना है कि सड़क दुर्घटनाओं की संख्या हर साल बढ़ रही है। इसकी एक बड़ी वजह ओवरस्पीडिंग है। लोग आम सड़कों से लेकर एक्सप्रेसवे तक स्पीड लिमिट तोड़ रहे हैं और इस वजह से एक्सीडेंट बढ़ रहे हैं।मद्रास हाईकोर्ट ने सरकार की दलीलों को खारिज कर दिया। साथ ही कहा कि रोड इन्फ्रास्ट्रक्चर सुधरा है। पहले से बेहतर हुआ है। इंजन की टेक्नोलॉजी भी एडवांस हुई है। पर इससे यह दावा नहीं किया जा सकता कि दुर्घटनाओं में कमी हुई है। ऐसे में स्पीड कंट्रोल करना जरूरी है।हाईकोर्ट ने अधिकारियों को स्पीड गन, स्पीड इंडिकेशन डिस्प्ले और ड्रोन का इस्तेमाल करने के निर्देश दिए। ताकि ओवरस्पीडिंग करने वालों को तत्काल पकड़ा जा सके। दोषी ड्राइवरों को इसकी सजा दी जा सके। उसने यह भी कहा कि ट्रैफिक रूल्स का उल्लंघन करने वाले ड्राइवरों को कड़ी सजा देना जरूरी हो गया है।

…तो क्या भारत में 120 किमी/घंटे की रफ्तार पकड़ सकते हैं?

हां। पर यह स्पीड लिमिट कुछ ही वाहनों के लिए है। इनमें ऐसे पैसेंजर वाहन शामिल हैं, जिसमें 8 से कम सवारी आती हैं। यानी कार से लेकर एसयूवी तक पैसेंजर कारें ही 120 किमी/घंटे की रफ्तार पकड़ सकती है। वह भी एक्सप्रेसवे पर। नेशनल हाईवे और अन्य सड़कों के लिए अलग नियम बने हुए हैं।इसी साल सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने स्पीड लिमिट को 20 किमी/घंटे बढ़ाने की पैरवी की थी। इसकी वजह यह थी कि राज्य पुलिस और जिला अधिकारी भी स्पीड लिमिट्स तय कर सकते हैं। इस वजह से एक ही हाईवे के एक सेक्शन में अलग-अलग स्पीड लिमिट्स को देखना पड़ता था। यह चुनौतीपूर्ण होता था।ऐसा नहीं है कि भारत में स्पीड लिमिट कम है और अन्य देशों में अधिक है। मद्रास हाईकोर्ट के फैसले से पहले तक यूके, यूएस, चीन जैसे देशों की तुलना में भारत में स्पीड लिमिट्स बहुत अलग नहीं थी। अब हाईकोर्ट के फैसले के बाद हालात जरूर बदल जाएंगे।

क्या वाकई में कारों की स्पीड जानलेवा बन रही है?

हां। NCRB की एक्सीडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड इन इंडिया 2019 रिपोर्ट इसकी पुष्टि करती है। 2019 में सड़क दुर्घटनाओं में 1.54 लाख लोगों की मौत हुई। इसमें 86 हजार यानी 55.7% मौतें ओवरस्पीडिंग और 42 हजार यानी 27.5% मौतें लापरवाही से गाड़ी चलाने या ओवरटेकिंग की वजह से हुई। और ऐसा नहीं है कि सड़क दुर्घटनाओं में कमी आ रही है। यह आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है।

आपकी स्पीड और दुर्घटनाओं में मौतों के बीच क्या संबंध है?

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2018 में एक रिपोर्ट तैयार की थी। यह कहती है कि कार की स्पीड जितनी अधिक होगी, उसे रोकने के लिए उतनी ही अधिक जगह लगेगी। 50 किमी/घंटे की रफ्तार से चल रही कार को रोकने में 13 मीटर लगेंगे। वहीं, 40 किमी/घंटे की रफ्तार से जा रही कार 8.5 मीटर में रोकी जा सकती है।1 किमी/घंटे की औसत स्पीड बढ़ाने पर चोटिल करने वाले हादसे होने की आशंका 4-5% तक बढ़ जाती है। इसी तरह इन हादसों में मरने की आशंका 3% बढ़ जाती है।स्पीड की वजह से इम्पैक्ट भी बढ़ता है। अगर कोई कार 80 किमी/घंटे की रफ्तार से टकराती है तो 30 किमी/घंटे की रफ्तार के मुकाबले मौत की आशंका 20 गुना अधिक होती है।स्पीड और चोटों की गंभीरता का संबंध भी महत्वपूर्ण है क्योंकि राहगीर और साइकिल चलाने वाले ही इसका शिकार होते हैं। राहगीरों से अगर कोई कार 30 किमी/घंटे की रफ्तार से टकराती है तो उनके जीवित रहने के अवसर 90% अधिक होते हैं। अगर कार 45 किमी/घंटे की रफ्तार से टकराती है तो जीवित रहने की संभावना घटकर 50% रह जाती है। और तो और, अगर स्पीड 80 किमी/घंटा हो जाती है तो बचने की गुंजाइश ही नहीं बचती।

तो क्या हाईवे पर रफ्तार बढ़ाना सेफ रहेगा?

पता नहीं। हाईकोर्ट का तो कहना है कि सड़कों को बेहतर बनाने या इंजन की टेक्नोलॉजी में सुधार के बावजूद सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों में कमी नहीं आई है। और तो और, सड़क दुर्घटनाओं और उनमें होने वाली मौतों में नेशनल हाईवे और स्टेट हाईवे की हिस्सेदारी अन्य सड़कों के मुकाबले बेहद अधिक है। नेशनल हाईवे पर प्रति 100 किमी पर औसतन 47 लोगों की मौत हुई है, जबकि अन्य सड़कों पर 100 किमी की दूरी में एक व्यक्ति की ही मौत हुई है।

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