लंपी से पशुधन को बचाना होगा!newsnasha

कोरोना और मंकीपॉक्स के बाद देश में ‘लंपी’ ने कोहराम मचा दिया है। देश के कई राज्यों में हजारों पशुओं में लंपी वायरस का संक्रमण लगातार

-राजेश माहेश्वरी

‎After Corona and Monkeypox, ‘Lumpy’ has created chaos in the country. Lungi virus infection continues in thousands of animals in many states of the country‎ बढ़ रहा है। इस घातक वायरस की वजह से राजस्थान, गुजरात, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्उ और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के कई हिस्सों में हजारों की संख्या में मवेशियों की मौत हो चुकी है। मरने वाले पशुओं में सबसे बड़ी संख्या गोवंश की है। यह रोग कमजोर इम्यूनिटी वाले पशुओं को खासतौर पर प्रभावित करता है। इससे पशु के शरीर में गांठें बन जाती हैं। उन्हें बुखार हो जाता है। यह बुखार और गांठें उनके लिए जानलेवा साबित हो रही हैं। गोवंश में लगातार फैल रहे लंपी वायरस ने किसानों और पशुपालकों की चिंता बढ़ा दी है। परेशानी की बात यह है कि केवल गाय नहीं, अब ये बीमारी बैलों और भैंसों में भी फैल रही है।

दरअसल, लंपी स्किन बीमारी एक वायरल रोग है। यह वायरस पॉक्स परिवार का है। यह बीमारी प्रमुखतया मच्छरों, और खून चूसने वाले चीचड़ों व मक्खियों के काटने से एक से दूसरे जानवर में फैलती है। लंपी स्किन बीमारी मूल रूप से अफ्रीकी बीमारी है और अधिकांश अफ्रीकी देशों में है। माना जाता है कि इस बीमारी की शुरुआत जाम्बिया देश में हुई थी, जहां से यह दक्षिण अफ्रीका में फैल गई। यह बात 1929 की है। साल 2012 के बाद से यह तेजी से फैली है, हालांकि हाल ही में रिपोर्ट किए गए मामले मध्य पूर्व, दक्षिण पूर्व, यूरोप, रूस, कजाकिस्तान, बांग्लादेश (2019) चीन (2019), भूटान (2020), नेपाल (2020) और भारत (अगस्त, 2021) में पाए गए हैं।

जानकारों के मुताबिक, लंपी स्किन डिजीज से पीड़ित पशुओं में मृत्यु दर 1 से 5 प्रतिशत तक है। पर इसकी वजह से पशु कल्याण और उन मवेशियों द्वारा किए जाने वाले जरूरी उत्पादन में भारी नुकसान हो सकते हैं। खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार, लंपी स्किन डिजीज का मृत्यु डर 10 फीसदी से कम है। संकर नस्ल के गौवंश में यह बीमारी ज्यादा देखने को मिल रही है। ऐसी संभावना जताई जा रही है कि गायों के अलावा अन्य जानवरों में भी इसका प्रकोप हो सकता है। इस बीमारी से सभी आयु की गायें प्रभावित होती हैं। यह रोग गैर-जूनोटिक है यानि कि यह पशुओं से इंसानों में नहीं फैलता। इसलिए जानवरों की देखभाल करने वाले पशुपालकों के लिए डरने की कोई बात नहीं है।

हिमाचल प्रदेश के सिरमौर, सोलन, शिमला, चंबा, ऊना और कांगड़ा जिलों में लंपी के मामले सामने आए हैं। इन जिलों में इसे महामारी घोषित किया गया है। हिमाचल के पशुपालन मंत्री ने कहा कि विभाग अब तक 20,700 पशुओं का टीकाकरण कर चुका है। पंजाब में लंपी त्वचा रोग से अब तक 2,100 से अधिक मवेशियों की मौत हो चुकी है, जबकि 60,000 से अधिक प्रभावित हुए हैं। राजस्थान में अब भी लंपी वायरस का कहर जारी है। इस वायरस से मरने वाली गायों को दफनाने के लिए जमीनें कम पड़ने लगी हैं। हरियाणा के जिले यमुनानगर में इस वायरस से 4 से 5 हजार गायें प्रभावित हुई हैं। हरियाणा के कई दूसरे जिलों में भी ये रोग तेजी से फैल रहा है।

इस रोग का कोई ठोस इलाज न होने के चलते सिर्फ वैक्सीन के द्वारा ही इस रोग पर नियंत्रण और रोकथाम की जा सकती है। राहत की बात यह है कि लंपी स्किन डिजीज की स्वदेशी सजातीय वैक्सीन लंपी प्रो वैक का भी पिछले दिनों केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने लांच किया है। इस वैक्सीन को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) के तहत राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र (एनआरसीइ) हिसार एवं भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद इज्जतनगर के विज्ञानियों ने संयुक्त प्रयास से इस वैक्सीन को विकसित किया है। इस वैक्सीन के आने से कई समस्याएं दूर होंगी। वहीं पशुपालकों को किफायती दाम में ये वैक्सीन उपलब्ध होगी।

अभी तक देश के करीब 17 राज्यों में फैल चुकी यह बीमारी महामारी का रूप ले चुकी है। लिहाजा जरूरी है कि न केवल सरकारें बल्कि पशुपालक भी इसे लेकर जागरुक रहें। यह एक संक्रामक रोग है, इसका कोई इलाज भी नहीं है। राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की ओर से लंपी स्किन रोग के लिए परंपरागत उपचार की विधि बताई गई है, पशुपालक उसको प्रयोग में ला सकते हैं। चूंकि मवेशियों की सेहत और दूध उत्पादन पर इसका खासा असर पड़ सकता है, इसीलिए इस संक्रमण की रोकथाम को गंभीरता से लेना आवश्यक है।

-लेखक उत्तर प्रदेश राज्य मुख्यालय पर मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं।

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