यूपी में मेडिकल माफिया ने ली एक और बच्चे की जान ! अस्पताल मैनेजर ने फोन पर पूछकर किया इलाज, मौत..

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है, जहां एक निजी अस्पताल में इलाज के दौरान तीन साल के मासूम बच्चे की मौत हो गई। परिजनों ने अस्पताल प्रशासन पर लापरवाही का गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि डॉक्टर मौजूद नहीं थे और स्टाफ फोन पर सलाह लेकर इलाज कर रहा था। मामला बढ़ता देख पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा। अब सीएमओ ने जांच के आदेश दे दिए हैं।
तीन साल के मासूम की मौत से मचा हड़कंप
घटना मंगलवार सुबह लखनऊ के पुरनिया बंधा रोड स्थित एक निजी अस्पताल की है। सीतापुर के मछरेहटा निवासी इंद्र प्रकाश अपने तीन साल के बेटे हर्षित को आंत से जुड़ी समस्या के चलते इलाज के लिए लाए थे। पहले उन्होंने पास के ही अस्पताल में दिखाया, जहां से डॉक्टर ने केजीएमयू ट्रॉमा सेंटर रेफर कर दिया।
केजीएमयू में नहीं मिला बेड, दलाल ने निजी अस्पताल भेजा
परिजनों का आरोप है कि जब वह केजीएमयू ट्रॉमा सेंटर पहुंचे तो काफी देर इंतजार के बाद भी वहां बेड नहीं मिला। इसी बीच एक दलाल ने उन्हें “बेहतर इलाज” का झांसा देकर एक निजी अस्पताल में भर्ती करवा दिया। यहीं से लापरवाही की कहानी शुरू हुई।
डॉक्टर नहीं, मैनेजर कर रहा था फोन पर इलाज – चाचा का आरोप
बच्चे के चाचा सुमित ने बताया कि रात भर अस्पताल में कोई डॉक्टर मौजूद नहीं था। अस्पताल का मैनेजर और कुछ अन्य स्टाफ डॉक्टर से फोन पर दवा पूछकर इलाज करते रहे। जैसे-जैसे रात बीती, बच्चे की हालत और बिगड़ती गई। सुबह करीब छह बजे अस्पताल की ओर से बच्चे की मौत की सूचना दी गई। इसके बाद परिजनों ने अस्पताल में जमकर हंगामा किया और सीएमओ से शिकायत करने की बात कही।
सीएमओ ने मांगा रिकॉर्ड, अस्पताल ने बताया आरोप बेबुनियाद
मामले को गंभीरता से लेते हुए लखनऊ के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ. एनवी सिंह ने कहा कि अस्पताल की सीसीटीवी फुटेज और इलाज से जुड़ा रिकॉर्ड मांगा गया है। सभी तथ्यों की जांच के बाद कार्रवाई की जाएगी।
वहीं, अस्पताल संचालक डॉ. हारून ने परिजनों के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि रात में डॉक्टर ने बच्चे को देखा था और परिजनों को सलाह दी गई थी कि बच्चे को किसी हायर सेंटर में शिफ्ट किया जाए, लेकिन उन्होंने नहीं ले गए। अस्पताल प्रशासन का दावा है कि इलाज में कोई लापरवाही नहीं हुई है।
निजी अस्पतालों में निगरानी तंत्र पर उठे सवाल
इस घटना ने एक बार फिर निजी अस्पतालों की कार्यप्रणाली और निगरानी व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जहां एक ओर लोग सरकारी अस्पतालों की सुविधाओं के अभाव में निजी संस्थानों का रुख करते हैं, वहीं इस तरह की घटनाएं न सिर्फ भरोसे को तोड़ती हैं, बल्कि सिस्टम की विफलता को भी उजागर करती हैं।