रायपुर, जगदलपुर और अंबिकापुर की हालत सबसे खराब,

छग में 100 में 17 नवजात दम तोड़ रहे: एक बेड पर 3-4 बच्चों का इलाज

ऐसी SNCU में जन्म के बाद गंभीर समस्याओं का सामना कर रहे शिशुओं का इलाज होता है। प्रदेश में ऐसी 23 सरकारी यूनिट संचालित हैं।

छत्तीसगढ़ में शिशु मृत्यु दर के आंकड़े भले ही सुधर रहे हों, लेकिन हालात अब भी उतने सही नहीं है। राज्य में स्पेशल न्यूबोर्न चाइल्ड केयर यूनिट (SNCU) में भर्ती 100 बच्चों में से 17 की मौत हो रही है। बड़ी संख्या में शिशु जन्म से ही बेहद कमजोर पैदा हो रहे हैं। रायपुर, जगदलपुर और अंबिकापुर में हालात और भी ज्यादा खराब हैं।

रायपुर में 100 में 36​​​​​​, ​जगदलपुर में 32 और अंबिकापुर में 28 नवजातों की मौत SNCU में हो जाती है। प्रदेश भर में ऐसी 13 यूनिट का संचालन हो रहा है। इन पर दबाव इतना अधिक है कि पिछले साल ही यहां 22 हजार शिशुओं को भर्ती कराया गया था। अधिकतर जगहों पर SNCU के एक बिस्तर पर 3 से 4 बच्चों का इलाज किया जा रहा है। अस्पताल प्रबंधन इस सुविधा में विस्तार की मांग कर रहे हैं।

स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने दैनिक भास्कर को बताया कि प्रदेश में हर साल 6 लाख से अधिक बच्चों का जन्म होता है। उनमें से समय से पहले प्रसव के मामले बहुत अधिक दिख रहे हैं। पिछले साल 22 हजार बच्चों को SNCU में भर्ती कराना पड़ा था। ऐसी परिस्थितियों में सालाना 400 से 500 बच्चों की मौत हो रही है। सिंहदेव ने कहा कि अंबिकापुर की SNCU में 16 तारीख को पांच बच्चों की मौत हुई। ऐसा रहा तो यह आंकड़ा 1800 मौत सालाना तक पहुंच जाएगा। यह बहुत ज्यादा है। इसको किसी भी कीमत पर रोकना होगा। स्वास्थ्य मंत्री ने विभाग को हर जरूरी कदम उठाने के लिए कहा है।

एक दिन में पांच नवजातों की मौत से स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप मचा हुआ है।

विशेषज्ञों के मुताबिक, समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चे कमजोर होते हैं। कई तरह के संक्रमण का खतरा होता है। ऐसे में उसके जीने की उम्मीद कम होती है। SNCU में ऐसे बच्चों को नियंत्रित तापमान, नियंत्रित ऑक्सीजन पर रखा जाता है। कई उपकरणों से उनकी निगरानी होती है। दवाएं दी जाती हैं, ताकि उनकी जीवन प्रत्याशा बढ़ाई जा सके। बहुत से मामलों में डॉक्टरों की उम्मीद के मुताबिक रिकवरी नहीं हो पाती।

गंभीर होने पर अस्पताल आना भी एक वजह
सिंहदेव ने बताया कि समीक्षा से पता चला है कि जितने बच्चे SNCU में भर्ती हो रहे हैं, उनमें से 55 से 60 प्रतिशत का जन्म उस अस्पताल में नहीं हुआ है। यानी प्रसव किसी अन्य अस्पताल में हुआ। वहां बच्चे की तबीयत बिगड़ी तो स्थानीय स्तर पर इलाज हुआ। गंभीर होने पर उन्हें रेफर किया गया और वे SNCU में भर्ती कराया गया। ऐसी परिस्थिति में भी मौत की संभावना बढ़ जाती है।

महिलाओं में कुपोषण भी बड़ा मुद्दा
सिंहदेव ने बताया कि महिलाओं में हीमोग्लोबिन और आयरन आदि की कमी भी एक बड़ा मुद्दा है। ऐसी स्थिति में गर्भधारण से उनके और बच्चे के जीवन में कई तरह की दिक्कतें पैदा होती हैं। उन्होंने कहा कि महिलाओं में हीमोग्लोबिन और आयरन की मात्रा आदि पर ध्यान देना केवल गर्भावस्था में ही नहीं, बल्कि उससे पहले भी जरूरी है ताकि ऐसी परिस्थिति न बन पाए।

सभी महिलाओं की नियमित जांच कराएगी सरकार
सिंहदेव ने बताया कि प्रदेश भर में सभी महिलाओं की नियमित स्वास्थ्य जांच बेहद जरूरी है। इसके लिए एक अभियान शुरू करने का निर्देश दिया गया है। लक्ष्य बड़ा है, चुनौती भी है, लेकिन इसको टाला नहीं जा सकता। उन्होंने कहा कि सभी महिलाओं में हीमोग्लोबिन और आयरन आदि की जांच से कमी का पता चलेगा। उनके इलाज की व्यवस्था होगी। यह केवल गर्भवती महिलाओं में ही नहीं, सभी महिलाओं के लिए होगा। उन्होंने कहा, जल्दी ही यह योजना आएगी।

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