कारोबारी गोपाल खेमका की हत्या: क्या ‘साइलेंट सिंडिकेट’ के निशाने पर था परिवार ? जवाब होश उड़ा देगा..

2018 में गुंजन खेमका की हत्या वैशाली में की गई थी। पुलिस ने जो मस्तु सिंह को पकड़ा, वो मात्र एक मोहरा था।
गुंजन खेमका का नाम पटना और आसपास के शहरों में फैले कई निवेश प्रोजेक्ट्स से जुड़ा था, जिनमें रीयल एस्टेट, सरकारी टेंडर और बाहरी निवेशकों की एंट्री जैसे विवाद शामिल थे।
क्या गुंजन ऐसे सौदों का हिस्सा था जिसमें किसी एक पक्ष ने उसे खत्म करवा दिया?
मस्तु सिंह की हत्या: एकमात्र आरोपी भी ‘खत्म’ कर दिया गया
गुंजन केस में पुलिस ने मस्तु सिंह को गिरफ्तार किया। लेकिन उससे पहले कि वो कुछ बड़ा उजागर करता—उसे भी मार दिया गया।
अब इस केस में गवाह नहीं, सबूत नहीं, संदर्भ नहीं—जैसे किसी ने जानबूझकर पूरी फ़ाइल साफ़ कर दी हो।
सवाल ये है
“क्या मस्तु सिंह जानता था कि असली मास्टरमाइंड कौन है?” अब गोपाल खेमका की हत्या: पिता जो बेटे के लिए लड़ रहे थे गुंजन की मौत के बाद गोपाल खेमका लगातार न्याय की मांग कर रहे थे। सूत्र बताते हैं कि वो कई बार लैंड प्रोजेक्ट्स और निवेश फ्रॉड को लेकर पुलिस और प्रशासन के पास गए थे।
क्या उन्होंने कुछ ऐसा पता कर लिया था जो उन्हें ‘खामोश’ कर देने की वजह बन गया?
गांधी मैदान के पास प्लांड एम्बुश: हादसा या सर्जिकल क्राइम?
रामगुलाम चौक, गांधी मैदान थाना से महज़ 300 मीटर दूर—गोपाल खेमका को गाड़ी से उतरते ही गोली मार दी जाती है।
कोई छीना-झपटी नहीं, कोई लूट नहीं, केवल हत्या।
ये लूट नहीं, बल्कि ‘टारगेटेड एलिमिनेशन’ की रणनीति लगती है। जिस तरह पुलिस को 30 मिनट लगते हैं, और कैमरे तक साफ नहीं हैं यह इशारा करता है कि अपराधी सिर्फ बहादुर नहीं थे, बल्कि सिस्टम के कुछ हिस्से से संरक्षित भी हो सकते हैं।
खेमका परिवार का पूरा सफाया: किसके लिए रास्ता साफ किया गया?
गुंजन की मौत से लेकर गोपाल खेमका की हत्या तक अब इस फैमिली का कोई वारिस मैदान में नहीं बचा। क्या ये किसी ज़मीन या बिजनेस डील से जुड़ी लड़ाई थी, जिसमें विरोधी पक्ष ने पूरे परिवार को ही रास्ते से हटा दिया? क्या कोई नया नाम, नई कंपनी, नई फर्म अब उन प्रोजेक्ट्स को ले रही है, जो पहले खेमका परिवार के पास थे?
कहानी अब शुरू होती है—अगर कोई खोजे तो
इस पूरी घटना को सिर्फ अपराध की तरह रिपोर्ट करना आसान है, लेकिन अगर पुलिस और जांच एजेंसियां सच में गहराई से जाएं, तो सामने आ सकता है:
- कारोबारी झगड़ों के नाम पर चल रहे नकली निवेश रैकेट्स
- जमीन कब्जे की पॉलिटिकल-क्रिमिनल लॉबी
- और सबसे खतरनाक: गवाह मिटाने की आदत बना चुकी व्यवस्था