जानिए केरल हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से क्यों कहा कोवीशील्ड के दो डोज का गैप घटाने को; क्या हो जाएगा इससे?

केरल हाईकोर्ट ने केंद्र को कोवीशील्ड वैक्सीन के दो डोज के बीच का अंतर कम करने को कहा है। कोर्ट ने डोज के गैप को लेकर कुछ लोगों को रियायत देने के फैसले को भी भेदभावपूर्ण कहा है। कोर्ट ने कहा कि यदि पहला डोज लगवाने वाला कोई व्यक्ति 28 दिन बाद वैक्सीन का दूसरा डोज लगवाना चाहता है तो उसे इसकी इजाजत दी जानी चाहिए।

कोर्ट ने वैक्सीन डोज के बीच गैप को लेकर और क्या कहा है? दो डोज के बीच गैप पर WHO की क्या गाइडलाइन है? किसी और वैक्सीन के दो डोज का गैप बढ़ाया गया है क्या? आइए जानते हैं…

केरल हाईकोर्ट ने क्या कहा है?
एक याचिका की सुनवाई के दौरान केरल हाईकोर्ट ने केंद्र से कोवीशील्ड वैक्सीन की दो डोज के बीच गैप कम करने को कहा है। कोर्ट ने इसके लिए CoWin पोर्टल पर बदलाव करने को भी कहा है, ताकि जो लोग 84 दिन से पहले कोवीशील्ड का दूसरा डोज लगवाना चाहते हैं वो स्लॉट बुक कर सकें।

कोर्ट ने कहा कि वैक्सीन लगवाना लोगों की इच्छा पर है। इसके लिए कोई बाध्यता नहीं है। ऐसा सरकार ने भी कहा है। जब वैक्सीन लगवाना स्वैच्छिक है तो वैक्सीन के दो डोज के बीच का गैप भी स्वैच्छिक होना चाहिए।

केंद्र सरकार ने कोर्ट को क्या जवाब दिया?
केंद्र ने कोर्ट से कहा कि वैक्सीन के दो डोज के बीच का गैप वैज्ञानिक आधार पर तय किया गया है। इस बात का वैज्ञानिक आधार है कि कोवीशील्ड के पहले और दूसरे डोज के बीच 84 दिन का अंतर कोरोना के खिलाफ सबसे ज्यादा सुरक्षा देता है।

हालांकि, केंद्र ने ये माना कि कुछ एज ग्रुप के लोगों के लिए दो डोज के बीच का गैप कम है। इसके साथ ही केंद्र ने कहा कि सिंगल डोज की तुलना में कोवीशील्ड की दो डोज ज्यादा इफेक्टिव हैं, भले दोनों डोज का अंतराल 12 से 16 सप्ताह से कम क्यों ना हो।

दो डोज के बीच गैप पर WHO की क्या गाइडलाइन है?
WHO की रेकमेंडेशन के मुताबिक कोरोना के खिलाफ वैक्सीन की अर्जेंट जरूरत थी। इस वजह से वैक्सीन कंपनियों ने क्लिनिकल ट्रायल के दौरान दो डोज के बीच न्यूनतम गैप रखा। WHO की गाइडलाइन के मुताबिक ही इसे 21 से 28 दिन रखा गया। बाद में हुई स्टडीज के आधार पर अलग-अलग वैक्सीन ने इस अंतर को 42 दिन से लेकर 12 से 16 हफ्ते तक बढ़ाया।

कोवीशील्ड के अलावा और कौन सी वैक्सीन के दो डोज का गैप बढ़ाया गया?
ब्रिटेन में वैक्सीनेशन अभियान शुरू होने के बाद ही वहां के अधिकारियों ने दो डोज के बीच तीन महीने तक का अंतर रखने की बात कही थी। इसके पीछे तर्क दिया गया कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को वैक्सीन की कम से कम एक डोज लग जाएगी तो उससे कोरोना से मौतों और हॉस्पिटलाइजेशन को कम किया जा सकेगा। हालांकि, ब्रिटेन की हेल्थ अथॉरिटीज ने फाइजर वैक्सीन के लिए दो डोज के बीच 3 से 12 हफ्ते तक का गैप रखा। वहीं, ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका के लिए ये गैप 4 से 12 हफ्ते का रखा गया।

हालांकि, देश की ज्यादातर आबादी को वैक्सीन की एक डोज लगाने के बाद ब्रिटेन ने दो डोज के बीच का गैप 12 हफ्ते से घटाकर 8 हफ्ते कर दिया।

वहीं, अमेरिका में मॉडर्ना और फाइजर-बायोटेक दोनों के दो डोज के बीच गैप नहीं बदला गया। वहां दोनों वैक्सीन के दोनों डोज के बीच 21 से 28 दिन का अंतर है।

भारत में क्या शुरुआत से ही वैक्सीन की दो डोज के बीच गैप ऐसा ही है?
16 जनवरी 2021 को देश में वैक्सीनेशन की शुरुआत हुई। उस वक्त कोवैक्सिन और कोवीशील्ड दोनों के दो डोज के बीच 28 दिन का अंतर रखा गया था। मई में कोवीशील्ड के दो डोज के बीच के गैप को बढ़ाने का फैसला किया गया। बताया गया कि ब्रिटेन में हुई स्टडीज बताती हैं कि दो डोज के बीच गैप बढ़ाने पर वैक्सीन की इफेक्टिवनेस बढ़ती है। ब्रिटेन ने कुछ दिनों के बाद दो डोज के बीच का गैप कम कर दिया, लेकिन भारत में ये गैप अब तक कम नहीं किया गया है।

हालांकि, वो लोग जो विदेश जाने वाले हैं या किसी बीमारी से पीड़ित हैं उन्हें कोवीशील्ड के दो डोज के कम दिनों के अंतर पर लगाने की भी इजाजत दी जा रही है। हालांकि, ये अंतर भी 28 दिन से कम नहीं हो सकता है। दो डोज के बीच का अंतर कम करने की सहूलियत केवल कोवीशील्ड में ही है। कोवैक्सिन के मामले में ऐसा नहीं है। वैसे भी कोवैक्सिन के दो डोज के बीच 4 से 6 हफ्ते का अंतर शुरू से ही है। इसे अब तक बढ़ाया या घटाया नहीं गया है।

थर्ड वेव को डिले करने के लिए कोवीशील्ड के दोनों डोज के बीच का गैप कम करना क्या ज्यादा बेहतर कदम नहीं होगा?
महामारी विशेषज्ञ डॉक्टर चंद्रकांत लहारिया कहते हैं कि ब्रिटेन ने मई में कोवीशील्ड की दो डोज के बीच गैप कम करना शुरू किया, लेकिन तब तक उनकी 50% से ज्यादा आबादी को एक डोज लग चुका था। इसमें भी पहले 50 साल से ज्यादा वालों के लिए ऐसा किया गया। ज्यादा आबादी को सिंगल डोज कवरेज होने के बाद ऐसा किया जा सकता है।

भारत की मौजूदा स्ट्रैटजी बिल्कुल ठीक है। जब तक ज्यादा से ज्यादा आबादी का सिंगल डोज कवरेज नहीं हो जाता तब तक ऐसा नहीं करना चाहिए। वैसे भी सिंगल डोज की इफेक्टिवनेस 71% है। यानी ऐसे में लोगों को गंभीर बीमारी नहीं होगी। ऐसा जरूर है कि जब कवरेज बढ़ जाएगा तब इस बारे में विचार किया जा सकता है।

कुछ देशों में तो बूस्टर डोज देने की शुरुआत हो गई है, उसका क्या?
इजराइल कोरोना वैक्सीन का तीसरा डोज लगाने वाला पहला देश है। सरकार ने कोरोना के डेल्टा वैरिएंट के केस बढ़ने पर यह फैसला लिया है। यहां के अस्पतालों में कोरोना के 81 मरीज भर्ती हैं। इनमें से 58% कोरोना का टीका लगवा चुके हैं। वैक्सीन कंपनी फाइजर-बायोएनटेक का दावा है कि तीसरा डोज डेल्टा वैरिएंट के खिलाफ और ज्यादा प्रभावी होगा। हालांकि, तीसरा डोज केवल कमजोर इम्यून सिस्टम वाले लोगों को दिया जाएगा। विशेषकर वे लोग जो हृदय, फेफड़े या कैंसर की बीमारी से पीड़ित हैं।

फाइजर के मुताबिक दूसरे डोज के छह महीने बाद तीसरा डोज दे सकते हैं। यह डोज दूसरे डोज के छह से 12 महीने के भीतर देना चाहिए। अमेरिका के हेल्थ एक्सपर्ट्स का कहना है कि तीसरे डोज को लेकर फाइजर का दावा अवसरवादी और गैर जिम्मेदाराना है।

एक्सपर्ट्स का कहना है कि तीसरा डोज लेना जरूरी नहीं है। वह भी ऐसे वक्त जब दुनिया के कई बड़े हिस्सों में टीकाकरण की दर बहुत कम है। साथ ही टीके की आपूर्ति सीमित है। धनी देशों के लोगों को अतिरिक्त डोज देना अदूरदर्शी है।

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