कश्मीरी पंडितों की मांग- घाटी की मस्जिदों से ऐलान हो, जो हुआ गलत हुआ

भरोसा दिलाएं कि पंडितों की सुरक्षा में खड़े हैं मुसलमान

कश्मीर में पिछले दिनों में चार हिंदू और सिखों की हत्या के बाद घाटी से कश्मीरी पंडितों के पलायन की खबरें चर्चा में हैं। इन खबरों का सच जानने के लिए दैनिक भास्कर के रिपोर्टर वैभव पलनीटकर और मुदस्सिर कल्लू ने घाटी में तीन दिन गुजारे। श्रीनगर, अनंतनाग, पुलवामा और कुलगाम जिलों का दौरा किया। ज्यादातर कश्मीरी पंडितों ने सुरक्षा की चिंता में मीडिया से बात नहीं की, लेकिन इस दौरान कई ऐसे कश्मीरी पंडित भी मिले जो पूरी तरह बेखौफ हैं। उनका कहना है कि हत्याओं के बाद चिंता तो बढ़ी है, लेकिन अब वो कश्मीर छोड़ने को तैयार नहीं। इनमें से ज्यादातर ने पलायन की खबरों को खारिज कर दिया।

1990 में घाटी छोड़ने से इनकार करने के बाद लगातार कश्मीरी पंडितों की आवाज बुलंद करने वाले वाले कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के प्रमुख संजय टिक्कू ने मांग रखी है, “कश्मीरी बहुसंख्यक सिर्फ सोशल मीडिया पर साथ न दें, बल्कि जमीन पर भी काम करें। कश्मीर की सारी मस्जिदों से ऐलान करके ये भरोसा कायम जाए कि जो हुआ वो गलत हुआ है। उनका सारा समुदाय पंडितों की सुरक्षा में खड़ा है।” यहां बहुसंख्यकों से टिक्कू का मतलब कश्मीरी मुसलमानों से है और अल्पसंख्यकों से मतलब हिंदू और सिख समुदाय से है।

टिक्कू कश्मीर के उन चुनिंदा पंडितों में से हैं जिन्होंने 1990 के मिलिटेंसी के दौर में भी घाटी नहीं छोड़ी। तब से आज तक वह कश्मीर में हर मंच पर कश्मीरी पंडितों की आवाज बुलंद कर रहे हैं। हाल में हुई हत्याओं के बाद टिक्कू को भारी भरकम सुरक्षा दी गई है। उनकी जान को खतरा है। जब हम उनसे मिलने पहुंचे तो सुरक्षा बलों की कतारों से होकर गुजरना पड़ा। हमारी तलाशी ली गई और पहचान सुनिश्चित की गई। इसके बाद हमें उस कमरे तक ले जाया गया जहां टिक्कू कंबल में पैर डालकर बैठे हुए थे। टिक्कू के साथ उनका 24 साल का बेटा भी था। वो अपने सामने लैपटॉप रखकर सोशल मीडिया पर हो रही हलचल पर चर्चा कर रहे थे। इसके बाद हमने संजय टिक्कू से बात शुरू की।

रोजगार और आर्थिक हालात के चलते भी पंडित कर रहे पलायन

हमने टिक्कू से पूछा कि हाल में हुई हत्याओं के बाद आपके अंदर क्या कुछ घट रहा है? इस पर उन्होंने कहा, “1990 में जो हम कश्मीरी पंडित महसूस कर रहे थे, अब फिर से वैसा ही महसूस कर रहे हैं। कहा नहीं जा सकता, हालात कब ठीक होंगे। 1990 के बड़े पलायन के बाद भी पंडित पलायन करते रहे हैं। इनमें बड़ी वजह तो सुरक्षा ही थी। रोजगार और आर्थिक हालात की वजह से भी कश्मीरी पंडित घाटी को छोड़ने पर मजबूर हुए हैं।”

कश्मीर के अल्पसंख्यकों को भरोसा दिलाए बहुसंख्यक आबादी

हमारा अगला सवाल था, क्या आप भी घाटी छोड़कर जाने के बारे में सोच रहे हैं? इस पर टिक्कू बोले, “1990 के खतरनाक हालातों में भी हमने कश्मीर घाटी नहीं छोड़ी, तो अब क्या छोड़कर जाएंगे। हम सबने ये तय किया है कि हम यहां डटे रहेंगे। मैंने यहां की सिविल सोसाइटी से कहा है कि हमारा साथ सिर्फ सोशल मीडिया पर ना दें, बल्कि जमीन पर भी काम करें। कश्मीर की सारी मस्जिदों से ऐलान करके ये विश्वास कायम किया जाना चाहिए कि जो हुआ वो गलत हुआ है, सारा समुदाय पंडितों की सुरक्षा में खड़ा है। सभी अल्पसंख्यकों को ये भरोसा दिलाया जाना चाहिए कि बहुसंख्यक आबादी उनके साथ खड़ी है।”

आरोप : 370 हटने के बाद सुनने वाला कोई नहीं, BJP नेता फोन तक नहीं उठाते

अब हमने पूछा-370 हटने के बाद ‘नए कश्मीर’ का दावा था, क्या वाकई में कुछ बदला? इस बार टिक्कू का जवाब बेहद तीखा था। वे बोले, “370 के हटाए जाने के बाद का नया कश्मीर यही है कि 5 दिन में 7 लोगों को मार दिया गया। 370 हटाए जाने के बाद कश्मीरी पंडितों, मुसलमानों, सिखों किसी के लिए कुछ भी नहीं बदला है। पहले राज्य सरकारों में हमारे जनप्रतिनिधियों के जरिए बात सुनी जाती थी, लेकिन अब तो कोई सुनने वाला ही नहीं है। यहां के स्थानीय BJP नेता अब सिक्योरिटी में चलते हैं, कोई फोन तक नहीं उठाता। BJP चाहती है कि बचे हुए कश्मीरी परिवार भी घाटी से निकल जाएं। ताकि वो बाकी देश को बता सकें कि हिंदुओं का जेनोसाइड हो रहा है और सारे कश्मीरी मुसलमान जिहादी हैं।”

शिकायत : जब जरूरत होती है तो चुप्पी साथ लेते हैं बहुसंख्यक, यानी मुस्लिम

हमारा अगला सवाल था, बाकी देश में धारणा है कि कश्मीरी कट्टर, जिहादी और एंटी हिंदू हैं, क्या ये सही है? इस पर टिक्कू बोले, “अगर ये बात सही होती तो हमारा यहां टिक पाना ही मुश्किल होता। बस गिला इस बात का है कि जिस वक्त हमें बहुसंख्यक समुदाय की जरूरत होती है, उस वक्त ये मौन धारण कर लेते हैं। अगर ये खुलकर हमारे पक्ष में सामने आते तो 1990 का पलायन नहीं होता। कश्मीर के बारे में जो धारणा बनाई जाती है वो भी नहीं होता। आपको ये समझना होगा कि देश की सारी पार्टियों ने कश्मीरियों का हमेशा अपने राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल किया। “

कश्मीर समस्या का समाधान क्या है?

टिक्कू कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक साल के लिए कश्मीर को देश की राजधानी बनाना चाहिए। जब वो यहां रहेंगे तब उनको यहां की दिक्कतें समझ में आएंगी। दूर बैठकर कुछ नहीं होने वाला। मंत्रियों, अधिकारियों, डेलीगेशन, पुलिस किसी को भी कश्मीर के बारे में कुछ समझ नहीं आएगा। यहां एक साल बिताएंगे तो उन्हें समझ आएगा कि कश्मीर की नब्ज कैसी है।

कश्मीर पंडित डरे नहीं हैं, यह संदेश देने के लिए जम्मू अपने घर नहीं गए विजय रैना

कश्मीर के कुुलगाम में एक सुरक्षित सरकारी कॉलोनी में रहने वाले विजय रैना कश्मीरी पंडितों के पलायन की बात को खारिज करते हुए कहते हैं कि कुछ लोग त्योहार में जम्मू गए हैं कुछ दिनों बाद सभी लौट आएंगे।

हमारी बात एक और कश्मीरी पंडित विजय रैना से हुई। कुलगाम के रहने वाले विजय को 1990 में अपना घर छोड़कर जम्मू पलायन करना पड़ा था, लेकिन 2010 के आसपास वो पीएम रीहैब स्कीम के तहत कश्मीर लौटे और अब वो भारी सुरक्षा वाली सरकारी कश्मीरी पंडित कॉलोनी में रहते हैं।

जम्मू-श्रीनगर हाईवे के किनारे 4-5 मंजिला ऊंची कई इमारते हैं जिसमें करीब 350 कश्मीरी पंडित परिवार रहते हैं। विस्थापित पंडितों को यहां जम्मू से वापस लाकर बसाया गया है। यहां रहने वाले ज्यादातर लोग सरकारी नौकरी में हैं। पूरी कॉलोनी को चारों तरफ से सील किया गया है और तगड़ी सुरक्षा निगरानी रखी जाती है।

जम्मू-श्रीनगर हाईवे के किनारे 4-5 मंजिला ऊंची कई इमारते हैं जिसमें करीब 350 कश्मीरी पंडित परिवार रहते हैं। इस कॉलोनी के चारों ओर ऊंची दीवार है।

रैना का कहना है कि सात लोगों की हत्या से पहले अपने घर जम्मू जाने का प्लान बना चुका था। तभी ये हत्याएं होने लगीं तो मैं घाटी में ही रुक गया। हमने रैना से कुछ सवाल पूछे जिनका उन्होंने बेबाकी से जवाब दिया…

सवाल : कहा जा रहा है कि लोग बड़ी तादाद में पलायन कर रहे हैं। क्या ये बात सही है?

जवाब : जिस तरीके से हाल में लोगों की हत्याएं हुई हैं, उससे डर का माहौल तो बना है। इसके बाद सरकार एक्शन में आई है। घाटी में कश्मीरी पंडितों की 6-7 बस्तियां हैं, सरकार ने हमें सुरक्षा भी दी है। पलायन की बात सही नहीं है।

यहां रहने वालों के स्थाई घर जम्मू में ही हैं। त्योहार का मौसम है। ऑफिस से छुट्टी दे दी गई है। इसलिए वो अपने जम्मू वाले घरों को चले गए हैं। त्योहार मनाकर लोग फिर से लौट आएंगे।

सवाल : आप अपने जम्मू वाले घर वापस क्यों नहीं गए?

जवाब : मेरा पहले से जम्मू जाने का प्लान था। जिस दिन मुझे निकलना था उसी दिन खबर आई कि कश्मीरी पंडितों और एक सिख महिला की हत्या हो गई है। इसके बाद मैंने सोचा कि अगर अब जम्मू गया तो इसका गलत मैसेज जाएगा। कश्मीरी पंडितों को कुछ लोग भगोड़े कहते हैं। बहुसंख्यक आबादी के प्रति भी गलत संदेश जाता, इसलिए यहीं रुकने का फैसला किया। यहीं पूरे दमखम के खड़ा हूं।

सवाल : देशभर में कश्मीर को जैसा समझा जाता है, क्या वही हकीकत है?

जवाब : मेरे गांव के जो मुसलमान हैं, वो हम पर पूरा भरोसा करते हैं। हम भी उन पर पूरा भरोसा करते हैं। हम हिंदू, मुस्लिम, सिख सभी मिलकर रहते हैं। जो भी कश्मीरी पंडित यहां सरकारी नौकरियों में काम करते हैं, वो इन्हीं लोगों के बीच जाकर काम करते हैं। फिर भी कुछ लोग यहां के हालात सांप्रदायिक बनाने और झगड़ा कराने की कोशिश कर रहे हैं।

सवाल : आपको लगता है कि कभी बिना सुरक्षा के खुली हवा में सांस ले पाएंगे?

जवाब : हम यही चाहते हैं कि हम 1990 के पहले जैसे अपने गांव में खुलकर रहा करते थे, वैसे ही फिर से अपनी जिंदगी जिएं, लेकिन हाल में जो हत्याएं हुई हैं, उससे फिर डर का माहौल बन गया है। अब सरकार कोशिश कर रही है कि शांति का माहौल बने और हमें उम्मीद है कि ऐसा माहौल जरूर बनेगा।

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