कर्नाटक में चोरी-छिपे देवदासी प्रथा आज भी जारी:

विदेशी संस्थान का अनुमान- राज्य में 90 हजार से ज्यादा देवदासियां, 20% की उम्र 18 से कम

कर्नाटक के कुडलिगी से जहां 22 साल की युवती ने देवदासी प्रथा से बचने की गुहार लगाई थी।

हम 21वीं सदी में जी रहे हैं। लेकिन कर्नाटक के कई हिस्सों में सामाजिक-सांस्कृतिक मान्यताओं के चलते आज भी देवदासी कुप्रथा जारी है। फरवरी में 22 साल की युवती रुद्रम्मा (परिवर्तित नाम) ने देवदासी बनने से बचने के लिए देवदासी निर्मूलन केंद्र से मदद मांगी थी। इससे प्रशासन हरकत में आया और उसे देवदासी बनने से बचा लिया।

उसे तलाश करते हुए हम विजयनगर जिले के कुडलिगी कस्बे स्थित उसके घर पहुंचे। यहां रुद्रम्मा अपनी मां के साथ खेत पर मजदूरी के लिए निकल रही थी। रुद्रम्मा कहती हैं- ‘भले ही वो इस कुप्रथा का हिस्सा बनने से बच लग गईं। लेकिन मेरे पारिवारिक बैकग्राउंड के चलते मेरे प्रेमी के घर वालों ने शादी करने से मना कर दिया। अब इस तनाव से बाहर निकल रही हूं और परिवार का सहयोग करने के लिए मजदूरी कर रही हूं।’

रुद्रम्मा आगे बताती हैं कि मैंने कभी इस तरह का जीवन नहीं सोचा था। मैं पढ़ाई करती थी। डांस और ड्रामा में रुचि होने की वजह से इंस्टीट्यूट में दाखिला लिया था। जैसे ही वहां के लोगों को पता चला कि मैं एक सेक्स वर्कर के परिवार से हूं तो इंस्टीट्यूट और उसके आसपास के लड़के ताने देने लगे। इसलिए सबकुछ छूट गया। वो कहती हैं कि उम्र के साथ-साथ सामाजिक विभाजन दिखने लगता है। यह सामाजिक भेदभाव टूटना चाहिए।

रुद्रम्मा की मां कहती हैं कि शादी से बचने के लिए रुद्रम्मा ने झूठ का सहारा लिया था। रुद्रम्मा ने पुलिस को बताया था कि देवदासी बनने के लिए उसकी मां और परिवार की तरफ से दबाब डाला जा रहा है। बाद में उसकी मां ने लिखित में आश्वासन दिया था कि वो अपनी बेटी को देवदासी प्रथा से नहीं जोड़ेगी। दरअसल, यह प्रथा धार्मिक परंपरा से जुड़ी है। इसलिए कुडलिगी में जब किसी लड़की को देवदासी प्रथा में डाला जाता है तो इसकी शुरुआत मारम्मा मंदिर में पूजा-पाठ, अनुष्ठान और देवदासी लड़की के द्वारा प्रस्तुत नृत्य और गीत से होती है।

मंदिर को समर्पित किए जाने और भगवान से शादी के बाद वो बिना किसी भविष्य के उच्च जातियों के पुरुषों की सेवा के लिए उनकी सेक्स गुलाम या बंधुआ बन जाती हैं। बीते कुछ सालों से प्रशासन ने इस तरह के रीति -रिवाज के पालन पर रोक लगाई है। लेकिन जिले के कुछ मंदिरों में चोरी-छिपे यह प्रथा बदस्तूर जारी है। रूद्रम्मा को मंदिर भेजे जाने से पहले रेस्क्यू कर लिया गया था।

120 गांवों में 3 हजार देवदासियां…इनमें से 90% अनुसूचित जनजाति से आती हैं
पत्रकार किरण कुमार बलन्नानवरन बताते हैं कि विजयनगर के हुडलिगे ताल्लुका में 120 गांव आते हैं। इन्हीं गांवों में ही करीब 3 हजार पूर्व देवदासियां हैं। इन सबके पुनर्वास की जिम्मेदारी सरकार की है। 90% देवदासी अनुसूचित जनजाति से ही आती हैं। ब्राह्मण और उच्च जातियों की लड़कियां देवदासी नहीं बनाई जाती। देवदासी बचाव और पुनर्वास से जुड़े गोपाल नायक बताते हैं कि देवदासी का भाई सामान्य जीवन जीता है और उसकी पत्नी को इस प्रथा में नहीं शामिल किया जाता।

राज्य सरकार द्वारा 2008 में किए गए सर्वे और कर्नाटक राज्य महिला विकास निगम के आकंड़ों में देवदासियों की संख्या करीब 40,600 है। पर 2018 में एक विदेशी गैर सरकारी संस्था और और कर्नाटक राज्य महिला विश्वविद्यालय द्वारा किए गए अध्ययन में कर्नाटक में 90 हजार देवदासियां पाई गईं, जिसमें से उत्तरी कर्नाटक की 20% से ज्यादा देवदासी 18 वर्ष से कम उम्र की हैं।

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