‘कारगिल हीरो’ हकीमुद्दीन के घर में घुसी भीड़ और पुलिस, बांग्लादेशी-रोहिंग्या कहकर ले गए थाने !

महाराष्ट्र के पुणे में 1999 के करगिल युद्ध में हिस्सा ले चुके पूर्व सैनिक हकीमुद्दीन शेख के परिवार को नागरिकता साबित करने के लिए मजबूर किया गया। परिवार का आरोप है कि आधी रात को 30-40 लोगों का एक झुंड, जिसमें कथित रूप से पुलिसकर्मी भी शामिल थे, उनके घर में घुसा, धमकी दी और वैध दस्तावेजों को भी खारिज कर दिया। यह घटना पुणे के चंदन नगर इलाके में घटी और इससे पूरे इलाके में दहशत फैल गई है।
आधार कार्ड दिखाने के बावजूद थाने ले जाया गया
परिवार ने बताया कि जब उन्होंने आधार कार्ड दिखाया, तो उसे फर्जी बताकर उनका मजाक उड़ाया गया। इसके बावजूद उन्हें पुलिस स्टेशन ले जाया गया और रात भर 3 बजे तक बैठाकर रखा गया। हकीमुद्दीन के भतीजों नौशाद और नवाब शेख ने बताया कि जिन लोगों ने दस्तावेजों की जांच की, वे गुंडों की तरह बर्ताव कर रहे थे। पुलिस की मौजूदगी में इस तरह का आचरण सवाल खड़े करता है।
पुलिस ने दी सफाई, लेकिन उठे कई सवाल
पुणे के डीसीपी सोमय मुंडे ने सफाई देते हुए कहा कि पुलिस को अवैध आप्रवासियों की सूचना मिली थी, जिसके बाद जांच टीम मौके पर भेजी गई थी। दस्तावेज मांगे गए और जब यह स्पष्ट हो गया कि वे भारतीय हैं, तो उन्हें जाने दिया गया। उन्होंने इस बात से इनकार किया कि टीम के साथ कोई “गैर-पुलिसकर्मी” था और कहा कि उनके पास इसका वीडियो फुटेज भी है। लेकिन परिवार का दावा है कि पुलिस के साथ कुछ बाहरी लोग भी थे जो उग्र नारेबाजी कर रहे थे और दरवाज़े तोड़ने की कोशिश की।
‘हमें क्यों साबित करना पड़ रहा है?’
58 वर्षीय हकीमुद्दीन शेख ने 1984 में भारतीय सेना जॉइन की थी और 2000 में रिटायर हुए। उन्होंने 269 इंजीनियर रेजिमेंट में 16 साल सेवा की और करगिल युद्ध में भाग लिया। हकीमुद्दीन ने कहा, “मैंने इस देश के लिए लड़ाई लड़ी, फिर भी मेरे परिवार से नागरिकता का सबूत मांगा जा रहा है? ये कैसा न्याय है?” उनकी पीड़ा इस बात से स्पष्ट झलकती है कि देश के लिए लड़ने वाले सैनिक को ही अपनी भारतीयता साबित करनी पड़ रही है।
1960 से पुणे में रह रहे, फिर भी ‘घुसपैठिया’ का ठप्पा?
परिवार मूल रूप से उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ का निवासी है, लेकिन 1960 से पुणे में रह रहा है। हकीमुद्दीन अब यूपी लौट चुके हैं, लेकिन उनके भाई इरशाद शेख और अन्य सदस्य आज भी चंदन नगर में ही रहते हैं। इरशाद ने बताया कि कुछ अनजान लोग अचानक उनके घर घुसे, दरवाज़े तोड़े और ‘कागज़ दिखाओ’ की तर्ज पर दस्तावेज़ मांगने लगे। पुलिस की गाड़ी सड़क पर खड़ी थी और सबको जबरन थाने ले जाया गया।
दो और वॉर वेटरन भी इसी परिवार में, फिर भी संदिग्ध?
इस परिवार में दो और पूर्व सैनिक हैं — शेख नईमुद्दीन और शेख मोहम्मद सलीम, जिन्होंने क्रमशः 1965 और 1971 के युद्धों में भाग लिया था। इसके बावजूद उनके परिवार को ‘बांग्लादेशी या रोहिंग्या’ घोषित करने की धमकी दी गई। परिवार ने सवाल उठाया कि क्या यही देश के सैनिकों का सम्मान है? क्या कोई भी आकर भारतीय नागरिकों से उनकी भारतीयता का सबूत मांग सकता है?
सवाल जो अब जवाब मांगते हैं
- क्या सेना में सेवा देने के बावजूद नागरिकता पर सवाल उठाना जायज है?
- क्या पुलिस की कार्रवाई उचित और संवेदनशील थी?
- क्या इस घटना से मुस्लिम समुदाय के प्रति एक अलग तरह का व्यवहार उजागर होता है?
देशभक्ति के प्रमाण पत्र की राजनीति?
यह मामला सिर्फ एक परिवार का नहीं, बल्कि एक पूरे तंत्र पर सवाल खड़े करता है जहां करगिल के सिपाही का परिवार भी खुद को भारतीय साबित करने को मजबूर हो जाता है। यह घटना न केवल कानून व्यवस्था, बल्कि सामाजिक समरसता और नागरिक अधिकारों के प्रति हमारी सोच पर भी बड़ा सवालिया निशान है।