Shocking: क्या अब पुलिस जिंदा इंसान का भी करवाती है पोस्टमार्टम ? मृतक खुद बोला “साहब मैं जिंदा हूं, मत करवाइये..”

पुलिस ने एक युवक को मृत समझकर पंचनामा भर दिया और पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया—लेकिन अगली सुबह वही युवक थाने पहुँच गया और चिल्लाया, “साहब! मैं जिंदा हूँ, पोस्टमार्टम रोकिए।” इस घटना ने पुलिस प्रशासन की संदिग्ध कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

पंचनामा में ‘मृत’—जबकि असलियत कुछ और थी

घाटमपुर पुलिस ने उक्त युवकों के साथ कथित तौर पर मौत का फर्जी पंचनामा तैयार कर लिया। पुलिस उसे मृत घोषित कर थाने से भेज रही थी, जबकि युवक बिल्कुल स्वस्थ था। उसके स्वयं शुरू किए अनुरोध ने पूरा मामला उजागर किया।

युवक का खुद आकर दिया बयान

पुलिस जांच की शुरुआत युवक के थाने आने तक नहीं हुई। स्वयं युवक के आने पर पुलिस को एहसास हुआ कि मृत घोषित किया गया व्यक्ति ज़िंदा है—इस गड़बड़ी ने विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए।

प्रशासन की लापरवाही या जानबूझकर की गई गड़बड़ी ?

मृत घोषित युवक की पहचान कैसे की गई, यह सबसे बड़ा सवाल है।

घटना के संबंध में पंचनामा, स्वरों, अस्पताल रजिस्टर तथा कैमरा फुटेज की जांच अभी बाकी है।

पोस्टमार्टम भेजने से पहले संगठनिक निरीक्षण की प्रक्रिया की भी समीक्षा की जानी चाहिए।

कानूनी और प्रशासनिक समीक्षा होगी जरूरी

युवक की ओर से शिकायत दर्ज होने की संभावना वक्त के साथ बढ़ रही है।

पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के कार्य पर सीबीआइ या अन्य स्वतंत्र जांच के आदेश की मांग उठ रही है।

मृत घोषित किसी व्यक्ति को पोस्टमार्टम भेजने से पहले जांच की जरुरत और स्पष्ट निर्देशों की आवश्यकता स्पष्ट हुई।

इससे पहले की ऐसी घटनाएँ

कुछ समय पहले यूपी के अन्य जिलों से भी ऐसी घटनाएँ सामने आई थीं जहां पुलिस अनावश्यक लापरवाही की बात सामने आई। इससे ट्रस्ट की कमी उभरती है, और भटकाव लोगों के मन में सवाल खड़े करता है।

कानपुर के इस फर्जी “मृतक” युवक के मामले ने कानून-व्यवस्था और पुलिस तंत्र की विश्वसनीयता पर गंभीर संकट लाकर खड़ा कर दिया है। जल्द की जा रही जांच, दोषियों को खोज निकालने और पारदर्शी कार्रवाई राज्य प्रशासन की जवाबदेही तय करेगी। आने वाले दिन इस विषय में प्रशासन की संजीदगी तय करेगी कि क्या ऐसी घटनाओं पर पूर्ण नियंत्रण  किया जा सकता है।

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