149 साल पुरानी ‘दरबार मूव’ की परंपरा खत्म:सरकार खुश, लेकिन जम्मू के कारोबारी नाराज

10 हजार कर्मचारी 6 महीने के लिए जम्मू आने से यहां के बाजारों में बढ़ती थी रौनक

दरबार मूव खत्म करने के खिलाफ चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज ने जम्मू में एक दिन के बंद का भी आह्वान किया था।

जम्मू-कश्मीर में 149 साल पुरानी ‘दरबार मूव’ परंपरा खत्म होने से जम्मू के काराेबारी बेहद नाराज हो गए हैं। वहीं, जम्मू को अपना दूसरा घर बनाने वाले कश्मीरी कर्मचारी भी निराश हैं। दरअसल, प्रशासन ने तीन दर्जन से ज्यादा विभागों के कार्यालयों के अभिलेखों का डिजिटलीकरण पूरा होने के बाद जून 2021 में दरबार मूव के लिए कर्मचारियों के नाम अलाॅट आवास के आवंटन रद्द कर दिए थे।

साल में दाे बार हाेने वाले दरबार मूव से 10 हजार कर्मचारियाें काे आवास बदलने की जरूरत हाेती थी। इसके लिए उन्हें 25 हजार का भत्ता दिया जाता था। दरबार मूव हाेने पर सचिवालय, राजभवन, पुलिस मुख्यालय, सरकारी विभाग, सार्वजनिक उपक्रम, निगम, बोर्ड और हाई काेर्ट के मुख्य विंग को गर्मी में श्रीनगर और सर्दी में जम्मू स्थानांतरित किया जाता था। यह परंपरा 19वीं शताब्दी से चली आ रही थी।

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जम्मू के बाजारों में दरबार मूव के बाद रौनक आती थी, जो अब थम गई है।

जम्मू के रघुनाथ बाजार बिजनेसमैन एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरिंदर महाजन ने कहा, ‘जब दरबार सर्दियों में जम्मू आता था, तो कश्मीर के हजारों कर्मचारी और उनके परिवार जम्मू आते थे। जम्मू के बाजारों में छह महीने तक चहल-पहल रहती थी। बिक्री बढ़ जाती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा।’ महाजन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र माेदी और उपराज्यपाल से दरबार मूव बंद करने के फैसले पर पुनर्विचार करने की अपील की है।

दरबार मूव खत्म करने के खिलाफ चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज ने जम्मू में एक दिन के बंद का भी आह्वान किया था। नरवाल के किरयानी तालाब क्षेत्र के दूध विक्रेता आलमदीन पिछले साल यहां रहने वाले घाटी के एक दर्जन परिवारों को दूध देते थे। शास्त्री नगर निवासी माणिक गुप्ता घर का एक हिस्सा कश्मीर के एक कर्मचारी को छह महीने के लिए किराए पर देते थे, लेकिन इस बार यह नहीं हो पाएगा।

दरबार मूव के लिए बड़ी संख्या में ट्रकों के जरिए दस्तावेज श्रीनगर से जम्मू लाए जाते थे।

सरकार का दावा- इससे 200 कराेड़ रुपए बचेंगे
प्रशासन का दावा है कि दरबार मूव बंद करने से सरकारी खजाने को सालाना 150-200 करोड़ रुपए से अधिक की बचत होगी। हर साल नवंबर के पहले सप्ताह में सिविल सचिवालय की ओर जाने वाली जम्मू की सड़कों की मरम्मत की जाती थी। खराब ट्रैफिक सिग्नल सुधारे जाते थे। सैकड़ों कार्यालय परिसरों को सजाया जाता था। अब यह नहीं होगा।

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