चेन्नई में ‘जल प्रलय’ क्या जलवायु परिवर्तन का नतीजा? जानिए एक्सपर्ट की राय

भारत मौसम विज्ञान विभाग ने कहा है कि 10 और 11 नवंबर को तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों में अत्यधिक भारी वर्षा होने की आशंका है. एक चक्रवाती परिसंचरण दक्षिण-पूर्वी बंगाल की खाड़ी और उससे सटे दक्षिण अंडमान सागर के ऊपर मध्य क्षोभमंडल स्तर तक फैला हुआ है. इसके प्रभाव के चलते दक्षिण-पूर्वी बंगाल की खाड़ी और पड़ोसी क्षेत्र में कम दबाव का एक क्षेत्र बनने और इसके पश्चिम-उत्तर-पश्चिम की ओर बढ़कर उत्तरी तमिलनाडु तट के पास पहुंचने का अनुमान है. विभाग ने कहा कि इसके प्रभाव में 10 और 11 नवंबर को बहुत भारी बारिश होने की आशंका है.

क्यों हो रही भारी बारिश
मौसम के जानकार और स्वतंत्र ब्लॉगर प्रदीप जॉन लिखते हैं. इस साल नवंबर माह में भारी से बेहद भारी बारिश की संभावना काफी ज्यादा है. पहले ही उत्तर पूर्व मानसून की वजह से 330 मिमी बारिश हो चुकी है जो सामान्य से 75 फीसदी अधिक है. जबकि अब भी बारिश का मौसम करीब 48 दिन बचा हुआ है. जॉन आगे लिखते हैं कि ला नीना (La Nina) को तमिलनाडु की बारिश के अनुकूल नहीं माना जा रहा था. लेकिन मैडेन-जुलिय ऑस्सिलेशन (Madden-Julian Oscillation) और इंटर ट्रॉपिकल कंवर्जेंस (inter-tropical convergence) को इस बारिश के लिए जिम्मेदार माना जा रहा है. उनका कहना है कि इस बार 2005 की तरह बारिश हो रही है. क्योंकि इंटर ट्रॉपिकल कंवर्जेंस की वजह से बार-बार कम दबाव क्षेत्र बन रहा है और इस कारण भारी बारिश हो रही है.

जलवायु परिवर्तन का असर तो नहीं….
मौसम के जानकार जॉन और मौसम विभाग ऐसी किसी संभावना से इनकार कर रहे हैं. हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक मौसम विभाग के पूर्व डिप्टी डारेक्टर और विज्ञानी वाईईए राज कहते हैं कि इस तरह की भारी बारिश पहली बार नहीं हो रही है. पहले भी कई दफा ऐसी बारिश देखी गई है. ऐसा जलवायु परिवर्तन की वजह से नहीं हो रहा है. नवंबर 1976 में चेन्नई में सबसे अधिक बारिश हुई थी और वह अब भी रिकॉर्ड है. राज कहना है कि चेन्नई में अभी भी रिकॉर्ड स्तर पर बारिश नहीं हुई है. उनका कहना है कि जल प्रलय जैसी स्थिति मानव निर्मित है. अब चेन्नई में पानी के जमा होने की जगह बहुत कम बची है. बिल्डिंग बनने की वजह से ऐसा हुआ है.

जलवायु परिवर्तन का असर
वहीं एक दूसरे एक्सपर्ट का कहना है कि यह जलवायु परिवर्तन की वजह से हो रहा है. स्काईमेट वेदर (Skymet Weather) के वाइस प्रेसिडेंट महेश पलावत ने बातचीत में कहा कि यह बेमौसम की इस बारिश की वजह जलवायु परिवर्तन है. उनका कहना है कि 2015 में तो वाकई जल प्रलय आया था. वैसे बंगाल की खाड़ी में चक्रवात को जो ट्रेंड है वो असामान्य नहीं है, लेकिन जो बारिश की जो मात्रा है वो निश्चित तौर पर जलवायु परिवर्तन की वजह से है. हर साल मौसम की चरम स्थिति में बदलाव हो रहा है.

छह साल बाद फिर से बारिश का कहर
अत्यधिक बारिश से छह साल पहले तबाही झेल चुके चेन्नई में मूसलाधार बारिश के बाद जलभराव की समस्या पैदा हो गई है. अत्यधिक बारिश होने के बाद तीन जलाशयों के दरवाजे खोले गए हैं ताकि अतिरिक्त पानी को छोड़ा जा सके. मौसम विभाग के अधिकारी ने बताया कि अक्टूबर में उत्तरी-पूर्वी मॉनसून की शुरुआत से ही तमिलनाडु और पुडुचेरी में करीब 43 प्रतिशत ज्यादा बारिश हुई है.

मौसम विभाग के उपनिदेशक एसॅ बालाचन्द्रन ने कहा कि अभी तक सबसे ज्यादा 45 सेंटीमीटर बारिश 1976 में हुई. उसके बाद 1985 में चेन्नई में दो अलग-अलग दिनों में 23 और 33 सेंटीमीटर बारिश हुई. छह साल पहले 2015 में शहर में 25 सेंटीमीटर बारिश हुई थी और फिलहाल शहर में लगभग इतनी ही बारिश हो चुकी है.

पीएम मोदी ने दिया सहायता का आश्वासन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य को केंद्र की सहायता का आश्वासन देते हुए ट्वीट किया, “तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन से बात की और राज्य के कुछ हिस्सों में अत्यधिक वर्षा से उत्पन्न स्थिति पर चर्चा की. राहत एवं बचाव कार्य में केंद्र की तरफ से हरसंभव मदद का आश्वासन दिया. मैं हर किसी की कुशलता एवं सुरक्षा की कामना करता हूं.”

सामान्य से 60 फीसदी अधिका बारिश
स्टालिन ने कहा कि कोयंबटूर, तिरुनेलवेली, तिरुवरूर, विल्लुपुरम, इरोड, करूर, कुड्डालोर, पुदुकोट्टई, पेरम्बलुर जैसे जिलों में सामान्य बारिश (मौसम के दौरान) 60 प्रतिशत से अधिक हो चुकी है. अक्टूबर में उत्तर-पूर्व मॉनसून की शुरुआत के बाद से, तमिलनाडु और पुडुचेरी क्षेत्र में करीब 43 प्रतिशत अधिक वर्षा हुई है.

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