दुनिया के लिए खतरा है  काबुल धमाके का मास्टरमाइंड ISIS-K, तालिबान है इसका दुश्मन

अफगानिस्तान के काबुल हवाई अड्डे के बाहर जमा भीड़ पर हुए हमले की जिम्मेदारी आईएसआईएस-के ने ली है। ये  आईएसकेपी और आईएसके के नाम से भी जाना जाता है। यह अफगानिस्तान में सक्रिय इस्लामिक स्टेट आंदोलन से आधिकारिक रूप से संबद्ध है। इसे इराक और सीरिया में सक्रिय इस्लामिक स्टेट के मूल नेतृत्व से मान्यता मिली हुई है।

कब हुई आईएसआईए-के की स्थापना 

आईएसआईए-के की स्थापना जनवरी 2015 में की गई। कुछ ही समय में इसने उत्तरी और उत्तर-पूर्वी अफगानिस्तान में अपनी पकड़ बना ली  इसके बाद अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान में घातक अभियान शुरू कियातीन साल में अल्पसंख्यक समूहों, सार्वजनिक स्थलों तथा सरकारी संपत्तियों को  बनाया निशाना धीरे-धीरे कमजोर पड़ता गया आईएसआईए-के  2020  में इसके 1,400  लड़ाकों ने अफगान सरकार के सामने किया आत्मसमर्पण

इसके उद्देश्य और रणनीति क्या हैं?

मध्य और दक्षिण एशिया में अपनी तथाकथित खिलाफत का विस्तार करना है।इसका सबसे प्रमुख जिहादी संगठन के रूप में खुद को मजबूत करना है।कुछ हद तक इससे पहले आए जिहादी समूहों की विरासत को बरकरार रखना है। समूह अनुभवी लड़ाकों के साथ-साथ शहरी क्षेत्रों के युवाओं से भी जिहाद में शामिल होने की अपील करता है। समूह के निशाने पर अफगानिस्तान की अल्पसंख्यक हजारा और सिख जैसी आबादी रहती है। साथ ही यह पत्रकारों, सहायता कर्मियों, सुरक्षा कर्मियों और सरकारी ढांचे को भी निशाना बनाता है।

कैसे हुई आईएसआईएस-के की स्थापना?
आईएसआईएस-के की स्थापना पाकिस्तानी तालिबान, अफगान तालिबान और इस्लामिक मूवमेंट ऑफ उज्बेकिस्तान के पूर्व सदस्यों ने की थी। समय के साथ समूह ने अन्य समूहों के आतंकवादियों को अपने साथ मिला लिया। इस समूह की एक सबसे बड़ी ताकत इसके लड़ाकों और कमांडरों का स्थानीय हालात से वाकिफ होना है। आईएसआईएस-के ने सबसे पहले नंगरहार प्रांत के दक्षिणी जिलों में अपनी पकड़ बनानी शुरू की थी। नंगरहार प्रांत पाकिस्तान से लगी अफगानिस्तान की उत्तर-पूर्वी सीमा पर है। एक समय अलकायदा का गढ़ रहा तोरा-बोरा इसी क्षेत्र में आता है। आईएसआईएस-के ने सीमा पर अपनी स्थिति का इस्तेमाल पाकिस्तान के कबायली इलाकों से आपूर्ति और आतंकवादियों को भर्ती करने में किया। साथ ही उसने अन्य स्थानीय समूहों से हाथ भी मिलाकर उनकी महारत का इस्तेमाल किया। इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि समूह को इराक और सीरिया में सक्रिय इस्लामिक स्टेट समूह से धन, सलाह और प्रशिक्षण प्राप्त हुआ है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि समूह को 10 करोड़ अमेरीकी डॉलर की मदद मिली।

आईएसआईएस-के का तालिबान से क्या संबंध है?
आईएसआईएस-के अफगान तालिबान को अपने रणनीतिक प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखता है। यह तालिबान को ‘दुष्ट राष्ट्रवादियों’ के रूप में देखता है, जिसका उद्देश्य केवल अफगानिस्तान की सीमाओं में सरकार का गठन करना है। यह इस्लामिक स्टेट आंदोलन के उद्देश्य के विपरीत है, जिसका लक्ष्य वैश्विक खिलाफत स्थापित करना है। आईएसआईएस-के अपनी स्थापना के बाद से, पूरे देश में तालिबान के ठिकानों को निशाना बनाते हुए अफगान तालिबान सदस्यों को अपने साथ मिलाने की कोशिश कर रहा है। आईएसआईएस-के के प्रयासों को कुछ सफलता मिली है, लेकिन तालिबान ने आईएसआईएस-के लड़ाकों और ठिकानों पर हमलों और अभियानों को आगे बढ़ाकर समूह की चुनौतियों का सामना करने में कामयाबी हासिल की है।

आईएसआईएस-के अफगानिस्तान और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए कितना बड़ा खतरा है?
आईएसआईए-के पहले की तुलना में कमजोर हो चुका है। फिलहाल उसका लक्ष्य अपने लड़ाकों की फौज को फिर से खड़ा करना है। साथ ही उसने बड़े हमले करने का संकेत दिया है। ऐसा करने से उसे यह सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी कि संगठन को अफगानिस्तान-पाकिस्तान में अप्रांसगिक नहीं माना जाए।  अफगानिस्तान में आईएसआईएस-के ने खुद को कहीं अधिक बड़ा खतरा साबित कर दिया है। अफगान अल्पसंख्यकों और असैन्य संस्थाओं के खिलाफ हमलों के अलावा, समूह ने अंतरराष्ट्रीय सहायता कार्यकर्ताओं, बारूदी सुरंग हटाने के प्रयासों को निशाना बनाया है।​​​ यहां तक कि जनवरी 2021 में उसने काबुल में शीर्ष अमेरिकी दूत की हत्या करने की भी कोशिश की। अभी यह बताना जल्दबाजी होगी कि अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी से आईएसआईएस-के को क्या फायदा होगा, लेकिन काबुल हवाई अड्डे पर समूह द्वारा किया गया हमला खतरे को दर्शाता है।

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