“पति और ससुर से माफी मांगों, अखबार में छापो”, सुप्रीम कोर्ट का IPS पत्नी को आदेश..

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक अभूतपूर्व फैसले में भारतीय पुलिस सेवा (IPS) की महिला अधिकारी को अपने पति और ससुर से माफी मांगने का निर्देश दिया है। ये वही पति और ससुर हैं जो वर्तमान में महिला अधिकारी की शिकायत पर जेल में हैं। अदालत ने स्पष्ट किया कि अधिकारी अपने पद और पावर का दुरुपयोग नहीं करेंगी और उनका सार्वजनिक माफीनामा देश के प्रतिष्ठित हिंदी और अंग्रेजी अखबारों में प्रकाशित किया जाएगा।
कोर्ट ने कहा- “माफीनामा अखबारों में प्रकाशित हो”
मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने इस मामले में सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि महिला अधिकारी को अपने पति और उनके परिवार से बिना शर्त माफी मांगनी होगी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह आईपीएस अधिकारी अपने पद का उपयोग पति या उसके परिवार के खिलाफ नहीं करेंगी। यह माफीनामा प्रतिष्ठित राष्ट्रीय अंग्रेजी और हिंदी डेली अखबारों में प्रकाशित किया जाएगा ताकि पारदर्शिता बनी रहे।
बेटी की कस्टडी मां को, लेकिन पिता को भी मिलेगा मिलने का अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने दंपति की बेटी की कस्टडी मां के पास रहने का आदेश दिया है, लेकिन पिता और उनके परिवार को पहले तीन महीनों तक निगरानी में बच्ची से मिलने की अनुमति दी गई है। इसके बाद, हर महीने के पहले रविवार को सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक मुलाकात की इजाजत दी गई है, जो स्कूल के नियमों और सुविधा के अनुसार तय होगी।
शादी खत्म, सभी दीवानी और आपराधिक केस हुए रद्द
अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल करते हुए 2015 में हुई शादी को कानूनी रूप से समाप्त करने का आदेश दिया। कोर्ट ने दोनों पक्षों के बीच चल रही सभी दीवानी और आपराधिक मुकदमों को रद्द कर दिया, ताकि भविष्य में कोई कानूनी विवाद न बचे और दोनों पक्ष शांतिपूर्वक जीवन जी सकें।
अनुच्छेद 142 का प्रयोग: पूर्ण न्याय के लिए असाधारण शक्ति
संविधान का अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को किसी भी मामले में पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक आदेश जारी करने की शक्ति देता है। इस शक्ति के तहत कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया कि न केवल पति-पत्नी के बीच के केस खत्म हों, बल्कि वो सभी केस भी समाप्त कर दिए जाएं जो तीसरे पक्ष द्वारा दायर किए गए थे और जिनकी जानकारी दोनों पक्षों को नहीं थी।
महिला ने छोड़ा गुजारा भत्ता, हाईकोर्ट का आदेश रद्द
इस मामले में महिला अधिकारी ने अपने पति से किसी प्रकार के गुजारा भत्ते की मांग नहीं करने का फैसला लिया। नतीजतन, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस आदेश को भी रद्द कर दिया जिसमें पति को हर महीने 1.5 लाख रुपये पत्नी को देने का निर्देश दिया गया था।
लंबे समय से अलग रह रहे थे दोनों, 2018 से बंद थी साथ की राह
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, महिला अधिकारी 2018 से अपने पति से अलग रह रही थीं। उनके बीच लंबे समय से कई कानूनी लड़ाइयाँ चल रही थीं। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दोनों पक्षों को भविष्य में मुकदमेबाज़ी से बचने और शांति से रहने का मौका दिया है।
अदालत ने दिखाई संवेदनशीलता, लेकिन पद का दुरुपयोग नहीं बर्दाश्त
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने स्पष्ट कर दिया कि चाहे कोई अधिकारी कितना भी उच्च पद पर क्यों न हो, कानून सबके लिए बराबर है। अदालत ने जहां एक ओर बेटी के हित को प्राथमिकता दी, वहीं पद और अधिकार का दुरुपयोग करने पर महिला अधिकारी को सार्वजनिक रूप से माफी मांगने का आदेश देकर एक मिसाल कायम की है।