छलका दर्द, काश कि मैं अपनी बच्ची को लेकर कहीं भाग जाती: शबाना रईस आलम

भारत के गुजरात की रहने वाली शबाना एफ़जीएम से पीड़ित महिलाओं में एक हैं। इनसे बेहतर कोई नहीं जानता है कि महिला का खतना प्रथा का कितना गहरा सदमा महिलाओं को पहुंचता है।

शबाना कहती हैं कि महिलाओं का खतना के नाम पर उनके साथ जो अत्याचार हुआ उससे वो आज तक उबर नहीं पाई हैं। वो कहती हैं कि ये प्रथा लड़कियों के साथ बलात्कार जैसा ही है। शबाना का कहना है कि एफ़जीएम के कारण महिलाओं को ताजिंदगी एक नाकाबिलेबरदाश्त दर्द को झेलना पड़ता है। अकेली शबाना ही नहीं हैं जिनको इस दर्द से गुजरना पड़ रहा हैं। ऐसी लाखों महिलाएं हैं जो एफजीएम की पीड़ा को झेल रही हैं। आंकड़े कहते हैं कि अभी तक 20 करोड़ से अधिक लड़कियों का खतना हो चुका है और 40 लाख लड़कियों पर इसका खतरा मंडरा रहा है।

क्या होता है महिलाओं का खतना ?

महिलाओं का खतना एक बहुत ही गंभीर विषय है जिसे लेकर आए दिन चर्चा होती रहती है। वो महिलाएं जो इससे होकर गुजरी हैं उन्हें इसका दर्द जिंदगी भर झेलना पड़ता है। ये प्रथा क्रूर ही नहीं आसामाजिक भी है, लेकिन गम की बात ये है कि इस प्रथा के विरोध में ज्यादातर आवाज नहीं उठती है। महिलाओं के जननांगों को विकृत करने की परंपरा को फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन या एफजीएम कहा जाता है। इसे ही आम बोलचाल की भाषा में महिलाओं का खतना कहा जाता है। इस प्रक्रिया में महिला के बाहरी गुप्तांग को काट दिया दिया जाता है।

भारत में भी होता है एफजीएम:

भारत में यह प्रथा बोहरा समुदाय में ही प्रचलित था। लेकिन अब ये सुन्नी समुदाय और इसाई समुदाय में भी प्रचलित हो गया है। देश में बोहरा समुदाय के करीब 10 लाख लोग रहते हैं। हालांकि इस समुदाय की कितनी महिलाओं और बच्चियों का खतना हुआ है, इस बारे में कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है। पर 2018 में किये गए एक अध्ययन के अनुसार इस समुदाय की 7 साल और उससे अधिक आयु की करीब 75 फीसदी बच्चियों का खतना हो चुका है। भारत में महाराष्ठ्र और गुजरात में भी ये प्रथा प्रचलित है।

गुजरात की रहने वाली शबाना कहती हैं कि जब लड़की 7 साल की हो जाती है तो उसका खतना कर दिया जाता है। उन्होंने बताया कि जब उनको बेटी हुई तो उन्होंने सोचा था कि जिस दर्द से वो गुजर रहीं हैं उस दर्द से अपनी बेटी को बचाएंगी। लेकिन उनके घर वालों ने उनकी एक न सुनी और उनकी बेटी का भी खतना करा दिया गया। वो कहती है कि उसके भाई समझदार हैं उसके समझाने के बाद उसके भाई ने अपनी को इस पीड़ा से बचा लिया। शबाना कहती हैं कि कभी कभी मुझे खयाल आता है कि मैं अपनी बेटी को लेकर कहीं भाग जाती तो शायद मेरी बेटी इस पीड़ा को झेलने से बच जाती।

20 करोड़ महिलाएं हैं एफजीएम से पीड़ित–
युनिसेफ के आंकड़ों के अनुसार साल 2020 में 20 करोड़ महिलाओं को इस पीड़ा से गुजरना पड़ा। ये डाटा 31 देशों से जमा किया गया है, जिनमें से 27 देश अफ्रिका के हैं। इसके साथ ही इराक, यमन, मॉलद्वीप और इंडोनेशिया भी इसमें शामिल हैं। बताया जाता हैं दुनिया के 92 देशों में ये प्रथा जारी है। इतना ही नहीं ये प्रथा अमेरिका, सिंगापुर, ईरान और श्रीलंका जैसे देशों में भी जारी है। एक रिपोर्ट के अनुसार फिलहाल 5 लाख से अधिक महिलाओं या लड़कियों पर एफजीएम का खतरा मंडरा रहा है। बताया जाता है कि ऑस्ट्रेलिया में 50 हजार से अधिक, यूरोप में 60 हजार से अधिक और ब्रिटेन में 1.37 करोड़ से अधिक महिलाओं को एफजीएम से गुजरना पड़ा है। जबकि 70 हजार अधिक लड़कियों पर इसका खतरा मंडरा रहा है।

क्या है इस कुप्रथा का कारण:

अब सवाल ये उठता है कि अगर ये प्रथा इतनी दर्दनाक और भयावह है तो इसका पालन क्यों किया जाता है। दरअसल, ये अंधविश्वास का नतीजा है, जो सालों पुराना है। शिशु अवस्था से 15 साल तक की बच्चियों का खतना सिर्फ इसलिए होता है जिससे उनकी यौन इच्छाएं पूरी तरह दब जाएं और शादी से पहले वो ऐसी किसी भी भावना को महसूस न करें जिससे वो ‘अशुद्ध’ हो जाएं। यही वजह है कि प्राइवेट पार्ट के बाहरी हिस्सों में शामिल क्लिटोरिस को भी काट दिया जाता है जो महिलाओं को सबसे ज्यादा उत्तेजित करने वाला अंग माना जाता है। मुंबई के सामाजिक कार्यकर्ता फिरोज मीठी बोरवाला कहते हैं कि महिलाओं का खतना महिलाओं पर एक क्रूर अत्याचार है। जिसे सरकारी पहल से बंद किया जाना चाहिए। इसके खिलाफ कानून बननी चाहिए। वो कहते हैं कि जागरूक लोगों के घरों में भी ये हो रहा है और लोग खामोश हैं। सामाजिक डर के कारण लोग अपनी खामोशी को तोड़ना नहीं चाहते हैं।

महिलाओं को होती है कई तरह की परेशानी—
एफजीएम सिर्फ संस्कृति से जुड़ा मुद्दा नहीं है। यह नारी असमानता और स्वास्थ्य से भी जुड़ा मुद्दा है। इसके कारण महिलाओं को रक्तस्राव, बुखार, संक्रमण और मानसिक आघात जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जबकि कुछ मामलों में तो उनकी मृत्यु भी हो जाती है। माना जाता है, इसके चलते महिलाओं में अनियमित माहवारी, जीवन भर मूत्राशय की समस्याएं और प्रजनन सम्बन्धी दिक्कतें हो सकती हैं।

सामाजिक दबाव के कारण होता है एफजीएम:

भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने इसे महिलाओं के लैंगिक आधार पर भेदभाव कहा है। अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में इस पर प्रथा पर कानूनन रोक लगा दी गयी है। इसके बावजूद भी यह प्रथा जारी है। जिसके पीछे की सबसे बड़ी वजह सामाजिक दबाव है। जहां पर यह प्रथा अपनाई जाती है, वहां इस विषय पर बात करना वर्जित माना जाता है। वहीं, दूसरी ओर जहां यह क़ानूनन अपराध है वहां परिवार या समुदाय के सदस्यों को सज़ा के डर से यह मामले बाहर नहीं आते हैं। दुनिया भर में यह कुरुति आज भी जारी है इसके पीछे पारिवारिक, सामाजिक दबाव और लचर कानून व्यवस्था जिम्मेदार है। इसमें बदलाव लाना जरुरी है। परम्पराओं के नाम पर किसी का शोषण करना ने केवल महिलाओं पर की जारी हिंसा और उत्पीड़न है।

बल्कि यह सम्पूर्ण मानव जाती के खिलाफ भी जघन्य अपराध है। और इसे करने की इजाजत दुनिया के किसी देश किसी समाज के किसी व्यक्ति को नहीं मिलनी चाहिए।

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