हिंदुओं पर हमले पर बांग्लादेशी मीडिया:लगता है हिंदुओं के लिए बांग्लादेश में अब जगह नहीं,

सरकार और विपक्ष खेल रहे हैं धार्मिक कार्ड

बांग्लादेश हिंसा की आग में जल रहा है, निशाने पर वहां की अल्पसंख्यक हिंदू आबादी है। 13 से 17 अक्टूबर के बीच हुई हिंसा में कई दुर्गा पंडाल तोड़े गए। हिंदुओं के घर जलाए गए, उन पर हमले किए गए। इसके बाद अब वहां की प्रधानमंत्री शेख हसीना सवालों के घेरे में हैं। अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर उनकी आलोचना हो रही है। इसको लेकर बांग्लादेश की मीडिया की क्या राय है, वह हिंसा को लेकर क्या लिख रही है? आइए एक-एक करके 4 बड़े अखबारों की टिप्पणी को पढ़ते हैं…

कुरान के अपमान की बात मनगढ़ंत लगती है, ऐसा लगता है हिंसा सुनियोजित थी- द डेली स्टार

बांग्लादेश के चर्चित अखबार द डेली स्टार ने लिखा है कि हिंदू दुर्गा को ऐसी विदाई नहीं देना चाहते थे। जो कुछ भी हिंसा हुई है वह सुनियोजित लगती है। प्रशासन हिंसा को काबू रखने में विफल रहा है। पहले भी इस तरह की घटनाएं यहां हुई हैं। हिंदुओं पर हमले हुए हैं और अब भी जारी हैं। हर बार विपक्ष सरकार पर आरोप लगाता है और सरकार विपक्ष को जिम्मेदार ठहराती है, लेकिन सच यही है कि दोनों धार्मिक कार्ड खेल रहे हैं। यहां की बहुसंख्यक आबादी को खुश रखने के लिए तुष्टिकरण की नीति अपनाई जा रही है।

अखबार ने आगे लिखा है- यह सरकार खुद को माइनॉरिटी फ्रेंडली के रूप में पेश करती है, लेकिन 2001 चुनाव के बाद हुई हिंसा, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए, महिलाओं के साथ रेप और गैंग रेप हुए, घरों में तोड़-फोड़ और लूट-पाट हुई, उन पीड़ित परिवारों को अभी भी न्याय नहीं मिला है। आखिर सरकार ऐसे लोगों के खिलाफ एक्शन क्यों नहीं ले रही है? क्या रिलीजियस आइडेंटिटी के सामने पार्टी की कोई आइडेंटिटी नहीं बची है?

हिंसा के दौरान बांग्लादेश के नोआखाली जिले में स्थित इस्कॉन टेंपल को निशाना बनाया गया, आगजनी की गई।

अगर पहले की हिंसा में शामिल लोगों के खिलाफ कड़ा एक्शन लिया गया होता तो शायद इस बार हिंसा नहीं होती। हर बार दिखावे के लिए कुछ गिरफ्तारियां होती हैं और बाद में हिंसा भड़काने वालों को छोड़ दिया जाता है। यहां तक कि इस साल मार्च में हुए दंगे में जो अपराधी पकड़े गए थे, वे बेल पर जेल से बाहर हैं। इस अखबार ने कुरान के अपमान के दावे को भी मनगढ़ंत करार दिया है।

हमने हिंदू कम्युनिटी को सुरक्षा का भरोसा दिया था, लेकिन अफसोस है , ऐसा नहीं हो पाया- ढाका ट्रिब्यून

ढाका ट्रिब्यून इस हिंसा को लेकर लिखता है कि हमने पिछले हफ्ते दुर्गा पूजा की सुरक्षा की चाक चौबंद को लेकर एक एडिटोरियल लिखा था। हमने उम्मीद जताई थी कि इस बार देश की हिंदू आबादी सुरक्षित महसूस करेगी और खुशी-खुशी अपना त्योहार सेलिब्रेट करेगी। हम अब फिर से एडिटोरियल लिख रहे हैं, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि इस बार हमें दुख व्यक्त करना पड़ रहा है। देश में शरारती तत्वों ने हिंदुओं पर हमला करके जघन्य काम किया है। जिस तरह से नफरत के चलते माइनॉरिटी कम्युनिटी को टारगेट किया गया, उससे हमारा देश कमजोर साबित हुआ है।

अखबार लिखता है कि हम विकास कर रहे हैं, डेवलपिंग कंट्रीज के लिए एक मॉडल भी हो सकते हैं, लेकिन जब तक देश के प्रत्येक व्यक्ति को उसकी पहचान और बैकग्राउंड से परे सुरक्षा नहीं मिलेगी, सही मायने में विकास नहीं कहलाएगा। भले ही हमारी बुनियाद सेक्युलर है, लेकिन अभी के हालात देखकर तो यही लगता है कि अब बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के लिए कोई जगह नहीं है।

13 से 17 अक्टूबर तक बांग्लादेश में भड़की हिंसा में हिंदू समुदाय को निशाना बनाया गया। दुर्गा पूजा के पंडाल और मूर्तियां तोड़ दी गईं।

सालों से इस तरह की घटनाएं होती आ रही हैं। कारण जो भी रहे हों, लेकिन हर बार देश की माइनॉरिटी कम्युनिटी को भुगतना पड़ता है। हमले में शामिल लोगों की पहचान करना और उन्हें गिरफ्तार करना ही काफी नहीं है। सरकार को इसको लेकर सख्त कदम उठाने होंगे।

सांप्रदायिक सद्भाव के नाम पर सरकार को कोहराम नहीं मचाना चाहिए- न्यू एज

बांग्लादेश के एक प्रमुख अखबार न्यू एज ने सरकार के एक्शन को लेकर सवाल उठाया है। अखबार ने लिखा है कि इस हिंसा के बाद जिस तरह से लोगों की गिरफ्तारियां हो रही हैं, लोगों के खिलाफ मुकदमे दर्ज किया जा रहे हैं, उससे बहुत कुछ हाथ नहीं लगने वाला है। पहले भी इस तरह के एक्शन लिए गए हैं, लेकिन बमुश्किल ही कुछ कारगर परिणाम निकला है। इस तरह के एक्शन से लोगों के बीच नफरत बढ़ सकती है। अखबार ने लिखा है कि जिन निर्दोष लोगों की गिरफ्तारियां हुई हैं, वे पुलिस प्रताड़ना का शिकार हो सकते हैं। इससे उनके मन में हिंदू समुदाय के प्रति नफरत का भाव पैदा हो सकता है।

सेव कम्युनल हार्मनी- द डेली ऑब्जर्वर

इस हिंसा में हिंदुओं के कई घरों में तोड़-फोड़ और आगजनी हुई है। कुछ लोगों की इस हिंसा में जान भी गई है।

अंग्रेजी अखबार द डेली ऑब्जर्वर ने सेव कम्युनल हार्मनी नाम से इस हिंसा को लेकर एडिटोरियल लिखा है। अखबार लिखता है कि सांप्रदायिक तनाव एक वैश्विक मुद्दा है। यह लंबे वक्त से हमें प्रभावित करता रहा है। माइनॉरिटी कम्युनिटी निशाने पर रही है। अभी तो हालात ऐसे हैं जैसे कि माइनॉरिटी कम्युनिटी का जन्म ही समाज में असमानता झेलने के लिए हुआ है। धार्मिक और नस्लीय संघर्ष दुनिया में तेजी से फैल रहा है। कमजोर देशों में इसे आसानी से देखा जा सकता है। कई बार हाशिए पर मौजूद समुदायों को इंसाफ नहीं मिल पाता है।

साल 1947 में भारत का बंटवारा हुआ तो हिंदू और सिख एक तरफ हो गए और मुसलमान दूसरी तरफ। यहीं से सांप्रदायिक बैर की शुरुआत हुई। हालांकि, जब दुनिया के नक्शे पर बांग्लादेश आया तो उसकी बुनियाद सांप्रदायिक सद्भाव पर रखी गई। पाकिस्तान से मुक्ति के लिए हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सबने मिलकर लड़ाई लड़ी, लेकिन इन दिनों कुछ ताकतें सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ रही हैं, लोगों को भड़का रही हैं और हिंसा पैदा कर रही हैं। हालांकि, प्रधानमंत्री ने ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की बात कही है। उम्मीद है जल्द से जल्द इसमें शामिल लोग गिरफ्त में होंगे।

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