हर माह 20 लाख लीटर दूध और 25 लाख अंडों की सप्लाई से रोजगार, वेतन का 15% खर्च कर रहे सैनिक,

सेना बढ़ी तो लद्दाख की अर्थव्यवस्था में उछाल: 17 माह में 3000 करोड़ खर्च

लद्दाख की ऊंचाइयों पर 17 महीने से चीन और भारत के बीच तनाव बना हुआ है, अब लगभग तय है कि इस बार भी भारतीय फौज को कठिन जाड़े के मौसम में पूर्वी लद्दाख में अपनी पोजिशन मजबूत रखनी होगी। – फाइल फोटो

चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की हिमाकत की वजह से लद्दाख की ऊंचाइयों पर 17 महीने से तनाव बना हुआ है। वार्ताओं के दौर बेनतीजा रह रहे हैं और अब यह लगभग तय है कि इस बार भी भारतीय फौज को कठिन जाड़े के मौसम में पूर्वी लद्दाख में अपनी पोजिशन मजबूत रखनी होगी। मगर इस तनाव का एक और पहलू भी है। सेना की लंबी तैनाती की वजह से लद्दाख की अर्थव्यवस्था में तेज उछाल आया है। सेना की तैनाती से जुड़ी गतिविधियों, निर्माण कार्यों और संसाधनों की आपूर्ति चेन में लगातार स्थानीय लोगों के जुड़ने से इस नए संघशासित प्रदेश में रोजगार का एक नया आयाम जुड़ गया है।

यही नहीं, यहां विकास कार्यों में भी तेजी आई है। स्थानीय प्रशासन से जुड़े लोग नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि सेना की तैनाती का शुरुआती दौर तनावपूर्ण था। जनता लगातार खौफ के साये में थी। जैसे-जैसे सैनिकों की संख्या बढ़ती गई यहां सुरक्षा का माहौल भी बनता गया। सैनिकों की तैनाती यहां सामान्य जीवन का हिस्सा हो गया है। अतिरिक्त सैनिकों का एकदम सीधा असर यहां से होने वाली संसाधनों की सोर्सिंग पर हुआ। सब्जी भले ही लद्दाख में न हो पाती हो, लेकिन बाकी जरूरी चीजें जैसे अंडे, मीट, दूध की आपूर्ति स्थानीय स्तर पर ही हुई।

एक अनुमान के अनुसार हर महीने करीब 25 लाख अंडों, 20 लाख लीटर दूध, 3 हजार किलो से अधिक मीट की आपूर्ति तो सीधे स्थानीय लोगों की मदद से ही होने लगी। लद्दाख का कोर सेक्टर भेड़-बकरी, याक पालन रहा है। एक लाख से अधिक भेड़-बकरियों और 10 हजार याक का पालन इस इलाके में होता रहा है। अब लोगों ने इस कारोबार को दोगुना कर दिया है।

एक अधिकारी के अनुसार हर सैनिक तैनाती के क्षेत्र में वेतन का 15-20% स्थानीय अर्थव्यवस्था को देता है। 17 महीने की तैनाती में जवान से जेसीओ स्तर तक के सैनिक लगभग 3000 करोड़ खर्च कर चुके हैं। लद्दाख हिल डेवलपमेंट कौंसिल में चुशुल से पार्षद कोनचोक स्टेनजिन कहते हैं कि सेना की बढ़ी तैनाती से इलाके में तेजी से विकास हुआ है। हालत यह है कि हम सेना की मांग को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। यहां इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास में लोगों को काफी रोजगार मिला है।

सड़कों का जाल 15 साल में बनता, सेना ने 15 माह में बनाया
पूर्वी लद्दाख का इलाका अधिक ऊंचाई और कठिन मौसम की वजह से विकास की मूलभूत चीजों से वंचित ही रहा है। उत्तरी कमान के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा, सेना के आने के बाद सड़कें, पुल, टनल बनते गए हैं। दूर-दराज के गांवों तक सड़कों का जो काम शायद 15 साल में पूरा होता, वह 15 महीने में हो गया। निर्माण कार्य में स्थानीय मजदूरों का इस्तेमाल किया गया। साजो-सामान लाने में पोनी पोर्टर्स का उपयोग हो रहा है।

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