मीराबाई चानू की एक किताब ने कैसे बदल दी जिंदगी? कभी जंगल से लकड़ियां बीनने को थीं मजबूर

मीराबाई चानू की एक किताब ने कैसे बदल दी जिंदगी? कभी जंगल से लकड़ियां बीनने को थीं मजबूर

भारतीय महिला वेटलिफ्टर मीराबाई चानू किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं. टोक्यो ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीतकर इतिहास रचने वाली मीराबाई चानू बर्मिंघम कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 (Commonwealth Games 2022) में गोल्ड जीतने के दावेदार के रूप में उतरी हैं. मीराबाई ने 2018 गोल्ड कोस्ट कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण पदक अपने नाम किया था. मीराबाई को यहां तक पहुंचने के लिए बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है.

मीराबाई चानू मणिपुर की राजधानी इंफाल के नोंगपोक गांव से आती हैं. मीराबाई का गांव उनकी अकादमी से लगभग 25 किलोमीटर दूर था, जहां उन्हें प्रैक्टिस के लिए जाना पड़ता था. ऐसे में वह रोज ट्रक ड्राइवर्स से लिफ्ट लेकर अपनी अकादमी पहुंचती थीं.27 वर्षीय मीराबाई चानू (Mirabai Chanu) बेहद गरीब परिवार से आती हैं. कभी वह अपने भाई बहनों के साथ जंगल में लकड़ियां बीनने जाती थीं मीराबाई छह भाई बहनों में सबसे छोटी हैं. वह अपने से चार साल बड़े भाई सैखोम सांतोम्बा मीतेई के साथ पास की पहाड़ी पर लकड़ी बीनने जाती थीं महज 12 साल की उम्र में मीराबाई अपने बड़े भाई से ज्यादा वजन उठाने लगी थीं. तब वह जलावन के लिए जंगल से लकड़ियों का गट्ठर घर लाया करती थीं. बचपन में वह तीरंदाज बनना चाहती थीं. मीराबाई जब कक्षा आठवीं में पढ़ती थीं तब किताब में वेटलिफ्टर कुंजारानी देवी के बारे में पढ़ीं. उसके बाद उन्होंने भारोत्तोलन में किस्मत आजमाने की ठानी.

उस समय किसको पता था कि एक दिन यह लड़की देश की बाकी लड़कियों के लिए प्रेरणास्त्रोत बन जाएगी. मीराबाई ने बचपन में जो लकड़ियां उठाने का अभ्यास किया वह भविष्य में उनके काम आया और आज वह देश ही नही बल्कि विदेश में भी अपना लोहा मनवा रही हैं.
मीराबाई बचपन से बेहद शांत स्वभाव की हैं. उन्होंने 2014 कॉमनवेल्थ गेम्स में सिल्वर मेडल अपने नाम किया था.मीराबाई वर्ल्ड चैंपियनशिप में पदक जीत चुकी हैं. उन्होंने साल 2017 में वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल अपने नाम किया था. मीराबाई को टोक्यो ओलंपिक में मेडल जीतने पर मणिपुर के सीएम बिरेन सिंह ने एक करोड़ रुपये से सम्मानित किया था

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