Holi 2022: हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल है देवा शरीफ मजार की अनूठी होली, देखें

बाराबंकी. होली (Holi 2022) रंगों भरा त्योहार है. इसमें तरह -तरह के रंग होते है. यह त्योहार हर जगह अपने अंदाज से मनाया जाता है. मथुरा, वृन्दावन और बरसाने की होली को देखने के लिए तो विदेशों से पर्यटक भी आते हैं. होली को लोग आपसी भाईचारे का त्योहार भी मानते हैं. इस दिन गले मिलकर एक दूसरे को बधाई देकर आपसी द्वेष को लोग खत्म कर देते हैं. होली को शहर हो या गांव हर जगह के लोग अपने खास अंदाज से मानते हैं. बरसाने की लट्ठमार होली तो पूरे देश में विख्यात है, मगर आज हम जिस अद्भु्त होली की बात कर रहे हैं. वह है बाराबंकी स्थित प्रसिद्ध सूफी संत हाजी वारिस अली शाह  की मजार पर खेली जाने वाली होली.

एक तरफ राजनेता धार्मिक उन्माद फैलाकर, लोगों में विद्वेष फैला कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं और पूरे देश को धर्म के नाम पर बांटा जा रहा है, तो वहीं दूसरी ओर समाज की कुछ शक्तियां ऐसी भी हैं जो इनके मंसूबों पर पानी फेर रही हैं. हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जनपद में हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक प्रसिद्द सूफी संत हाजी वारिस अली शाह की दरगाह पर खेली जाने वाली होली का जहां पर क्या जाति क्या धर्म सबकी सीमाएं टूटती नज़र आती है. यहां हिन्दू-मुस्लिम एक साथ होली खेलकर, एक-दूसरे के गले मिलकर होली की बधाई देते हैं.

दरगाह पर खेली जाने वाली होली की सबसे ख़ास बात

हाजी वारिस अली शाह की दरगाह पर खेली जाने वाली होली की सबसे ख़ास बात इसका संदेश है कि ‘जो रब है वही राम’. इसकी पूरी झलक इस होली में साफ़-साफ़ दिखाई देती है. देश भर से हिन्दू, मुसलमान और सिख यहां आकर एक साथ हाजी वारिस अली शाह की दरगाह पर होली खेलते हैं और एकता का संदेश देते हैं. रंग, गुलाल और फूलों से विभिन्न धर्मों द्वारा खेली जाने वाली होली देखने में ही अद्भुत नज़र आती है. सैंकड़ों सालों से चली आ रही यहां होली खेलने की परंपरा आज के विघटनकारी समाज के लिए आदर्श प्रस्तुत करती है.

हाजी वारिस अली शाह की मजार का निर्माण उनके हिन्दू मित्र राजा पंचम सिंह ने कराया था और इसके निर्माण काल से ही यह स्थान हिन्दू-मुस्लिम एकता का संदेश देता आ रहा है. यहां आने वाले जायरीनो में जितने मुस्लिम हैं, उससे कहीं ज्यादा हिन्दू जायरीन आते हैं. कहीं-कहीं तो हिन्दू भक्त इन्हें भगवन कृष्ण का अवतार भी मानते हैं और अपने घरों और वाहनों पर श्री कृष्ण वारिस सरकार का वाक्य भी अंकित कराते हैं.

कुछ भी हो मगर धर्मं की टूटती सीमाएं यहां की होली में देखना एक ताज़ा हवा के झोंके सामान है. इस अनूठी होली को दिल्ली राज्य से लगातार 30 वर्षों से खेलने आ रहे सरदार परमजीत सिंह ने बताया कि वह होली पर अपने घर में कैद हो जाया करते थे, मगर 30 साल पहले जब यहां होली खेलने आये तो यहां के बासन्ती रंग में रंग गए, जो शायद जीवन भर भी उतरने वाला नहीं है. वहीं मिर्जापुर से होली खेलने आई महिला ने बताया कि वारिस अली शाह के संदेश से इतना प्रभावित हुई कि वह अब हमेशा के लिए यहां होली खेलने आती हैं.

होली कमेटी के अध्यक्ष सहजादे आलम वारसी ने बताया कि यहां की होली पिछले 100 वर्षों से अधिक समय से खेली जा रही है. पहले यहां इतनी भीड़ नहीं होती थी और कस्बे के ही लोग यहां वारिस सरकार के कदमों में रंग गुलाल चढ़ाते थे और वह सबको अपना आशीर्वाद देते थे. समय के साथ यहां होली का स्वरूप बदल गया और बाहर से भी यहां लोग होली खेलने आने लगे. अब होली कमेटी के अध्यक्ष होने के नाते सभी से अपील करते हैं कि होली जरूर खेले और सुरक्षित रंगों के साथ खेले. वारिस सरकार का मोहब्बत का संदेश है और इसे पूरी दुनिया में फैलाएं. उनकी यही प्रार्थना है कि कयामत तक लोगों में प्रेम बना रहे.

Related Articles

Back to top button