आज का इतिहास धरती की पहली तश्वीर

55 साल पहले चांद के ऑर्बिट से ली गई धरती की पहली फोटो, इसके 9 दिन पहले ही चांद के ऑर्बिट में पहुंचा था दुनिया का पहला स्पेसक्राफ्ट

1960 के दशक के शुरुआती सालों में अमेरिका ने अपोलो मिशन लॉन्च किया था। इस मिशन का उद्देश्य चांद पर मानव को पहुंचाना था, लेकिन उस समय वैज्ञानिकों के पास चांद की सतह की डिटेल्ड फोटो नहीं थी। अपोलो मिशन के लिए चांद की सतह की फोटो जरूरी थी जिनको एनालाइज कर ये पता लगाया जा सके कि कहां स्पेसक्राफ्ट की लैंडिंग कराई जा सकती है।

नासा ने 10 अगस्त 1966 को ऑर्बिटर-1 लॉन्च किया था। इस स्पेसक्राफ्ट में एक मेन इंजन, 4 सोलर प्लेट और 68 किलो के कोडेक इमेजिंग सिस्टम को फिट किया गया था। इसका काम अलग-अलग एंगल से चांद की सतह की फोटो लेना था। चांद की ऑर्बिट में पहुंचने वाला ये दुनिया का पहला स्पेसक्राफ्ट भी था।

ऑर्बिटर-1 द्वारा भेजी गई ये फोटो चांद के ऑर्बिट से खींची गई धरती की पहली फोटो है।

स्पेसक्राफ्ट का लॉन्च सफल रहा और 14 अगस्त को स्पेसक्राफ्ट चांद की ऑर्बिट में पहुंच गया। 23 अगस्त 1966 को इस स्पेसक्राफ्ट ने धरती की भी एक फोटो भेजी। ये चांद की ऑर्बिट से ली गई धरती की पहली फोटो थी।

28 अगस्त तक स्पेसक्राफ्ट ने चांद की सतह की कुल 205 फोटो भेजी। 29 अक्टूबर को चांद की सतह से टकराकर ऑर्बिटर नष्ट हो गया।

1991: दुनिया की पहली पब्लिक वेबसाइट लॉन्च

आज इंटरनेट पर इतनी वेबसाइट हैं कि इनकी गिनती करना लगभग असंभव है, लेकिन आज से 3 दशक पहले तक स्थिति ऐसी नहीं थी। तब न सभी लोगों के पास इंटरनेट था न इतनी वेबसाइट थीं। इंटरनेट के इतिहास में आज का दिन बेहद खास है। आज ही के दिन 1991 में दुनिया की पहली पब्लिक वेबसाइट लॉन्च की गई थी। तबसे हर साल 23 अगस्त को ‘इंटरनॉट डे’ मनाया जाता है।

इस वेबसाइट को टिम बर्नर्स ली ने डिजाइन किया था। टिम CERN (यूरोपियन काउंसिल फॉर न्यूक्लियर रिसर्च) में सॉफ्टवेयर इंजीनियर थे। यहां काम करने के दौरान टिम ने देखा कि वैज्ञानिकों को आइडिया, डेटा और जानकारी शेयर करने में खासी परेशानी का सामना करना पड़ता है। अलग-अलग कम्प्यूटर पर डेटा रखा होता था जिसे दूसरी जगह से एक्सेस करने के लिए दिक्कतें आती थीं।

टिम बर्नर्स ली।

वैज्ञानिक एक-दूसरे से बात करने के लिए टेलीफोन का इस्तेमाल करते थे, लेकिन शीतयुद्ध के दौरान टेलीफोन भी टेप किए जाने लगे। इसलिए टेलीफोन पर बात करना भी सुरक्षित नहीं था। इस समस्या से निपटने के लिए टिम दुनियाभर के सभी कम्प्यूटर को एक नेटवर्क के जरिए कनेक्ट करने के आइडिया पर काम करने लगे।

1989 तक टिम बेसिक कोडिंग का काम पूरा कर चुके थे। उन्होंने HTML, HTTP और URI मॉडल बनाए जो आज भी किसी भी वेबसाइट के काम करने का बेसिक मॉडल है। टिम ने इसे वर्ल्ड वाइड वेब नाम दिया और इस पर एक वेब पेज बनाया। शुरुआत में इस वेब पेज को केवल CERN के वैज्ञानिक ही एक्सेस कर सकते थे।

23 अगस्त 1991 को इस वेब पेज पर आम लोगों को भी एक्सेस दिया गया। इस तरह ये दुनिया का पहला वेब पेज था जिसे आम लोग भी अपने कम्प्यूटर पर ओपन कर सकते थे।

इस वेबसाइट पर वर्ल्ड वाइड वेब की समरी दी गई है। 1993 में CERN ने घोषणा की कि सभी के लिए इंटरनेट सर्विस फ्री रहेगी। इसके बाद इसका इस्तेमाल तेजी से बढ़ने लगा। आज वर्ल्ड वाइड वेब पर 100 करोड़ से भी ज्यादा वेब पेज हैं।

1456: जर्मनी के जोहान्स गुटेनबर्ग ने बाइबिल की पहली प्रति छापी

प्रिंटिंग तकनीक की बात हो तो योहानेस गुटनबर्ग का नाम सबसे पहले दिमाग में आता है। 1439 में गुटनबर्ग ने मूवेबल टाइप प्रिंटिंग मशीन बनाई थी। इस मशीन से प्रिंटिंग इंडस्ट्री में रिवॉल्यूशन आ गया था। यूरोप को अपनी प्रिंटिंग की नई तकनीक से अवगत कराने वाले गुटनबर्ग पहले शख्स थे।

इस मशीन की खास बात ये थी कि इससे छपाई में लकड़ी की जगह मेटल ब्लॉक का इस्तेमाल होता था। इस वजह से किसी भी तरह के पेपर पर छपाई करना आसान हो गया था और इसकी स्पीड भी ज्यादा थी। ये प्रिंटिंग मशीन रोजाना 1 हजार से ज्यादा पेज की छपाई कर सकती थी। इससे पहले की मशीनें दिनभर में 50-60 पेज ही छाप सकती थीं।

न्यूयॉर्क की पब्लिक लाइब्रेरी में मौजूद गुटनबर्ग बाइबिल।

गुटनबर्ग ने इस मशीन से बाइबिल को छापना शुरू किया। आज ही के दिन 1456 में बाइबिल की पहली प्रति छपकर तैयार हुई। इसे गुटनबर्ग बाइबिल कहा जाता है। आज भी दुनियाभर में गुटनबर्ग की छापी गई 21 बाइबिल मौजूद हैं।

23 अगस्त के दिन को इतिहास में और किन-किन महत्वपूर्ण घटनाओं की वजह से याद किया जाता है…

2004: लोकसभा में मनरेगा बिल पारित हुआ।

1962: टेलस्टार सैटेलाइट से यूरोप और अमेरिका के बीच पहला लाइव टीवी प्रोग्राम ब्रॉडकास्ट किया गया।

1933: महात्मा गांधी को जेल से रिहा किया गया।

1990: अर्मेनिया ने सोवियत संघ से आजादी की घोषणा की।

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