मेडिकल शिक्षा में LGBT समुदाय के साथ अपमान पर हाईकोर्ट सख्‍त, कहा- सुधार की जरूरत

चेन्‍नई. मद्रास हाईकोर्ट (Madras High Court) ने मंगलवार को लेस्बियन, गे, बाइसेक्‍सुअल, ट्रांसजेंडर और एलजीबीटीक्‍यू समुदाय (LGBT) से संबंधित व्यक्तियों की गैर-मानक लिंग और यौन पहचान को कथित तौर पर ठीक करने के लिए मेडिकल प्रोफेशनल्‍स द्वारा की जाने वाली कन्‍वर्जन थैरेपी पर चिंता जताई. साथ ही नेशनल मेडिकल कमीशन और इंडियन साइकियाट्रिक सोसाइटी को नोटिस जारी किए. इसके तहत दोनों से अगली सुनवाई में यह बताने को कहा गया है कि कैसे वो इसे होने से रोक सकने में मदद कर सकती हैं.

हाईकोर्ट ने पुलिस को अपने नियमों में संशोधन करने का भी निर्देश दिया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि एलजीबीटीक्यू व्यक्तियों के साथ काम करने वाले गैर-सरकारी संगठनों के कार्यकर्ता और अन्य सदस्य भी पुलिस उत्पीड़न से सुरक्षित रहें.

जस्टिस एन आनंद वेंकटेश ने मार्च में पुलिस और परिवारों द्वारा उत्पीड़न से सुरक्षा की मांग करने वाले एक समान-लिंग वाले जोड़े द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए आदेश पारित किया था. यह बुधवार को सामने आया. एक अभूतपूर्व कदम में जस्टिस ने 7 जून को आदेश पारित करने से पहले एलजीबीटी मुद्दों पर सुझाव मांगा था. जस्टिस वेंकटेश ने एक ट्रांसवुमन डॉ. त्रिनेत्र हलदर गुम्माराजू द्वारा दायर एक रिपोर्ट का हवाला दिया और कहा कि ‘क्यूरफोबिया’ (एलजीबीटी समुदाय पर पूर्वाग्रही और अपमानजनक व्यवहार) मेडिकल शिक्षा में बड़े पैमाने पर था.

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