हिंदी कविता के शिखर पुरुष थे मधुशाला के रचयिता हरिवंश राय बच्चन

वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने हों बड़े,
एक पत्र छाँह भी,
माँग मत, माँग मत, माँग मत,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।

हरिवंश राय बच्चन हिंदी साहित्य(छायावाद) के उन किवंदन्तियो में से एक हैं, जिनकी कवितायेँ सदियों तक लोगों को प्रेरणा दे सकती हैं। उनका जन्म इलाहाबाद के बाबूपट्टी नामक गाँव में हुआ था। उनका असली नाम हरिवंश राय श्रीवास्तव था। हालाँकि बचपन में उन्हें बच्चन नाम से पुकारा जाता था जिसे बाद में उन्होंने अपने नाम में जोड़ लिया। 18 जनवरी 2003 को 95 वर्षीय हरिवंश राय बच्चन का निधन हो गया था। अपने जीवन में हरिवंश राय ने कई ऐसी कवितायेँ, कहानिया, जीवनियाँ और लेख लिखे जिन्होंने उन्हें हिंदी साहित्य में हमेशा के लिए अमर बना दिया। उनमे से कुछ हैं:

मधुशाला
खादी के फूल
मधुबाला
अग्निपथ
पगध्वनि
आत्मपरिचय
जो बीत गयी सो बात गयी
जनगीता

हरिवंश राय बच्चन की कविताओं के कुछ वाक्य आज भी टूटी हिम्मत के समय में लोगों को प्रेरणा देने का काम करते हैं। उनकी कवितायेँ लोगों में उम्मीद और हिम्मत जगाती हैं। वहीँ, उनकी कुछ कवितायेँ उन मुद्दों पर बात करती हैं, जिनपर कोई भी लिखना ख़ास पसंद नहीं करता। आइये पढ़ते हैं कुछ ऐसी कवितायेँ

मिट्टी का तन, मस्ती का मन, क्षण भर जीवन, मेरा परिचय

भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला,
कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला,
कभी न कण-भर खाली होगा लाख पिएँ, दो लाख पिएँ!
पाठकगण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।।४।

मधुर भावनाओं की सुमधुर नित्य बनाता हूँ हाला,
भरता हूँ इस मधु से अपने अंतर का प्यासा प्याला,
उठा कल्पना के हाथों से स्वयं उसे पी जाता हूँ,
अपने ही में हूँ मैं साकी, पीनेवाला, मधुशाला।।५।
-मधुशाला

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कोशिश करने वालों की हार नहीं होती
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

असफलता एक चुनौती है, स्वीकार करो
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम
संघर्ष का मैदान छोड़ मत भागो तुम
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

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मैं दीवानों का एक वेश लिए फिरता हूँ,
मैं मादकता नि:शेष लिए फिरता हूँ;
जिसको सुनकर जग झूम, झुके, लहराए,
मैं मस्‍ती का संदेश लिए फिरता हूँ!

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जगत-घट को विष से कर पूर्ण
किया जिन हाथों ने तैयार,
लगाया उसके मुख पर, नारि,
तुम्‍हारे अधरों का मधु सार,

नहीं तो देता कब का देता तोड़
पुरुष-विष-घट यह ठोकर मार,
इसी मधु को लेने को स्‍वाद
हलाहल पी जाता संसार!

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मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ,
फिर भी जीवन में प्‍यार लिए फिरता हूँ;
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर
मैं सासों के दो तार लिए फिरता हूँ!

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