नवरात्रि में उत्तर-पूर्व दिशा में ही क्यों की जाती है घटस्थापना, जानिए मान्यता

मां दुर्गा के भक्तों को नवरात्रि का बेसब्री से इंतजार रहता है। साल भर में नवरात्रि चार बार मनाते हैं। चैत्र और शारदीय नवरात्रि के अलावा दो गुप्त नवरात्रि भी होती हैं। जिन्हें माघ और आषाढ़ नवरात्रि भी कहते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, शारदीय नवरात्रि का पावन पर्व 07 अक्टूबर, गुरुवार से प्रारंभ हो गया है, जो कि 14 अक्टूबर को समाप्त होगा। नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की नौ दिन पूजा की जाती है। 

कब की जाती है कलश स्थापना-

नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना या कलश स्थापना का विशेष महत्व होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, नवरात्रि के दौरान कलश स्थापना शुभ फलकारी माना गया है। नवरात्रि के दौरान मां शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है।

क्यों करते हैं कलश स्थापना-

पूजा स्थान पर कलश की स्थापना करने से पहले उस जगह को गंगा जल से शुद्ध किया जाता है। कलश को पांच तरह के पत्तों से सजाया जाता है और उसमें हल्दी की गांठ, सुपारी, दूर्वा, आदि रखी जाती है। कलश को स्थापित करने के लिए उसके नीचे बालू की वेदी बनाई जाती है। जिसमें जौ बोये जाते हैं। जौ बोने की विधि धन-धान्य देने वाली देवी अन्नपूर्णा को खुश करने के लिए की जाती है। मां दुर्गा की फोटो या मूर्ति को पूजा स्थल के बीचों-बीच स्थापित करते है। जिसके बाद मां दुर्गा को श्रृंगार, रोली ,चावल, सिंदूर, माला, फूल, चुनरी, साड़ी, आभूषण अर्पित करते हैं। कलश में अखंड दीप जलाया जाता है जिसे व्रत के आखिरी दिन तक जलाया जाना चाहिए। 

उत्तर-पूर्व दिशा में कलश स्थापना-

वास्तुशास्त्र के अनुसार घर के ईशान कोण (पूर्व व उत्तर के बीच का स्थान) को धार्मिक क्रियाओं और पूजा करने के लिए श्रेष्ठ माना गया है अतः ईशान कोण घट स्थापना के लिए श्रेष्ठ दिशा है इसके अलावा पूर्व तथा उत्तर दिशा भी घट स्थापना के लिए शुभ हैं।

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