“जाट सबसे बड़ा क्षत्रिय..”, क्या है हनुमान बेनीवाल की रणनीति ? सेल्फ गोल या हाई-रिस्क रिवॉर्ड वाली पॉलिटिक्स ?

राजस्थान की राजनीति में जातीय समीकरणों को लेकर एक बार फिर से विवाद गहराता जा रहा है। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (RLP) के प्रमुख और नागौर से सांसद हनुमान बेनीवाल के हालिया बयानों ने जाट और राजपूत समुदायों के बीच तनाव को बढ़ा दिया है। उन्होंने जाटों को ‘सबसे बड़ा क्षत्रिय’ बताते हुए यादव, गुर्जर, पटेल, पाटिल और मराठा समुदायों को भी क्षत्रिय वर्ग में शामिल किया, जबकि राजपूतों को अंतिम स्थान पर रखा। इस बयान के बाद राजपूत समाज में आक्रोश फैल गया है और करणी सेना सहित कई संगठनों ने विरोध दर्ज कराया है।
हनुमान बेनीवाल का विवादास्पद बयान
दरअसल, एक सभा में हनुमान बेनीवाल ने कहा, “हिंदुस्तान में जाट सबसे बड़ा क्षत्रिय है, उसके बाद यादव, फिर गुर्जर हैं। इसके बाद पटेल, पाटिल और मराठे आते हैं, फिर तुम्हारा (राजपूतों का) नंबर आता है।” उन्होंने यह भी कहा कि “जो लड़ा है वो क्षत्रिय है, क्षत्रिय कोई शब्द नहीं, वर्ण है।” उनका यह बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और राजपूत समाज में तीव्र आक्रोश देखने को मिला।
राजपूत समाज की प्रतिक्रिया
राजपूत समाज के नेताओं और संगठनों ने बेनीवाल के बयान को न केवल एक जाति पर हमला, बल्कि संपूर्ण वीर जातियों का अपमान बताया। मारवाड़ राजपूत सभा भवन के सचिव केवी सिंह चांदरख ने इसे बेनीवाल की “राजनीतिक हताशा” का परिणाम बताया और चेतावनी दी कि सर्व समाज की बैठक बुलाकर आगे की रणनीति तय की जाएगी।
राजनीतिक विश्लेषण
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बेनीवाल का यह बयान 2028 के विधानसभा चुनावों के लिए एक जातीय समीकरण गढ़ने की कोशिश का हिस्सा हो सकता है। जाट, यादव, गुर्जर, पटेल, पाटिल और मराठा—ये सभी सामाजिक रूप से प्रभावशाली जातियां हैं और विभिन्न क्षेत्रों में निर्णायक वोटबैंक भी मानी जाती हैं। बेनीवाल इन जातियों को एक “बहुजन क्षत्रिय” फ्रेम में जोड़कर गैर-भाजपा, गैर-कांग्रेस ध्रुवीकरण की रणनीति बना रहे हैं।
भाजपा और कांग्रेस की प्रतिक्रिया
राजस्थान बीजेपी अध्यक्ष मदन राठौर ने बेनीवाल के बयान को घोर आपत्तिजनक और भड़काऊ बताया। उन्होंने कहा कि इस तरह के बयान देने वालों को इतिहास की पूरी जानकारी लेनी चाहिए और समाज में तनाव फैलाने से बचना चाहिए। वहीं, कांग्रेस ने भी इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है, लेकिन पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का मानना है कि वे इस विवाद को बेनीवाल के खिलाफ राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं।
समाधान की ओर या और गहराती खाई की ओर ?
हनुमान बेनीवाल के बयानों ने राजस्थान की राजनीति में जातीय ध्रुवीकरण को एक बार फिर से उजागर कर दिया है। जहां एक ओर वे अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत करने के लिए नई सामाजिक गोलबंदी की कोशिश कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर उनके बयानों से सामाजिक सौहार्द्र पर भी चोट पहुंच रही है। अब देखना यह होगा कि यह विवाद किस दिशा में जाता है—समाधान की ओर या और गहराती खाई की ओर।