पाकिस्तान की भाषा बोलने वाले गिलानी कश्मीर में बने रहे चुनौती, जानें कौन होगा वारिस

 

गिलानी हमेशा भारत सरकार की गंभीर कोशिशों की राह में रोड़ा खड़ा करने का प्रयास करते रहे। केंद्रीय सरकारों का रुख कई बार उनके इसी रवैये के चलते तल्ख रहा। उनको काफी समय तक जेल में रखा गया और वे घर में नजरबंद रहे। बुरहान वानी की मौत के बाद जब सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल कश्मीर गया तो गिलानी ने उनसे मुलाकात नहीं की। इसे भी कश्मीर में बड़ा धड़ा उनके गलत फैसले के रूप में देखता रहा।

मोदी सरकार आने के बाद गिलानी और उनके कट्टरपंथी साथियों पर और शिकंजा कसा गया। टेरर फंडिंग मामलों में उनकी और नजदीकी लोगों की जांच एनआईए ने शुरू कर दी।

ये हो सकते हैं सियासी वारिस
अलगाववादी नेता के सियासी वारिसों में उनके दो बेटों, दामाद के अलावा उनके करीबी रहे गुलाम नबी सुमजी, कट्टरपंथी मसर्रत आलम, कश्मीर बार एसोसिएशन के पूर्व चेयरमैन मियां क्यूम, आजीवन कारावास की सजा काट रहे डॉ. कासिम फख्तू और पाकिस्तान में बैठे सैयद अब्दुल्ला गिलानी के नाम लिए जा रहे हैं। लेकिन जानकार मानते हैं कि अब हालात ऐसे नहीं हैं कि इनमें से कोई भी खुद को खड़ा कर पाए। गिलानी के बेटों समेत अन्‍य प्रमुख रिश्‍तेदार हुर्रियत की अलगाववादी सियासत से कन्‍नी काट रहे हैं। फिलहाल गिलानी युग के अंत के बाद सुरक्षाबलों और सरकार के सामने बड़ी चुनौती यही है कि कोई दूसरा गिलानी घाटी में पैदा न होने पाए।

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